गृहणी –  रंजना वर्मा उन्मुक्त

गौरी अपने पति से बड़ी नाराज थी। क्यों वह उसे शहर ले आया? वह अपना गाँव छोड़कर नहीं आना चाहती थी ।गाँव के साथ उसकी बहुत सारी यादें जुड़ी हुई थी। वहीं उसका जन्म हुआ और वहीं वह पली-बढ़ी ।वहीं उसके माता-पिता ,भाई-बहन और ससुराल में सास- ससुर रहते थे। इसके अलावा उसका पति हर शनिवार को गाँव आ जाता ,रविवार को रहकर ,फिर सोमवार को वापस शहर नौकरी पर चला जाता था ।सबकुछ कितना बढ़िया चल रहा था। उसे उस शख्स पर बेहद गुस्सा आ रहा था, जिसमें उसके पति के मस्तिष्क में यह बात घुसा दिया कि ‘बिन गृहणी, घर भूतों का डेरा ‘…तब से उसका पति उसे शहर ले जाने की जिद करने लगा। उसके बाद तो उसके सास- ससुर के साथ-साथ उसके अपने माता-पिता भी उसके पति का साथ देने लगे। वह भी कब तक प्रतिकार कर पाती, आखिरकार उसे शहर अपने पति के घर आना ही पड़ा ।

 उसका पति दफ्तर में बड़ा अफसर था। उसने बहुत ही सुंदर घर ले रखा था। घर देखकर वह भी बेहद खुश हुई। सुंदर घर, सुंदर फर्नीचर, सोफा, पलंग ,सुंदर पर्दे कुल मिलाकर सब कुछ शानदार था ।घर में चौका- बर्तन ,साफ- सफाई करने वाली के अलावा खाना बनाने वाली भी थी। गौरी को खुद एक गिलास पानी भी नहीं लेना पड़ रहा था। इतना कुछ होने के बावजूद वह अपने गाँव से दूर आकर दुखी और अपने पति पर बेहद गुस्सा थी। शाम को जब उसका पति घर आया तो वह कमर पर हाथ रखकर बड़े गुस्से के साथ बोली,” गाँव से मुझे अपने घर की गृहणी बनाने के लिए ले आए हो, पर यहाँ तो गृहणी वाला कोई काम ही नहीं है।”

  उसकी भोली बात सुनकर उसका पति जोर से हँस पड़ा ।बोला,” तुमसे किसने कह दिया कि गृहणी का मतलब ‘घर का काम करने वाली’ होता है। गृहणी का मतलब होता है… घर की मालकिन… जो अब तुम हो ।”




 गाँव की गौरी को गृहिणी की परिभाषा चाहे जितनी भी समझ आयी हो, पति की बातों ने उसका दिल मोह लिया।

समाप्त 

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जन्मदिन

“ठीक कहते हैं लोग, शादी के बाद बेटा पराया हो जाता है।”… दुखी होते हुए पति अपने कमरे में चले गए। निशा को भी आज सुबह से ही किसी काम में मन नहीं लग रहा था। आज उसके बेटे का जन्मदिन था और वह ससुराल चला गया था। उसका मन आज बिल्कुल खाना बनाने को नहीं हो रहा था। लेकिन उसने सोचा बेटे का जन्मदिन है कुछ मीठा बना लेती हूँ। मीठा शुभ होता है। अभी वह किचन में जा ही रही थी कि बेटे का वीडियो कॉल आ गया। उसके ससुराल में धूमधाम से उसका जन्मदिन मनाया जा रहा था। केक कटने जा रहा था। इसलिए बेटे ने वीडियो कॉल किया।

 ” मम्मी! पापा को भी बुला लो ।केक काटने जा रहा हूँ।”

  वह कमरे से अपने पति को बुला कर ले आयी।

 ” आइए समधी जी… मैं तो दमाद जी से कह रही थी कि अब तो मैं भी आपकी मम्मी हूँ। लेकिन इन्हें अपने मम्मी-पापा के सामने ही केक काटना है ।”…बेटे की सास ने मुस्कुराते हुए कहा।

 ” मम्मी आपकी पसंद का पाइनएप्पल केक है ।”…बेटा ने केक काटते हुए माँ से कहा।

 बेटे के जन्मदिन पर,बेटे से दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी।निशा के नैनों से आँसू बरसने को तैयार थे। उसने बड़ी मुश्किल से उसे थामें रखा था। केक कटने के बाद वहाँ खाना लगने लगा। बेटे ने मोबाइल का कैमरा टेबल पर लगे खाने की ओर किया और बोला,” मम्मी ,आपकी पसंद का मशरूम मलाई पनीर भी है ।”




 वह मुस्कुरा उठी थी, फिर बोली ,”ठीक है, अब तुम लोग खाना इन्जाॅय करो। बाद में मैं बात करती हूँ।”… कह कर उसने फोन काट दिया ।बुझे मन से उसके कदम किचन की ओर बढ़े। तभी दरवाजे पर बेल बज उठी। जोमैटो वाला  हाथ में पैकेट्स लिए खड़ा था ।उसने पैकेट्स खोला…एक में पाइनएप्पल केक था तथा दूसरे में मशरूम मलाई पनीर और नान थे।… वह सोच रही थी…’ क्या शादी के बाद बेटे सचमुच पराए हो जाते हैं।’

      रंजना वर्मा उन्मुक्त

       स्वरचित

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