” सुलोचना जी..सैर करने जा रहा हूँ..अपनी फ़रमाईशों की लिस्ट दे दीजिये…लौटते वक्त सब लेता आऊँगा…।” थोड़े ऊँचे स्वर में गिरधारी लाल जी अपनी पत्नी से बोले तो सुलोचना जी रसोई से निकलीं और उन्हें कपड़े के थैले के साथ एक पर्ची थमाती हुई बोलीं,” लिस्ट के साथ थैला दे रही हूँ..प्लास्टिक की थैलियों में सामान न लाइयेगा।कितनी बार मना कर चुकी हूँ लेकिन आप हैं कि..।”
” नहीं लाऊँगा भाग्यवान..।” कहते हुए गिरधारी लाल जी बाहर निकल गये और तेज-तेज कदमों से चलते हुए वो अपनी काॅलोनी के ‘आनंदी पार्क’ पहुँचे जहाँ शिवनंदन बाबू अपनी छह वर्षीय पोती के साथ खेलते हुए उनकी प्रतीक्षा कर रहें थें।उनको देखते ही शिवनंदन बाबू ‘ गुड माॅर्निंग गिरधारी लाल जी’ बोले और फिर दोनों देश- दुनिया की बातें करते हुए पार्क के ईंट से बने रास्ते पर टहलने लगे।
अठ्ठावन वर्षीय गिरधारी लाल जी नगर निगम अधिकारी थे।समय पर दफ़्तर जाते…मुस्तैदी से अपना कार्य करते और ठीक पाँच बजे फ़ाइल बंद करके घर आ जाते।उनकी पत्नी उनके सुख-सुख में हमेशा साथ रहती थीं।ईश्वर की कृपा से उनकी दो संतानें हुईं जिन्हें उन्होंने अच्छी शिक्षा और संस्कार दिये।बेटी अपने ससुराल में खुश है और बेटा अपनी पत्नी के साथ..।
शराब-सिगरेट को उन्होंने कभी हाथ लगाया नहीं, इसलिए डाॅक्टर से उनका सामना भी कम हुआ।कुछ महीने पहले की बात है, सीढ़ियाँ चढ़ने में उन्हें थकान होने लगती थी।पत्नी ने कई बार कहा कि एक बार डाॅ• शर्मा को दिखा आइये लेकिन वो टाल जाते।फिर एक दिन जब दफ़्तर में ही उनको चक्कर आ गया
तब पत्नी उन्हें डाॅक्टर शर्मा के क्लिनिक ले गईं।चेकअप और जाँच के बाद डाॅक्टर शर्मा ने उन्हें बताया कि इस उम्र में शुगर और ब्लड-प्रेशर होना आम बात है..समय पर दवा खाइये..थोड़ा परहेज रखिये और सैर कीजिये तो सब ठीक रहेगा।बस, उन्हीं की सलाह पर वे प्रतिदिन सुबह की सैर के लिये ‘आनंदी पार्क’ में जाने लगे।
वहीं पर उनकी मुलाकात शिवनंदन बाबू से हुई जो अपनी पोती के साथ टहलने आते थे।हमउम्र देखकर उन्होंने अपना परिचय देते हुए उनसे उनके बारे में जानना चाहा,तब शिवनंदन बाबू ने बताया कि बैंक में कैशियर थे।सेवानिवृत्त होकर अपने पैतृक आवास में पत्नी संग आराम की ज़िंदगी बिता रहे हैं।बेटी अपने ससुराल में बस गई और बेटा-बहू यहीं रहते हैं तो कभी-कभी पत्नी के साथ यहाँ आ जाते हैं।
बस तभी से दोनों देश, राजनीति, मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध आदि विषयों पर बातें करते हुए टहलते और अपने-अपने घर चले जाते। एक दिन शिवनंदन बाबू उनसे बोले कि सुबह-सुबह ताज़ी सब्ज़ियाँ मिलती हैं तो आप थैला लेकर आ जाया कीजिये, भाभीजी को आराम हो जायेगा।उनका सुझाव मानकर ही वो सप्ताह में दो दिन थैला साथ में लेकर निकलने लगे।
आज भी उन्होंने टहलते हुए शिवनंदन बाबू से शहर में बढ़ रहे अपराधों पर विचार-विमर्श किया और फिर पत्नी की दी हुई लिस्ट के अनुसार सब्ज़ियाँ खरीदकर घर वापस आ गये।नहा-धोकर नाश्ता किया और खाने का डिब्बा लेकर दफ़्तर चले गये।
एक दिन टहलते-टहलते शिवनंदन बाबू गिरधारी लाल जी बोले,” मैंने आपसे कभी बच्चों के बारे में पूछा नहीं..आपने भी नहीं बताया।मैं तो दस रोज बाद अपने गाँव चला जाऊँगा..आप भी कुछ दिनों के लिये बच्चों के पास हो आइये या फिर उन्हें बुला लीजिये।आप दोनों का मन बहल जायेगा।” तब गिरधारी लाल जी बोले,” बेटी ज़ाॅब करती है..नाती की छुट्टियाँ होती है तो वो आ जाती है और बेटा…।” कहते-कहते वो रुक गये।
