फैसला —  संध्या त्रिपाठी: Moral Stories in Hindi

    बात उन दिनों की है मानसी एक सशक्त सयुंक्त परिवार का हिस्सा हुआ करती थी, संयुक्त परिवार की मिशाल के रूप में उसके परिवार का नाम लिया जाता था….!!

सुंदर, सुशील और सबसे बड़ी बात सुलझी हुई व्यक्तित्व की मालकिन मानसी…. मझली बहू के रूप में इस सशक्त परिवार की हिस्सा बनकर आई थी…!

सासू मां मनोरमा देवी का रोबीला व्यक्तित्व कुछ इस तरह का था …ऊपर से तो एकदम सख्त थीं पर अंदर से कहीं ना कहीं कोमल और मुलायम बिल्कुल नारियल की तरह जिन्हें समझना बहुत मुश्किल था….!

              

               समय बीतने के साथ-साथ और परिवार बढ़ने की वजह से धीरे-धीरे  आभास होने लगा जैसा ऊपर से दिख रहा था , वैसा अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था,  कुछ पारिवारिक समस्याएं, आपसी मतभेद और निजी कारणों से संयुक्त परिवार टूटने की कगार पर आ गया और संयुक्त परिवार खण्ड खण्ड होकर एकल परिवार में बदल गया….!!

              उसी दौरान पैरेंट्स के कुछ कठोर निर्णय जो पूर्णत: एक पक्षीय था… से मानसी के पतिदेव आशीष पूरी तरह आहत थे…. और उन्होंने मानसी को हिदायत दी कि आज के बाद हमें उनसे कोई सम्बंध नहीं रखना है I 

         मानसी एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी …. जहां एक तरफ पति तो दूसरे तरफ सास ससुर  !!

किसका साथ दे पति का या सास ससुर का ….अजीब असमंजस की स्थिति  मानसी के सामने समस्या बन खड़ी हो गई थी..!

         सास ससुर  घर बनवा कर अपने घर मे छोटे बेटे के साथ  सीफ्ट हो गये इसी दौरान उन्होंने एक पूजा रखी…!

     बड़ी असमंजस की स्थिति…..दिन भर दिमाग में अनेक विचार आते रहे, जाना चाहिए या पति की बात माननी चाहिये ?

काफी सोच विचार के बाद मानसी ने बहुत दूर की सोची….इस बार उसने हर समय पति का साथ  निभाना ही है जैसे  समझौता करना उचित नहीं समझा…!

मानसी ने इस बार पूरे आत्मविश्वास से अपने मन की , अपने दिल की बात सुनी , समझी और क्रियान्वयन रूप देने का फैसला किया…!

       इन्ही ऊहापोह के बीच अचानक दिल और दिमाग ने एक साथ  ” फैसला ” लिया….और मानसी तैयार हो कर बच्चों के साथ सासूमां के घर पहुंच गई  !

        समाज के  कुछ ऐसे  लोग मानसी को वहाँ देख आश्चर्य में पड़ गए जिन्हें सिर्फ दूसरों के घर में झांकने और बातें बनाने का काम होता है । मानसी ने वहाँ जाकर उनका मुहँ बंद कर दिया  !! मानसी व पोते पोतीयों को देख सास ससुर भी बहुत खुश हुए  I 

       शाम को आशीष आफिस से लौटे..बड़े धीरे और क्षमायाचना भरे स्वर में मानसी ने अपना फैसला  बता दिया …I  न जाने क्यों आज आशीष शांत रहे….और यहीं से शुरू हुआ दोनों परिवारों का दुबारा आना जाना और आपसी प्रेम  ..!! 

        धीरे-धीरे सब कुछ समान्य हो गया आशीष ने भी आना जाना शुरू कर दिया और अब …घर सबके जरूर अलग है पर …

 ” दिल से सब एक दूसरे से बहुत करीब है ” 

         आज भी  मानसी सोचती है …उस परीक्षा की  घड़ी में यदि मैंने पति का साथ दिया होता  और अपने दिल , दिमाग , विचारों से समझौता किया होता….तो शायद आज परिणाम इतने बेहतर नहीं हो पाते  I मानसी के एक फैसले ने दो परिवारों के विघटन को ही सिर्फ दूर नहीं किया वरन समाज में संयुक्त परिवार और अपनेपन की मिसाल कायम रखने का उदाहरण भी स्थापित किया..!

सच में साथियों , कभी-कभी पारिवारिक एकता के लिए पुरुषों की अपेक्षाएं महिलाएं ज्यादा जिम्मेदारी व कुशलता से अपने अहंकार को दरकिनार कर मेल मिलाप का पहल कर अपने बड़प्पन का परिचय तो देती ही है….. साथ में बिखरते हुए परिवार को भी संवारने का काम बड़ी चतुराई से कर जाती हैं…!

  (स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ,अप्रकाशित रचना)

साप्ताहिक प्रतियोगिता: # समझौता अब नहीं

संध्या त्रिपाठी

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