गुरु दक्षिणा – ऋतु अग्रवाल 

  आज दिवाकर जी बहुत खुश हैं। उनकी बिटिया आज अपने पति के साथ उनके पास छुट्टियाँ बिताने हेतु आ रही है। उनकी बिटिया पूजा के विवाह को एक वर्ष होने आया है। इस अंतराल में पूजा बिटिया दो-तीन बार अपने मायके रहने आ चुकी है परंतु दामाद जी सदैव दो-चार घंटों के लिए आते और शीघ्र ही लौट जाते। पर दिवाकर जी और परिवार के अन्य सदस्यों के अनुरोध पर दामाद अक्षत पहली बार उनके पास छुट्टिईयां बिताने आ रहे हैं।

        “पापा जी, नमस्कार! कैसे हैं आप सब?” कह अक्षत ने दिवाकर जी के पैर छू लिए।

        “बस, बढ़िया! आइए।” समस्त परिवार अक्षत के स्वागत सत्कार में जुट गया। नाश्ते की मेज पर तरह-तरह के व्यंजन रखे थे। सब लुत्फ़ खा रहे थे कि अचानक दिवाकर जी झल्ला उठे,” यह कैसा हलवा बनाया है! तुम हमेशा फूहड़ ही रहोगी। एक घर का काम करना पड़ता है, वह भी तुम्हें ढंग से नहीं आता और आभा बहू,तुम्हें इतना भी नहीं पता कि मटर की  कचौरियाँ करारी तली जाती हैं। दोनों सास बहू बिल्कुल दर्जे की फूहड़ हैं। घर के काम भी ढंग से नहीं कर सकती। सारा दिन घर में ही रहती हो, तब ढंग से कोई काम नहीं कर सकती। अगर कोई नौकरी करती होती तो इस घर का भगवान ही मालिक था। इन औरतों को जब तक लताड़ा नहीं जाता तब तक इन्हें अकल नहीं आती।” दिवाकर जी की बेहुदगी और बदमिजाजी अक्सर सब का मूड खराब कर देती पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि उनके सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। घर में सब उनके गुस्से से बहुत डरते थे।

     सब चुपचाप नाश्ता करके अपने अपने काम पर लग गए। अक्षत के लिए भी यह सब नया नहीं था। वह पहले भी यह सब कई बार पूजा के मायके में देख चुका था। 

    रात के खाने के समय सब फिर डाइनिंग टेबल पर इकट्ठा हुए।

    “आज मटर पनीर और मलाई कोफ्ता पूजा बिटिया ने बनाया है। इसके पापा को बहुत पसंद है।” पूजा की मम्मी अनुराधा ने खुश होकर बताया।




    दिवाकर जी आज चुपचाप खाना खा रहे थे कि अचानक अक्षत बोल पड़ा, “पूजा! ये कैसी सब्जियाँ बनाई है? जरा भी मसाला नहीं है और तुम्हें पता नहीं कि मलाई कोफ्ते को कोटिंग करके तलते हैं। बिल्कुल फूहड़ हो तुम, पढ़ी-लिखी गँवार!” अक्षय की बात सुनकर सब स्तब्ध रह गए।

     दिवाकर जी के खाना खाते हाथ रुक गए,” बेटा, अक्षत! आप यह किस तरह से बात कर रहे हो हमारी बिटिया से? इतना अच्छा खाना तो बनाया है पूजा ने।”

      “पापा जी, सुबह आप ही तो कह रहे थे कि औरतों को लताड़ते रहना चाहिए, तभी वे काबू में रहती हैं। मैं तो आप के नक्शे कदम पर ही चल रहा हूँ।”अक्षत बेपरवाही से बोला।

      “बरखुरदार! आप शायद भूल रहे हैं कि आप मेरी बेटी की तुलना साधारण औरतों से कर रहे हैं। मेरी बेटी अपनी कंपनी की सेल्स एग्जीक्यूटिव मैनेजर है कोई आम घरेलू स्त्री नहीं।” दिवाकर जी गर्व से बोले।




       “जी नहीं, पापा जी! मैं कुछ नहीं भूल रहा। औरत चाहे पढ़ी लिखी हो या अनपढ़,कामकाजी हो या घरेलू,हर स्तर पर बराबर सम्मान की हकदार है। आप गृहिणी के महत्व को कम आँक रहे हैं। अगर मम्मीजी नौकरीशुदा होती तो शायद आप इतने निश्चिंत होकर घर परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर ना छोड़ पाते और अगर भाभीजी भी नौकरी कर रही होती तो आप भी घरेलू कार्यों के लिए के लिए सहायकों पर निर्भर होते। यह तो हर स्त्री की प्राथमिकता है कि वह अपने कार्य क्षेत्र में किस चीज को वरीयता देती है?” अक्षत ने दिवाकर जी की आँखों में देखते हुए कहा।

     “आप सही कह रहे हो, मैंने कभी इस दृष्टिकोण से तो सोचा ही नहीं था। मेरी संकीर्ण सोच को वृहद सोच  में बदलने के लिए आपका शुक्रिया। आज से आपको अपना गुरु मानता हूँ। बताइए, आपको क्या गुरु दक्षिणा दूँ?” दिवाकर जी शर्मिंदा थे।

      “बस आपसे यही चाहिए कि आप स्त्रियों के प्रति अपनी संकीर्ण मानसिकता को तिलांजलि देकर उन्हें उचित मान सम्मान दें। यही मेरी गुरूदक्षिणा है। बोलिए, मंजूर?” अक्षत ने हँसकर कहा।

         “मंजूर।” दिवाकर जी ने पत्नी और बहू के आगे हाथ जोड़ दिए।

       अपनी योजना कामयाब होती देख कर पूजा और अक्षत आँखों ही आँखों में मुस्कुरा दिए। 

 

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल 

मेरठ

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