ऐसी बहु हो तो बेटी की क्या जरूरत – कुमुद मोहन 

“बेटा क्या थोड़ा टाइम निकाल कर मुझे एक जगह ड्राॅप कर दोगी?” नीरा ने अपनी बहू सुमी से पूछा?

“क्यूँ नहीं मम्मा,कब कहाँ जाना है बताईये?” सुमी ने बड़े प्यार से कहा।

“असल में जब हम कानपुर में थे,हमारे पड़ोसी शर्मा जी से हमारी अच्छी दोस्ती थी,उनकी वाइफ़ का मायका यहाँ है,लंबा अरसा हो गया उनसे कोई कान्टेक्ट भी नहीं रहा था, कल उन्होंने फेसबुक पर मुझे ढूँढ लिया,वही थोड़ी देर को मिलना चाहती हैं, मैंने सोचा जब तुम फ़्री हो तब उनके घर चले चलेंगे।”नीरा ने कहा।

“कैसी बात करती हैं आप,जब कहेंगी मैं चलूंगी,आप थोड़ी देर बैठना चाहेंगी तो मैं रूक जाऊँगी,ज्यादा देर बैठेंगी तो दुबारा पिक करने आ जाऊँगी, आप टेंशन मत लो,इतने दिनों बाद बाहर निकल रही हो,आराम से चलो” सुमी बोली।

नीरा के पति समीर और बेटा विवेक अपने बिज़नेस में व्यस्त रहते,नीरा शुरू से ही हाऊस वाइफ़ रहीं, पढ़ी लिखी होने के बावजूद भी समीर और उनकी माँ  ने उसे घर से बाहर निकल कर काम करने की इजाज़त नहीं दी।माँ के तानाशाही रवैये और समीर के श्रवण कुमार होने के कारण नीरा का टैलेंट दब कर रह गया।

बहू सुमी एक एन.जी.ओ. में महिलाओं के वृद्धाश्रम के लिए  मनोचिकित्सक का काम कर रही थी।हफ़्ते में तीन दिन जाती, बाकी दिन समीर और विवेक के फैक्ट्री चले जाने पर दोनों सास-बहू घर के कामों से फुर्सत पा,कभी कहीं सेल में या सुमी नीरा को किसी पेंटिंग्स एक्जीबिशन दिखाने जरूर ले जाती।कहीं काॅफी पीते या आइसक्रीम खातीं एक दूसरे की कंपनी ऐंजाय करती।नीरा को गार्डनिंग का शौक था, सुमी उसे नर्सरी भी ले जाती।

वैसे तो पूरा घर नीरा ने सँभाल रखा था पर जिस दिन सुमी घर पर रहती वो हमेशा नीरा को पेंटिंग बनाने या लिखने का टाइम देकर सारा काम खुद सँभाल लेती।




उस दिन सुमी ने नीरा को पूछा “मम्मा!आज चलें क्या?मिसेज़ शर्मा से प्रोग्राम तय करके दोनों तैयार होने लगीं, सुमी ने नीरा के लिए हल्का गुलाबी सलवार सूट निकाला “ये आप पर बहुत अच्छा लगता है “।

सुमी आऊट गोइंग होने के साथ-साथ होमली भी थी।पिछले साल ही विवेक और सुमी की शादी हुई थी।

वह ज्यादातर वेस्टर्न ,प्लाजो-कुरता या जींस- कुरती पहनती पर जो भी पहनती सोबर और मर्यादित होता। बाकि अवसर के अनुसार साड़ी,सूट सब पहनती।

लगभग ग्यारह बजे वे मिसेज़ शर्मा के घर पहुँची ,मिसेज़ शर्मा नीरा को गले मिलकर कुछ पलों तक उसे देखती रह गई ” तुम और सलवार सूट में?अम्मा जी ने कैसे परमिट कर दिया?मुझे याद है वो तो तुम्हारे सर से साड़ी का पल्ला ज़रा सा भी सरक जाने पर भी हंगामा काटा करती थीं,”अरे!उन्हें तो रात को बैड रूम में भी तुम्हारे नाईटी पहनने पर एतराज़ था।

नीरा ने बताया अम्मा जी तीन साल पहले गुज़र गयीं।

मिसेज़ शर्मा लंबी सांस लेते हुए बोली “चलो! भगवान उनकी आत्मा को शांति दें,पर जो ज़ुल्म वो तुम पर करतीं थीं  चार साल हमनें भी देखे थे”।

