अपाहिज कौन है – संगीता त्रिपाठी

“ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने।” सुमन जोर से चिल्लाई। तुझे क्या लड़कियों की अकाल पड़ी थी जो एक पैर ख़राब वाली लड़की से कोर्ट- मैरिज कर ली।

“नहीं माँ!!मैंने कोई अनर्थ नहीं किया एक दिन आप भी महसूस करोगी “सोहम ने सुमन को समझाते हुई कहा।

“मेरे बेटे को फंसा कर तुम्हे चैन मिल गया मै तुम्हारी चाल कामयाब नहीं होने दूंगी।” सुमन ने श्रुति से कहा  जिसका एक पैर पोलियो से ख़राब था।

श्रुति मुँह छिपा सिसक पड़ी। सोहम को कितना समझाया। तुम्हारी माँ नहीं मानेंगी पर सोहम अपनी जिद पर अड़ा था। श्रुति सोहम के साथ बैंक में काम करती थी। भगवान ने उसका एक पैर जरूर ख़राब दिया पर रूप भरपूर दिया। रूप ही नहीं दिल भी सोने का दिया। सोहम श्रुति के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित था। सोहम ही क्यों बैंक के सभी कर्मचारियों में श्रुति लोकप्रिय थी। उसका व्यवहार ही इतना अच्छा था कि पराये को भी अपना बना लेता था। सोहम जब भी श्रुति को देखता उसका मन भर जाता। सर्वगुण होकर भी शादी के बाजार में उसकी कीमत कम थी पैर जो ख़राब था।  दिमाग के अपाहिज लोगों को दिल की सुंदरता नहीं दिखती थी।

बैंक का वार्षिक समारोह था। श्रुति ने मंच संचालन तो बेहतरीन किया ही साथ ही उसके सुनाये गीत ने हॉल में तालियों की गूंज को  एक मिनट के लिये भी विराम नहीं लेने दिया।”वन्स मोर “का आग्रह ख़त्म ही नहीं हो रहा था। सोहम श्रुति के इस गुण से वाक़िफ़ नहीं था।आज उसे लगा उसका दिल तो श्रुति ने पहले ही चुरा लिया था। पर आज जीवनसंगिनी बनाने का इरादा भी दृढ़ कर दिया था। एक दिन मौका देख  सोहम ने श्रुति से अपने प्रेम का इजहार कर ही दिया।




 “तुम होश में हो सोहम कहाँ तुम हैंडसम और ब्रिलियंट नौजवान और कहाँ मै अपाहिज। तुम्हें बहुत लड़कियाँ मिल जाएंगी।”

“श्रुति मै गंभीर हूँ और बहुत सोच-समझ कर प्रपोज़ कर रहा हूँ।” सोहम ने थोड़ा गंभीर होते हुये कहा।

पहले श्रुति नहीं मानी पर सबके समझाने पर हामी भर दी। सोहम ने जब अपनी माँ सुमन को बताया तो सुमन भड़क गईं। पिता ने तो कुछ नहीं कहा क्योंकि वो श्रुति से मिल चुके थे। बेटे की पसंद पर उन्हे गर्व था।

“उसे कोई और नहीं मिला जो मेरे बेटे को फंसा ली ।”सुमन बार-बार यहीं कहती।

“माँ आप तो समाज सुधारक हो अपनी महिला मंडली में इतना भाषण देतीं हो क्या ये सब दिखावा हैं।”

“बाहर बोलने की बात अलग हैं घर की बात अलग हैं।” सुमन ने सोहम को डांटते हुये कहा।

आज  सोहम ने माँ के नहीं मानने पर कोर्ट-मैरिज कर ली। श्रुति को घर ले आया। तब से सुमन चिल्ला रही थी। बेटे की शादी के लिये देखें अनगिनत स्वप्न चकनाचूर हो गये थे।हालांकि रमन जी सोहम के साथ थे। पिता के सपोर्ट ने सोहम को और हिम्मत दें दी।