” बेटा..क्या? कोई मन-मुटाव हो तो दूर कर लीजिये।”
” मन-मुटाव की बात नहीं है।उसने तो…।”
” क्या उसने तो..हमसे कहिये तो..शायद कोई हल निकल आये।” शिवनंदन बाबू ज़ोर देकर बोले तो गिरधारी लाल जी चलते-चलते रुक गये और एक बेंच पर बैठते हुए बोले,” अब क्या बताये आपको..बेटे ने तो हमको कहीं का नहीं छोड़ा…।”
” खुलकर बताइये तो सही कि आखिर बेटे ने ऐसा क्या किया जो आप …।” उनके पास बैठते हुए शिवनंदन बाबू बोले।तब गिरधारी लाल जी बोले,” बेटी आराध्या की शादी के बाद हमने अपने बेटे अनुराग से पूछा कि तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता दो..हम उसके माता-पिता से बात करके तुम्हारा विवाह करा देंगे।तब उसने कहा कि आपकी पसंद ही मेरी पसंद होगी।
हमने अपनी बिरादरी में लड़की तलाशना शुरु कर दिया।कुछ महीनों बाद वो हमसे मिलने आया तब बताया कि मेरे ऑफ़िस में साक्षी नाम की लड़की काम करती है..आप और माँ चलकर उससे मिल लीजिये।मैं उसी से शादी करना चाहता हूँ।पढ़ी-लिखी बहू आयेगी..यह सुनकर हम पति-पत्नी बहुत खुश हुए।
हमने कहा कि साक्षी से तो मिल ही लेंगे लेकिन पहले हमें उसके घर का पता दे दो..हम उसके माता-पिता से मिलकर….।मेरी बात अधूरी रह गई क्योंकि तभी अनुराग ने कह दिया कि वो एक अनाथालय में पली-बढ़ी है।तब मैंने भी उससे साफ़ कह दिया कि जिस लड़की के जात-धर्म का पता नहीं, उससे विवाह करने की अनुमति हम तुम्हें कभी नहीं देंगे।
उसने हमें समझाने का बहुत प्रयास किया…पत्नी ने भी कहा कि समय बदल रहा है… शिक्षा के आगे जाति-धर्म का कोई महत्त्व नहीं है..उसने कई लोगों के उदाहरण भी दिए..आराध्या ने भी अपनी माँ का समर्थन किया लेकिन हम नहीं माने।बेटे ने एक साल तक मेरी हाँ का इंतज़ार किया और फिर उसने उस लड़की से कोर्ट-मैरिज़ कर ली।
जिस बेटे को पाल-पोसकर बड़ा किया..पढ़ाया-लिखाया..वही मेरे खिलाफ़ जाकर…।यही बात मेरे#मन की गाँठ बन गई।बेटा पत्नी को लेकर घर आया लेकिन हमने दरवाज़ा नहीं खोला।पाँच बरस बीत गए..अब तक तो वो एक बच्चे का पिता भी बन गया होगा…।लेकिन इससे हमें क्या..।औलाद हमारी न सुने..अपने मन की करे तो शिवनंदन बाबू कलेज़ा बहुत दुखता है..।” कहकर उन्होंने एक गहरी साँस ली।
तब शिवनंदन बाबू उनके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,” भाई गिरधारी…इतने शिक्षित होकर भी आप जाति -धर्म की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं।इस ऊँच-नीच, छोटे-बड़े के भेदभाव में कुछ नहीं रखा है।चार दिनों की जिंदगी है..अपने हृदय पर पड़े गिरह को खोलिये और बच्चों की खुशी में अपनी खुशी तलाशिए..।”
” शिवनंदन बाबू ज्ञान देना बहुत आसान है..खुद पर तो बीती नहीं है ना..।” गिरधारी लाल जी की आवाज़ में क्रोध था।सुनकर शिवनंदन हँसने लगे।वो कुछ कहते तब तक में उनकी पोती ने उनका हाथ पकड़ लिया,” दादू..चलो ना..।”
” चलता हूँ बंधू..कल रविवार है तो आराम से बैठकर बातें करेंगे..।” कहकर शिवनंदन बाबू पोती की अंगुली पकड़कर चले गये।
अगली सुबह फिर दोनों मिले..हाय-हैलो किया और कुछ देर टहलने के बाद गिरधारी लाल जी बेंच पर बैठ गए और शिवनंदन बाबू को बिठाते हुए बोले,” कल आप कुछ कहते-कहते रुक गए थे…।”