नौकरों चाकरों सहित पूरे घर पर अम्मा जी का हुक्म चलता था, खाना पीना सब कुछ अम्मा जी हिसाब से बनता, चाहे किसी को पसंद हो या नहीं। नीरा को  सुबह उठने की वज़ह से अम्मा जी की चाय को ज़रा सी देर हो  जाती तब उनका पारा देखने लायक होता था।  वो और नीरा कभी एक साथ बैठ भी जाते तो अम्मा जी वहीँ धरना देकर बैठ जातीं, कहीं हम उनकी बुराई न कर लें। नीरा के कहीं भी आने जाने यहाँ तक कि अपने मायके वालों से फोन पर बात करने पर भी अम्मा जी का कंट्रोल रहता था। नीरा के हर काम में नुक्स निकालना उनकी आदत था।बाहर वालों के सामने भी नीरा को नीचा दिखाने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता था।




जितना एडजस्टमेंट तुमने अम्मा जी के साथ किया उतना तो कोई भी नहीं कर सकता था।

“अगर नीरा के ससुर ज़िन्दा होते शायद वो भी इतने खुरार्ट ना होते, मेरी बेटी तो अम्मा जी को देखकर कहती थी,उसकी शादी ऐसे घर में मत करना जहाँ ऐसी सास हो”

मिसेज़ शर्मा बोलतीं जा रहीं थीं।

नीरा ने उन्हें रोक लिया,”छोड़िये उन बातों को,  सुमी को कुछ नहीं पता, और अब जो इस दुनिया में नहीं हैं उनके बारे में क्या कहना।”

मिसेज़ शर्मा कहने लगीं “,तुम लोगों की केमिस्ट्री देख कर बहुत अच्छा लगा,तुम्हें देखकर कोई कह नहीं सकता तुम दोनों सास-बहू हो। चलते वक़्त सुमी ने मिसेज़ शर्मा से कहा “आंटी!आपको जब भी मम्मा के पास आने का मन हो, बताईयेगा,मैं  आकर ले जाऊँगी”




मिसेज़ शर्मा नीरा से बोली, “मै तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ,भगवान ने तुम्हारे सब्र और बर्दाश्त का फल सुमी के रूप में तुम्हें दे दिया है। खुश रहो।

घर आकर सुमी नीरा और अम्मा जी के रिश्ते के बारे में ही सोचती रही।

शाम को सुमी ने नीरा से कहा “मम्मा!ये बताईये आपने मुझे तो कभी सर ढकने के लिए नहीं कहा,सर ढकने की छोड़िये,आप तो हर हफ़्ते मेरे सिर में मालिश करती हैं,मुझे कभी देर से उठने के लिये नहीं टोका, मैं कुछ भी पहनूँ, कहीं जाऊँ, कुछ भी खाऊं,कुछ भी करूँ आप कभी कुछ नहीं कहतीं।मेरी किसी ग़लती पर भी आप रिएक्ट नहीं करतीं,मेरी सारी फ्रेंड्स मुझसे ज़्यादा आपको पसंद करती हैं।कोई तो वज़ह होगी आपके इस सरेंडर की?प्लीज़ बताईये?

नीरा ने सुमी के आगे आपना दिल खोल दिया “तुम्हारे आने से पहले ही मैंने तय कर लिया था जिन मुश्किलों से मुझे गुज़रना पड़ा था तुम पर उसकी परछाईं भी नहीं पड़ने दूँगी,”जो लड़की अपना सबकुछ छोड़ कर आईं हैं उसे खुले दिल से अपनाउंगी,ये घर और सब लोग उसके अपने हैं ये एहसास करवाऊंगी,उसे टाइम और स्पेस दूँगी, मेरी वज़ह से मेरे बेटे-बहू का दिल कभी ना दुखे यह प्रोमिस की थी मैंने खुद से”।

 

अम्मा जी की वज़ह से ही मुझे एडजस्टमेंट करना आया,बड़ों द्वारा की गई गलतियों से अगली पीढ़ी सबक लें, अपनी सास द्वारा किये गए ज़ुल्मों का बदला वो बहू से लें यह सोच बहुत ग़लत है”।

“मम्मा!यू आर द बेस्ट “कहकर सुमी नीरा से लिपट गयी ” चलिये, अब एडजस्टमेंट के नाम पर एक एक कप मसाला चाय हो जाऐ।”

दोस्तों!

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कुमुद मोहन

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