एक थी सरु – बरखा शुक्ला

ये कहानी है मेरी मनोरमा मतलब मनो और मेरी सखी सरला याने सरु की । सच कहूँ तो ये सरु की कहानी है ,बस कह मैं रही हूँ ।हम दोनो बचपन की सहेलियाँ और पड़ोसी भी । साथ साथ पढ़ते अब बी .ए . कर रहे थे । ज़ाहिर है साथ ही कॉलेज जाते ,बी.ए . फ़ाइनल के बीच के दिनो की बात है , हम दोनो ने ही ध्यान दिया ,जब हम कॉलेज के लिए निकलती तो गली की छोर पर एक लड़का बाईक से हमारा कॉलेज तक पीछा करता । लौटते समय भी गली के मोड़ तक आता ।

सरु एक दिन बोली “मनो कौन है लड़का ।ये बात तो पक्की है पीछा वो हमारा ही करता है ।  “

मैं बोली “सरु वो तुझे ही तकता चलता है ।तेरे लिए ही आता है । “सरु सच में बड़ी सुंदर थी ,गोरा रंग तीखे नैन नक़्श कुल मिलाकर खूबसूरत ।

“तू फ़ालतू बात न कर अम्मा ने देख लिया न ,तो पढ़ाई छुड़ा कर घर बैठा देगी । “ सरु बोली ।

बात सही थी सरु की माँ सौतेली थी । बड़ी मुश्किल से कॉलेज के लिए मानी थी  ।उसमें भी वो घर का सारा काम करके आती व घर जाकर फिर काम में जुट जती । पढ़ने में अच्छी थी ,इसलिए पिता जी ज़िद करके पढ़ा रहे थे ।

एक तो छोटा सा शहर ,बात फैलने में देर न लगती ,जबकि गलती हमारी कुछ न थी ।

सरु बोली “वैसे ये है कौन ?”

“अरे तेरा दीवाना है Iऔर क्या ।”मैं हँस  कर बोली ।

“तुझे मज़ाक़ सूझ रही है , ऐसा तो फ़िल्मों में होता है ।” सरु बोली ।

एक दो दिन में मैंने जानकारी जुटा ली , लड़का मिश्रा किराना वालों का था । कहाँ सरु इतनी सुंदर वो साँवला सा ठीक ठक सा था ।और तो और १२ वी  तक पढ़ के पढ़ाई छोड़ दी थी ।

पर उसका पीछा करना बिना नागा जारी था ।

एक दिन सरु बोली “मनो आज तो इससे बात करनी पड़ेगी ।”घर में पिता जी को बताया और अम्मा ने सुन लिया तो खैर नही ।”

“तू बात करेगी ।”मै थोड़ी डरपोक थी ।


“हाँ करती हूँ । उस दिन गली पूरी सूनी पड़ी थी । सरु मेरा  हाथ पकड़ रुक गयी ।वो सकपका कर पलटने लगा ।सरु बोली “सुनो क्या नाम है तुम्हारा ?”

वो राजू  ,राजेश ।

“हाँ जो भी है ,रोज़ हमारा पीछा क्यों करते हो । हमारी पढ़ाई बंद करवाओगे क्या ।कल से दिखना मत ,नही तो घर पर शिकायत करेंगे ।” सरु बोली ।

वो चुपचाप चला गया ।

इसके बाद कॉलेज की दो दिन छुट्टी थी । छुट्टी के बाद देखा वो गली के छोर से कॉलेज तक कही नही दिखा ।

चलो पीछा छूटा ।”मै बोली ।

पर पता नही  क्यों मुझे सरु कुछ उदास सी लगी । कॉलेज में भी बुझी बुझी रही । वो दो तीन दिन और नही दिखा , सरु को उदास देख मैं बोली “कही तुझे उससे प्यार तो नही हो गया । वो बोली “कुछ भी ऐसा तो फ़िल्मों में होता है ।”

