गहने – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

आभूषण की दुकान में गौरी ने आभूषण दिखाते हुए सुमित्रा जी से पूछा….”माँ जी ! ये सारे तो फाइनल हो गए, और कुछ देखना है या बिल बनवाएं ..?

सुमित्रा जी ने कहा…”ये तो केतकी (पोता बहु) के गहने हो गए । इसी डिजाइन में थोड़े हल्के एक सेट और ले ले ।

“एक सेट और…क्यों ? गौरी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा । तू ले तो बहु, मैं बोल रही हूँ इसलिए । “श्याम भैया ! ये सारे जेवर एक सेट और चाहिए हल्के में । सुमित्रा जी ने दुकानदार से कहा और वो दिखाने लग गया । सारे गहने पैक कराने के बाद सुमित्रा जी ने कहा…”देख ! मेरी तरफ से भी तो कुछ लेना रह ही गया । अपने पोते बहू को मैं भी तो कुछ दूँगी न ! गौरी ने सुमित्रा जी के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा…”आप भूल रही हैं माँ जी ! आपने पहले कहा था कि जो आपके पुश्तैनी कड़े हैं वो दूँगी , बाकी आपको जो सही लगे ।

श्याम ने चमचमाता हुआ बहुत सुंदर सा रानी हार दिखाया । टटोल कर देखते हुए सुमित्रा जी ने कहा..”बहुत सुंदर डिजाइन है ,  अब इसका बिल बनाकर घर भिजवा देना, थोड़ी जल्दी में हूँ ।

सुमित्रा जी की घर मे अभी भी बहुत धाक चलती थी । बगैर उनके आदेश के घर में एक पत्ता नहीं हिलता था ।

सुमित्रा जी के तीस वर्षीय पोते अक्षत की शादी की तैयरिंयाँ ज़ोर – शोर से चल रही थीं । घर में चारों तरफ पकवानों की खुशबू और रंग – “बिरंगे फूलों से सजे सजावट की खुशबू मनमोह रही  थी । घर पहुँचते ही सुमित्रा जी ने चहकते हुए अपने पति प्रभाकर जी को दिखाते हुए कहा…”देखिए जी ! अपने पोते बहु के लिए मैंने ये रानी हार लिया। कितने सुंदर हैं न..?

प्रभाकर जी ने हां में सिर हिलाते हुए गौरी से पूछा…”गौरी बेटा ! तुमने अपने लिए क्या लिया ? “मुझे क्या जरूरत है पापाजी । दो टूक बोलकर वह अपने कमरे में चली गयी ।

गौरी अपने कमरे में जैसे ही घुसी उसकी नज़र सिंगारदान में लगे शीशे पर गयी । काम तो बहुत करने थे पर इच्छा नहीं हुई कि जी – जान लगाकर जुट जाएँ । आराम से होंगे काम ये सोचकर आईने के सामने वो बेड पर बैठ गयी । बड़े दिनों बाद फुर्सत में बैठकर वो खुद से मन ही मन मे बातें करने लगी । ध्यान से खुद को देखी और पुराने ख्यालों में खो गयी ।

इस कहानी को भी पढ़ें:

खिंचाव माटी का – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

उस दिन  उसके देवर की शादी थी । बारात निकलने से पहले सुमित्रा जी तैयार थीं लेकिन उनका हार सेट नहीं मिल रहा था । इतने कपड़े उलझे – बिखरे , हर तरफ सामान बिखरा, लोगों से खचाखच भरा घर….सुमित्रा जी पहले घबराईं , फिर घबराहट की वजह से वह चिल्लाने लगीं…”गौरी..हार नहीं दिख रहा मेरा, कहाँ गया ? मैंने तो पहले खूब ढूंढा, जब नहीं ढूंढ पाई तो बोली..”माँ जी ! अभी कुछ दूसरा पहन लीजिए न, बारात निकलने को है, कहाँ ढूंढूं ? आने के बाद खोजते हैं ।