” हाँ..।” शिवनंदन बाबू बोले और फिर कहने लगे,” शशांक मेरा बेटा, को जब एक प्राइवेट बैंक में नौकरी मिली तो उसकी माँ बहू लाने की ज़िद करने लगी।उसने कहा कि पहले शिल्पी(छोटी बहन)का विवाह कर दीजिए।हमने उसकी बात मान ली।बेटी के विवाह के बाद हम शशांक के लिए लड़की देखने लगे..एक-दो लड़कियों से तो उसने बात भी की..।फिर एक दिन अचानक उसका फ़ोन आया कि उसने शादी कर ली।कुछ दिनों के बाद पत्नी को लेकर आया और माफ़ी माँगते हुए बोला कि होली से दो दिन पहले मैं अपने दोस्त मनीष जिसकी छह महीने पहले ही शादी हुई थी, के साथ मोटरसाइकिल पर घूमने निकला था।हम हाइवे पर जा रहे थे कि तभी सामने से आती एक ट्रक से हमारी भिड़ंत हो गई।मनीष पीछे बैठा था।वो उछल कर एक दीवार से टकरा गया।मुझे भी चोटें आईं जो कुछ दिनों में ठीक हो गई लेकिन मनीष के सिर पर गहरी चोट लगने के कारण बहुत खून बह गया।डाॅक्टर की कोशिशों के बावजूद वो…।मैं उसके घर गया तब पता चला कि मनीष की पत्नी मानवी प्रेग्नेंट है।पापा..मनीष को मैं ही ज़िद करके ले गया था..मेरी वजह से एक हँसता-खेलता परिवार तबाह हो गया..।ऐसे में मैंने मानवी का हाथ थाम लिया।इस विवाह के लिए सबको राज़ी करना आसान नहीं था।मानवी की सेहत को देखते हुए हमने देर नहीं की और कोर्ट-मैरिज़ कर ली।” कहकर शिवनंदन बाबू चुप हो गए।फिर एक गहरी साँस लेकर बोले,” गिरधारी लाल जी..उस वक्त हमें बहुत गुस्सा आया… हमने बेटे को घर से निकाल दिया और वही बात हमारे #मन की गाँठ बन गई।बेटे ने कई बार फ़ोन भी किया लेकिन हमने नहीं…।रिटायर होकर हम पति-पत्नी अपने पैतृक आवास आ गये।लोगों से मिलने-मिलाने में मेरे दिन तो कट जाते लेकिन पत्नी बेटे के दुख में बीमार रहने लगीं और एक दिन बिस्तर पकड़ लिया।डाॅक्टर की दवाएँ उन पर बेअसर होने लगी।तब बेटी आई, उसके अगले ही दिन बेटा भी आ गया।बहू ने जी-जान से अपनी सास की सेवा की।पोती की तोतली आवाज़ सुनकर तो वो निहाल हो जाती थी।बस भाई…उसी वक्त हमने अपने दिल की सारी गिरहें खोल दी और तीनों को आशीर्वाद देकर अपने हृदय से लगा लिया।देखिये तो, बिटिया कैसे दादू-दादू कहकर मेरे आगे-पीछे घूमती रहती है।गिरधारी भाई…अब भी देर नहीं हुई है..।” कहते हुए उन्होंने अपने मित्र पर एक गहरी नजर डाली और अपनी पोती को लेकर चले गए।
उस रात गिरधारी लाल जी को नींद नहीं आई।वो सोचने लगे, शिवनंदन बाबू ठीक ही तो कहते हैं कि हमें बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी तलाश करनी चाहिये।आखिर कब तक हम अपने खून से…।उस दिन आराध्या अपनी माँ से कह रही थी कि भाभी हमेशा तुम्हारे और पापा के बारे में पूछती रहती हैं।जानती हैं, भाई को Typhoid हुआ था तब भाभी ने उनकी तन-मन से सेवा की थी…घर से काम किया और बेटी को भी संभाला।इतनी अच्छी बहू को मैं उसके परिवार से दूर रख रहा हूँ…।
” सुनो जी..सो गईं?” साथ लेटी सुलोचना जी के कंधे पर हाथ रखा तो वो बोलीं,” नींद अब कहाँ आती है जी..एक बार बेटे-बहू को देख…।”
” चलो..चलते हैं…।”
” कहाँ…अनुराग के पास..।” खुशी- से वो उठकर बैठ गईं।
” हाँ..पर तुम उसे बताना नहीं..हम उसे सरप्राइज़ देंगे।तुम तैयारी शुरु कर दो..मैं कल टिकट की व्यवस्था करता हूँ..बच्ची के लिये खिलौने…।” गिरधारी लाल जी बोलते जा रहें थे और सुलोचना जी उन्हें एकटक निहारे जा रहीं थीं।
विभा गुप्ता
# मन की गाँठ स्वरचित, बैंगलुरु
कभी-कभी किसी बात पर रिश्तों में अनबन हो जाती जो मन की गाँठ बन जाती है।समय रहते उन गिरहों को खोल देने में ही समझदारी है जैसे कि गिरधारी लाल जी और शिवनंदन बाबू ने किया।