चौथे दिन घर लौटते समय खुद की दुकान के सामने खड़ा था ,मैंने देखा सरु के चेहरे पर रौनक़ आ गई ।

हमें देख साथ खड़े दोस्त से थोड़ा ज़ोर से बोला “ यार जीजी को लेने गया था ,जीजा जी ने एक दिन ज़्यादा रोक लिया ।”

अब वो रोज़ ही कॉलेज आने जाने के समय दुकान पर बैठा दिखने लगा ।

सरु ख़ुश थी और मैं उसकी ख़ुशी में ख़ुश । दोनो की आँखे चार होती ,दोनो के अधरों पर मुस्कान आ जाती ।

साल इसी में गुजर  रहा कि परीक्षा आ गयी । आख़री पेपर के दिन सरु बोली “चल उसकी दुकान पर चलते है । “

उस समय दुकान पर कोई नही था ,सरु बोली “मनो इनको बात दे कि अम्मा चार महीने बाद मेरी शादी की तैयारी में है ,ये इसके पहले अपने घर वालों को भेज कर बात कर ले ,नही तो फिर कुछ नही हो सकता ।”

वो कुछ जवाब देता उसके पहले दुकान में कोई आ गया । हम दोनो दुकान से बाहर निकल गई ।


“वाह  जवाब नही तेरी हिम्मत का ।” मैं बोली ।

“तो क्या करूँ बहुत जी ली दूसरी की मर्ज़ी से , अब मेरा भी मन अपने तरह जीने का करता है ।” सरु बोली ।

“पर सीधे शादी की बात ,उसने कभी कुछ कहा भी  नही ।” मैं बोली ।

“अरे पागल आँख़ो  की भाषा भी कुछ होती है । तू नही समझेगी , चाहता तो बहुत है वो मुझे ,फ़िल्मों में भी तो ऐसा ही होता है ।” सरु बोली ।

असल में सरु पर फ़िल्मों का बड़ा असर था । अब आप बोलेंगे कि उसकी अम्मा उसे मूवी देखने देती थी । तो वो क्या था

कि उसकी अम्मा फ़िल्मों की शौक़ीन और पिताजी को मूवी नापसंद ,तो थिएटर जाने के लिए साथ चाहिए , तो मेरी माँ ,वो  सरु और मैं उनके मूवी के साथी । घर में भी टी.वी . पर मूवी चलती ।जो काम व पढ़ाई के बाद सरु देख ही लेती ।

कॉलेज जाना बंद होने से अब हम दोनो भी कुछ  देर मिल पाते मुझे तो ज़्यादा काम नही होता था  , पर वो पहले ही सारे काम करती थी ,अब तो पढ़ाई भी नही थी ,तो सब भार उस पर डाल अम्मा बेफ़िक्र थी ।उसके घर में अम्मा पिताजी के अलावा जुड़वा सौतले  भाई थे ,जो उसे बहुत चाहते थे ।

ऐसे ही घर में रहते सावन का महीना आ गया , सरु ख़ुश हो गयी ।सावन के सोमवार को हम दोनो की माँ सुबह मंदिर जाती , और हम दोनो शाम को , मेरे भैया तो बड़े थे पर सरु के दोनो भाई चिंटू पिंटू हमारे साथ चल देते । मंदिर के रास्ते संजू की दुकान पड़ती , सरु शिकायती नज़रों से उसे देखती , वो मनुहार भरी नज़रों से उसे ।ऐसे हफ़्ते में एक दिन दोनो एक दूसरे को देख लेते ।

यहाँ उसकी अम्मा रिश्ते के लिए उसके पिताजी के पीछे पड़ी थी । फिर सावन ख़त्म होने से ये सिलसिला भी ख़त्म हो गया। चिंटू पिंटू सरु के पास ही सोते ,एक दिन चिंटू रात में धीरे से बोला “दीदी मिश्रा किराना वाले राजू भैया हमें रोज़ चोकलेट खिलाते है । “