मम्मी जी की आवाज़ अब गाली में बदल गयी थी …जैसे ही वो शुरू हुईं बारात निकलने वाले लोग दरवाजे पर खड़े होकर मेरे साथ सहानुभूति दिखाने लगे । मुँह से जवाब नहीं निकला और आँखों से शैलाब फूट पड़ा…”मेरी मम्मी , बहन और भैया भी थे । जी कर रहा था गले लगकर जी भर रोऊँ । पर ससुराल है न! रोने की भी आजादी नहीं । मेरी मम्मी ने बड़ी हिम्मत दिखाते हुए मम्मी जी से कहा..”दीदी ! सब इंतज़ार कर रहे हैं, घर से कहाँ जाएँगे गहने ? आपके कमरे में तो आप लोग ही बस रहते हैं । आपलोग से मम्मी का मतलब मां जी पापा जी और हम पति – पत्नी से था । घर की बड़ी थी मैं तो सारी जिम्मेदारी मेरे ही ऊपर थी । 

मम्मी की इतनी बातें सुनने के बाद माँ जी ने फिर से चीखते हुए कहा…”लग रहा है सब धनवान हैं कहीं के, गौरी ने ही चुराया होगा , सोची होगी मेरा ससुराल तो इतना धनवान है मेरी दोनो बहनों के शादी के काम आ जाएगा , मैं समझती हूँ जो छोटे घरों से आते हैं न वो ऐसे ही रंग दिखाते हैं ।

भैया ने हाथ जोड़ते हुए कहा…”आंटी जी ! कम पैसे हैं हमारे पास, लेकिन हमारे घर मे कोई ऐसा नहीं है आप ध्यान से देखिए । अब भैया को उम्मीद थी मेरे पति शरद जी से । जैसे ही ऊपर वो सबको बुलाने आए दूसरी ओर ले जाकर बोले भैया..”शरद जी  ! आंटी जी क्या – क्या बोल रही हैं, गौरी नहीं कर सकती ऐसा चाहे तो खोज लीजिए पर ऐसे जलील मत करिए । सब लोग तमाशबीन बनकर देख रहे थे । जो सहानुभूति भी दिखा रहे थे उनकी नीयत समझ आ रही थी ।

शरद जी ने तुरंत बोला…”भैया ! मैंने देखा नहीं तो कैसे कह दूं कि गौरी ने लिया या नहीं  । हम सबकी आँखें फ़टी रह गईं शरद जी का जवाब सुनकर और  दिल पर क्या बीती सिर्फ मेरा दिल जानता है ।  #समझौता अब नहीं कर सकती थी खुद से । जी चाहा बोलकर अपनी भड़ास निकाल दूँ पर हिम्मत जवाब दे गई ।मेरे मायके वाले और मेरे रिश्तेदार भी तो थे, उनकी इज्जत की खातिर अपमान सह कर रह गई । अब मैंने न कुछ जवाब दिया फिर न सवाल किया ।

इस कहानी को भी पढ़ें:

नाराज सुकन्या – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

अपनी तरफ से तमाशा बनाने का कोई इरादा नहीं था शादी वाले घर में पर खुद की इतनी बेज्जती देखकर आँखें बर्दाश्त नहीं कर पायीं और बरसते- बरसते सूज का लाल हो गईं । साड़ी तो पहनी हुई थी जैसे ही अलमारी से अपने गहने निकालने लगी पहनने के लिए माँ जी ने ये बोलते हुए  मेरे हाथ से तेजी से खींच लिया कि

तुमने मेरे गहने चुराए हैं, तुम्हारे गहने मेरे पास रहेंगे , एक टीका और मंगलसूत्र बस दिया पहनने को बस ।  घर की दर्दनाक स्थिति देखकर बारात जाने वाले बारी – बारी से ऊपर आने लगे । मेरी ननद सृष्टि और देवर सुमित को बहुत बाद में ये बात पता चली और वो ये सब शांति से देख रहे थे  आखिरी में  माँ पर झल्लाने लगे फिर ज़िद करके उन्होंने माँ जी को बारात में शामिल किया ।

शादी में सब मुझे देखकर फुसफुसा रहे थे । खुद का सामना ही नहीं कर पा रही थी मैं ।वापस बारात लौटने के बाद माँ जी ने मंगलसूत्र और टीका मुझसे छीन लिया । मैंने भी नहीं मांगा न उन्होंने दिया । दिल पर इतनी गहरी आघात लगी कि गहनों की लालसा भूल ही गयी । पति से कुछ बोल नहीं सकती थी, उनमें सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं थी । ऐसे ही खून का घूँट पीकर मेरे दिन, उत्सव, शादी – ब्याह बीतते रहे ।

