गुल्लक – सपना शिवाले सोलंकी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : 80 बरस के बाबूजी रिटायर्ड शिक्षक थे। उनकी बातचीत व आवाज़ में अलग ही रौब दिखता था । अम्मा तो आठ साल पहले गुजर गयीं। परिवार में तीन बेटे बहुएं व कुल सात पोते पोती थे।

संयुक्त परिवार था। बाबूजी घर के मुखिया थे, सब उनका कहा मानतें थे । वे अपनें पास एक बड़ी सी गुल्लक रखा करते। सभी को सख्त हिदायत थी, अपनीं बचत के पैसे गुल्लक में अवश्य डाला जाएं।

जब गुल्लक पूरी तरह से भर जाती तो उसे तोड़कर बाबूजी सबसे जरूरतें पूछते, आँकलन कर तय करतें राशि किसे देनी है। बाबूजी के निर्णय पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता । अगली बार फिर नई गुल्लक रख दी जाती।

इस बार जब गुल्लक तोड़ी गयी तो सबनें अपनीं जरूरतें बढ़ा चढ़ा कर गिनाई। तभी बाबूजी की नज़र कामवाली ललिता पर पड़ी जो बड़ी उम्मीद भरी नजरों से पैसों को एकटक देख रही थी। बाबूजी ने पूछा, ललिता तेरी क्या जरूरत है चल तू बता? घर के लोग आश्चर्य से बाबू जी ओर देखने लगें,ये तो उनकी कमाई का हिस्सा है कामवाली से क्यों पूछा जा रहा?

“बोल ललिता “, जब दोबारा जोर से बाबू जी ने कहा तो ललिता बड़े ही बुझे स्वर में बोली ,

“बाबूजी मेरी तो कोई जरूरत ना है “, बिटिया पूजा के स्कूल में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही , मेरे पास ऐसा मोबाईल नहीं जिसमें वो पढ़ सकें। सुनतें ही बाबू जी बोले स्मार्ट फोन चाहिए??

इधर आ बबलू, छोटे बेटे से कहा,इन पैसों से स्मार्टफोन लेते आना।सुनकर ललिता की आँख डबडबा गईं,झट बाबूजी के चरणों पर मत्था टेंक दिया।

एक बच्ची पढ़ लिख जाएं इससे अच्छा क्या हो।

आजकल की मतलबी दुनियां में किसी के लिए दो पैसा  खर्च करना भारी लगता है। इसलिए बच्चों मैं इस दुनियाँ में रहूँ या ना रहूँ ,तुम अपनीं आय के एक छोटे हिस्से से “सहयोग व साझेदारी” की एक गुल्लक जरूर बनायें रखना। इससे बचत की प्रवृत्ति तो बनेगी ही , किसी एक के ऊपर कोई भार भी नहीं आएगा….

यदि परपीड़ा महसूस कर ,उसका  सदुपयोग करोगे तो अलग से धर्म कर्म की आवश्यकता भी ना होगी …..

इस बूढ़े पिता की यह बात यदि अपनें “मन की गुल्लक” में सदा के लिए संचित कर लो तो मेरा जीवन सफल हो जाये….सुनकर, सब एक स्वर में बोल पड़े जीs बाबूजी 

हर घर में प्यार व सम्मान की गुल्लक बनी रहे…

— सपना शिवाले सोलंकी

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