 सुमन का व्यवहार श्रुति के प्रति बहुत ख़राब था। पर श्रुति सुमन के कटु वचन और अवहेलना को  सोहम के प्यार की वजह से हँस कर बर्दाश्त कर ले रही थी। सोहम सच में श्रुति को बहुत प्यार करता था।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था। सुमन को जब मौका मिलता श्रुति को प्रताड़ित करने से बाज नहीं आतीं। एक दिन श्रुति की तबियत कुछ ठीक नहीं थी। वो छुट्टी ले घर पर थी। तभी उसे जोर से किसी के गिरने की आवाज आई। श्रुति भागी देखा ससुर जी सोफ़े से नीचे गिरे हुये थे। सुमन जी उनको उठाने की कोशिश कर रही थी। श्रुति ने जल्दी से रमन जी को उठाने में मदद की अस्पताल फ़ोन कर एम्बुलेंस बुला ली। जब तक एम्बुलेंस आतीं वो रमन जी को प्राथमिक उपचार देतीं रही। सोहम को फ़ोन कर दी। अस्पताल में पैसों की डिमांड होने पर श्रुति ने तुरंत कार्ड निकाल कर पेमेंट कर दिया। सोहम का इंतजार नहीं किया। सुमन के पास बैठ सुमन को सांत्वना देने लगी। थोड़ी देर में डॉ. बाहर निकले बोले अभी रमन जी खतरे से बाहर हैं। आप लोग सही समय पर उन्हें अस्पताल ले आये। सबने डॉ को धन्यवाद दें उस अदृश्य शक्ति को प्रणाम किया जिनकी वजह से रमन जी का जीवन बच गया।




सुमन श्रुति को दौड़-भाग करते देख रही थी। एक पैर छोटा होने से भी उसकी गति में कोई कमी नहीं थी। जिस तत्परता से उसने सारे अरेंजमेंट किया।वो काबिले-तारीफ़ था।सुमन जी ग्लानि से भर उठी।जिस लड़की को उन्होंने कभी बहू नहीं माना आज उसने बेटी की तरह देख-भाल की।

कुछ समय बाद रमन जी घर आ गये। श्रुति ने बैंक से छुट्टी ले जी-जान से रमन जी की सेवा की। रमन जी स्वस्थ हो गये। एक दिन रमन जी ने सुमन को बोले-“तुम श्रुति की इतनी अवहेलना करती हो पर श्रुति ने कभी तुमसे शिकायत नहीं की। आज मै तुम्हारे सामने जीता-जगता बैठा हूँ तो श्रुति की वजह से ही।”अब तक सुमन का भी ह्रदय परिवर्तन हो चुका था। रमन जी के इतना बोलते ही उनकी आंखे बरसने लगी।

“वो अपाहिज नहीं है अपाहिज तो हम लोग हैं जिनकी सोच में विकार हैं। क्या हुआ अगर उसका एक पैर छोटा हैं उसका दिल तो बहुत बड़ा हैं। सच हम भाग्यशाली हैं जो श्रुति जैसी बहू हमें मिली।” सुमन के कहते ही दरवाजे से आवाज आई “तो माँ…. आपने मान लिया की मेरी पसंद बहुत अच्छी हैं मैंने कोई अनर्थ नहीं किया।””हाँ बेटे!! आज से मै सिर्फ बोलूंगी ही नहीं बल्कि सुधार के काम भी करुँगी ।”

श्रुति का हाथ पकड़ सुमन ने कहा “अपनी माँ को माफ नहीं करेंगी।”

“माँ तो आदरणीय होती हैं।”कह श्रुति सुमन के गले लग गईं। माँ को बेटी मिल गईं और बेटी को माँ.।

दोस्तों आप क्या कहते हो मेरे इस ब्लॉग पर क्या किसी का शारीरिक विकार इतना बड़ा हो जाता हैं कि उसके बाकी गुण छिप जाते हैं। क्या शारीरिक विकार वाले लोग ही अपाहिज हैं सुमन जैसी सोच वाले लोग अपाहिज नहीं हैं।सुमन की तरह बहुत समाज सुधारक होते हैं जो बोलते कुछ हैं करते कुछ और।क्या आप बता सकते हैं अपाहिज कौन हैं…? वो जो शारीरिक विकार से ग्रस्त हैं या जिसकी सोच में विकार हैं।

–संगीता त्रिपाठी

 

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