अविवाहित में माँ – बाप के पास इतने पैसे नहीं थे कि गहने का शौक पालती फिर शादी के दो साल बाद ही ये सब घटना हो गयी । माँ जी भी बहुत जिद्दी थीं और मुझे भी मांगना नहीं अच्छा लगा । बगैर गहनों के भी तो जी सकती हूँ । और तब से ऐसे ही बनावटी आभूषण या छोटे – मोटे जो मेरे पास थे उससे काम चला लिया । 

आखिरकार…एक दिन कामवाली सफाई कर रही थी तो बेड के नीचे कपड़ों में लिपटा हुआ हार मिला । मेरी देवरानी ने आवाज़ लगाई…”गौरी दीदी , मम्मी ! हार मिला मुझे । आँखें चमक गईं सुनकर लगा अब मेरे ऊपर लगा लांछन खत्म हो जाएगा । सबसे घुल – मिलकर रहूँगी । पर मम्मी जी ने तब भी ये कहा..”गौरी की करतूत होगी ये !

उफ्फ ! लग रहा था कहाँ हैं भगवान ! ये धरती फटे और मैं समा जाऊं । मैं चली आयी अपने कमरे में । देवरानी ने बहुत समझाया दीदी ! मां जी से माँग लीजिए गहने माफी माँगकर । पर क्या गलती थी मेरी जो माफी माँगती । चचेरे ननद और देवर या बहनों की शादी हुई सब मे जैसे तैसे काम चलाया । कितनी बदकिस्मत थी जो औरत के मुख्य श्रृंगार से मुझे वंचित रखा गया ।

“गौरी …गौरी ! कंधे पर प्यार भरा हाथ पाकर आश्चर्यचकित हुई । हड़बड़ा कर उठी तो देखा माँ जी शरद और पापा जी के साथ गहने लिए खड़ी थीं ।गौरी..”ये तुम्हारे गहने हैं गौरी और नया सेट देते हुए कहा..”देखो पापा जी की तरफ से ये है ।

इस कहानी को भी पढ़ें

नाराज – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

गौरी की आँखों मे फिर से आँसू छलछला उठे और आवाज़ साथ नहीं दे रही थी । हकलाते हुए रुंधे गले से गौरी ने बोला…य..ये “ये मेरी बहु केतकी को ही दे दीजिएगा माँ जी ! अब ये गहने मेरे किस काम के ? जवानी थी तब तो ये पहन नहीं पाई, अब तो वैसे भी हर चीज का शौक खत्म हो गया है । 

पापा जी ने बोला..”इस उम्र में भी शौक होता है बहू ! हमारी बात मानकर हमारा आशीर्वाद समझकर प्लीज ये रखो अपने पास । जवानी में शौक पहनने का होता है पापा जी पर बुढ़ापे में सिर्फ हमारा शरीर गहनों को ढोता है । जब चार लोगों के पास बैठना उठना मिलना होता था तब तो इनके बगैर ही रही अब मेरी इच्छा बिल्कुल खत्म हो गयी । सुमुत्रा जी की आँखों में आँसू आ गए । गौरी के कंधे पर सुमित्रा जी ने अपना सिर टिका दिया । गौरी की दबी हुई रुलाई फूट पड़ी ।

पीठ पर थपकी देते हुए सुमित्रा जी ने कहा…कुछ गलतियों की माफी नहीं होती बहु पर फिर भी तुमसे उम्मीद करती हूँ मुझे माफ़ कर दो । मेरी बहु बनकर तुम्हें दुःख झेलना पड़ा पर अब मैं चाहती हूँ तुम्हारी बहु के सामने तुम बिना मलाल के दिल खोलकर  फिर से मेरी नई बहू बनकर अपनी बहू का स्वागत करो । अगर तुमने ये गहने स्वीकार नहीं किये तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगी कभी और ऊपर वाले को जाकर क्या मुँह दिखाउंगी ।

गौरी  मां जी की ये बाते सुनकर पिघल गयी और उनके मुंह पर अपना हाथ रख दिया । गौरी सब पुराना भूलकर अब अपनी बहू के स्वागत के लिए तैयार थी ।

शादी वाले दिन गौरी पीली साड़ी और सुमित्रा जी के गहने पहनकर अपनी बहू का स्वागत करने के लिए तैयार थी । सुमित्रा जी आगे बढ़कर गौरी की अपने बेटे और पति के साथ  बलाएँ लेते हुए बारात में शामिल हुईं ।

#समझौता अब नहीं

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!