“तुम क्यों खाते हो ।”सरु ने डपटा ।

“दीदी अम्मा जहाँ शादी को बोल रही है ,उस से तो वो ही अच्छे है । “चिंटू बोला ।

“क्यों उन ने तुमसे कुछ कहा है क्या ?”सरु ने पूछा ।

“हाँ बोले तुम्हारी दीदी से बोलना हम नवरात्र में तुम्हारे घर आएँगे ,तुम्हारे जीजाजी तो हम ही बनेंगे ।”चिंटू ने बताया ।

“तुमने ये बात किसी से कही तो नही ।”सरु ने पूछा ।

“नही दीदी पिंटू से भी नही । “ चिंटू बोला

अब सरु के पास इंतेज़ार के सिवा कोई चारा न था ।

पर फिर भी वो बुदबुदाना न भूली थी “ऐसा तो फ़िल्मों में होता है ।”

समय बीतते कहा देर लगती है ,नवरात्र के चार दिन गुजर गए थे ।वो तो अच्छा था जहाँ सरु की अम्मा बात चला रही थी उनके घर गमी हो गई थी ,तो बात टल गई थी ।

सरु बड़ी श्रद्धा से व्रत कर रही थी ,अब तो मै भी मना रही थी उसकी मनोकामना पूरी हो ।


पाँचवाँ दिन की भी शाम घिर आयी थी ,मैं व सरु छत पर खड़े थे , सरु की आँखे भर आयी थी बोली “मैं न कहती थी कि ऐसा सिर्फ़ फ़िल्मी में होता है ,वो न आएगा ।”

“जाने दे सरु तुझसे कम पढ़ा लिखा है ,दिखता भी ठीक ही  है । “

“पर मनो अम्मा के बताए रिश्ते से तो लाख गुना अच्छा है ,  सबसे बड़ी बात मुझे चाहता है ।”सरु बोली ।

“अरे चाहता होता तो भेजे न घर वालों को  ।”मैं बोल पड़ी ।

इसका क्या जवाब देती सरु ।

छठवें दिन उदास सी सरु काम में लगी थी ,तभी घर के सामने ऑटो रुका ,उसमें से राजू के माँ पिता उतरे ।

सरु के पिताजी घर पर ही थे ,अरे आइए मिश्रा जी ।

उन्हें बैठक में बैठा आवाज़ दी “अरे पिंटू की अम्मा देखो तो कौन आया है । “उन्हें आया देख सरु की अम्मा का माथा ठनका ।

पर मेहमान का स्वागत तो करना था ।

सरु को चाय बनाने का बोल वो बाहर आयी ।

राजू के पिताजी बोले “देखिए शुक्ला जी हम अपने बेटे राजू के लिए आपकी बेटी सरला का हाथ माँगने आए है । “

“देखिए आप  मना न करिए हमें आपकी बेटी बहुत पसंद है , आप राजू को तो जानते ही है ,आजकल पूरी दुकान वो ही सम्भाले है ।राजू की माँ बोली ।

सरु के पिताजी ने मन ही मन अम्मा के बताए लड़के व  राजू  के बीच तुलना की , और कुछ बोलना चाहा ,तभी सरु की अम्मा बोली , “अरे शादी विवाह की बातें कही  ऐसे जल्दी में होती है क्या , वैसे भी सरला की बात एक जगह लगभग पक्की ही है ।”ये सुन रसोई में चाय छानती सरु के हाथ काँप गए ।

“अरे भाभी जी हमें आपकी बेटी के सिवाय  कुछ नही चाहिए ,आप बस मान जाए । राजू के पिताजी बोले ।

“अरे नही मिश्रा जी हमें रिश्ता मंज़ूर है ।हमारी बिटिया की शादी हम बड़ी धूमधाम से करेंगे ।”सरू के पिताजी बोले ।

उसके बाद वो लोग सरु को अँगूठी पहना कर ही गए ।

राजू ने अपना वादा निभाया ,अब सरु कहती है असल ज़िंदगी में भी ऐसा होता है ।

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