गलती किसकी..? – रोनिता कुंडू

रीमा और सिया दो बहने थी…. जहां रीमा को अपना हर काम मेहनत और लगन से पूरा करने का जुनून था…. वहीं सीमा को हर काम जल्दबाजी में करना पसंद था… रीमा कोई भी काम को समय से पूरा नहीं कर पाती थी, क्योंकि उसकी बारिकियां छांटते छांटते उसे वक्त लग जाता था और सिया अपना हर काम समय से पहले ही खत्म कर देती थी… हां यह बात अलग थी के, वह काम उतना अच्छा नहीं होता था..

दोनों की मां आशा दोनों से ही परेशान थी… दोनों की आदत को वह सुधारना तो चाहती थी… पर उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे..? एक काम में मन तो लगाती है, पर कछुए की चाल से आगे बढ़ती थी और दूसरी की चाल तो खरगोश सी थी, पर काम की गुणवत्ता का कोई ठिकाना ना था…

1 दिन बहुत दिनों के बाद, आशा की मासी उसके घर पर आई…. वह तीर्थ से लौट रही थी, तो रास्ते में आशा का घर पड़ने के कारण, उसने सोचा मिलती चलूं…

नानी को घर पर आया देख, दोनों बहने बहुत ही खुश होती है…

रीमा: रुकिए नानी..! मैं अभी आपके लिए शरबत ले आती हूं…

सिया: और मैं नाश्ता…

दोनों ने यह कह तो दिया, पर सिर्फ आशा ही जानती थी, कि अब क्या होने वाला है..? इसलिए वह मासी से बात करते-करते बार-बार किचन की ओर देख रही थी…

मासी आशा का ध्यान रसोई की ओर देखकर उससे कहती है… अरे आशा..! बेटियां अब बड़ी हो गई है… इतना तो वह कर ही लेंगी… तुम तो ऐसे परेशान हो रही हो, जैसे किसी बच्चे को भेजा है रसोई में..




आशा: नहीं मांसी..! बच्चे तो फिर भी ठीक है… पर यह दोनों..?

मासी: क्यों..? क्या किया इन दोनों ने..?

फिर आशा अपनी बेटियों की आदत के बारे में मासी से सब कह देती है…. वह यह सब कह ही रही होती है कि, सिया नाश्ता लेकर हाजिर हो जाती है… प्लेट में नाश्ता तो था, पर वह इस तरह से बिखरा हुआ था, मानो किसी ने खाते-खाते छोड़ दिया हो….

फिर थोड़ी देर बाद ही रीमा आती है और कहती है.. मां..! शरबत तो बन गया पर, उसमें कुछ कमी सी लग रही है… आप चल कर देख लीजिए ना..

आशा तो ऐसा ही कुछ का अनुमान लगा रही थी… और अब मासी भी समझ गई, के आशा क्यों परेशान थी..? इन सब के बाद मासी आशा से कहती है… आशा..! तुम्हारी परेशानी मैं समझ गई और इस का रामबाण इलाज भी है मेरे पास… पर उसके लिए तुम्हें भी थोड़ा कठोर बनना पड़ेगा…

आशा: पर ऐसा क्या सोच लिया आपने मासी..?

मासी: कल को तू बीमार बनने का नाटक करना और कुछ भी हो जाए बिस्तर से मत उठना… बाकी सब कुछ मैं संभाल लूंगी… अगले दिन आशा वैसा ही करती है..

मां को बीमार देख, दोनों बेटियां चिंतित हो जाती है… फिर उनसे उनकी नानी कहती है… देखो बच्चों..! मां को आज पूरा आराम और समय पर खाना दवाई चाहिए…. सिया और रीमा तुम्हारे पापा तो है यहां नहीं रहते, तो अब मां की पूरी जिम्मेदारी तुम दोनों पर बनती है… वैसे तुम दोनों तो काफी बड़ी भी हो गई हो…




सिया…! तुम जाओ मेडिकल से अपनी मां की तबीयत के बारे में सही से बता कर दवाई ले आओ… और तुम रीमा जब तक सिया दवाई लेकर आती है… मां के लिए हल्की खिचड़ी बना लो… ताकि मां को समय पर खाना और दवाई दोनों मिले और मैं यहां इसके पांव की अच्छे से मालिश कर देती हूं..

दोनों बहने अपनी नानी को हां, कहकर अपने अपने कामों में लग गई… रीमा ने समय से खिचड़ी बना दी और सिया दवाई ले आई… फिर आशा थोड़ा स्वस्थ लगने का नाटक करने लगी… तो इस पर आशा की मासी ने कहा… तुम दोनों बहनों ने अपना काम बखूबी किया… जिससे तुम्हारी मां पहले से थोड़ा बेहतर महसूस कर रही है और अब जब तक वह पूरी तरह ठीक ना हो जाए, ऐसे ही अपना काम करते रहना….

लगभग 1 हफ्ते तक ऐसा ही चला… दोनों बहनों ने अपनी मां की सेवा पूरे मन से की… उन दोनों के लिए अपनी मां की सेहत पहले थी, इसलिए उनके काम को बेमन से या समय लगाकर करने का ध्यान ही नहीं रहा…. एक हफ्ते बाद जब आशा पूरे तरीके से ठीक होने का नाटक करती है, तो वह मासी से कहती है… मासी..! शायद आपका यहां आना मेरी परेशानी का हल था…

मासी: हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहता है… पर कभी-कभी बच्चे हमारे सोच के विपरीत चले जाते हैं… पर क्या तुम्हें पता है, इसमें गलती किसकी होती है..? इसमें कहीं ना कहीं थोड़ी गलती माता-पिता की भी होती है…




बच्चा जब कहता है, हमें यह नहीं खाना… तो हम कहते हैं फिर क्या खाना..? वही बना देते हैं… हमें यह नहीं करना… फिर क्या करना तो वही करते हैं..? क्यों हम हमेशा उनकी जिद्द को मानते चले जाते हैं… जबकि कभी-कभी अनुशासन भी बहुत ज़रूरी होता है…

समय अनुसार अनुशासन और जिम्मेदारी उन लोगों को जिम्मेदार बनाता है और बिगड़ने का मौका नहीं देता… जिम्मेदारी बच्चों को बड़ा बना बनने पर मजबूर कर देते हैं… और हमारी इंसानी फितरत ऐसी होती है कि, जब तक हम मजबूर ना हो हम कोई काम को महत्व ही नहीं देते…

आशा: हां मासी..! बड़ी अच्छी बात कही आपने… अब से इस बात को ध्यान में रखूंगी…

धन्यवाद

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल

रोनिता कुंडू

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