वो प्रायश्चित करना चाहता हूँ उस गलती के लिए जो उससे अनजाने में हुई है । वैसे तो कहते हैं अनजाने में हुई गलती को भगवान भी माफ कर देते है पर क्या खुद का जमीर माफ करता है जी हाँ कुछ गलतियां ऐसी होती है जिन्हें शायद भगवान माफ कर दे पर अपना जमीर नहीं माफ करता ।
ऐसा ही कुछ हुआ नितिन के साथ नितिन जो पेशे से एक वकील था पैसा लेकर कुछ भी कर सकता था जी हां कुछ भी किसी से मकान खाली कराना हो या दुकान , किसी भी केस को सही साबित कर देता था वो । नितिन ये सब सोचते सोचते उस दिन को याद करने लगा जब उसके पास एक व्यक्ति आया था ।
“एक घर खाली करवाना है साठ साल से किराए पर रह रहे वो लोग करोड़ों की जमीन है और किराया मामूली सा ।” उस व्यक्ति जिसने अपना नाम रविन्द्र बताया था बोला।
” साठ साल से रह रहे है तो काम मुश्किल है !” नवीन बोला।
” आपके लिए कौन सा मुश्किल है …दरअसल वो मेरे दादा की जमीन थी अब उस पर मै बहु मंजिला इमारत बनवाना चाहता हूं । उसकी एक एक मंजिल करोड़ रुपए की बिकेगी !” रविन्द्र बोला।
” पर मुझे इसमें क्या फायदा होगा ?” नवीन ने पूछा ।
” दस लाख !”
” करोड़ों की जमीन और कीमत दस लाख !” व्यंग्य से मुस्कुराते हुए नवीन बोला ।
” अरे तो जमीन तो मेरी है चलिए मैं आपको पंद्रह लाख दे दूंगा पर जमीन जल्दी से जल्दी खाली करवा दीजिए आप !” रविन्द्र बोला।
” पच्चीस लाख एक दाम मंजूर हो बोलो !” नवीन कुटिल मुस्कान के साथ बोला।
” ठीक है तुम्हे तुम्हारे पैसे मिल जायेगे बस मुझे मेरी जमीन दिला दो !” रविन्द्र कुछ सोचते हुए बोला।
नवीन ने छान बीन की तो पता लगा उस घर में साठ साल से एक परिवार रह रहा है तब उस जमीन का भाव मिट्टी बराबर था । लेकिन समय के साथ आसपास सुविधाएं बढ़ी तो जमीन के दाम भी आसमान छूने लगे शायद इसीलिए रविन्द्र को भी लालच आ गया । खैर नवीन को इससे क्या मतलब था उसे तो सिर्फ अपने पैसों से मतलब था । उसने अपने मुवक्किल की तरफ से केस डाल दिया और उसे तारीख भी मिल गई । किंतु सामने वाला पक्ष उस तारीख पर आया ही नहीं ना उनकी तरफ से कोई वकील आया । नवीन को बेहद हैरानी भी हुई पर उसके लिए तो ये अच्छा ही था । वैसे भी उसे नहीं पता था कि उस घर में कौन कौन रहता है उसे ये जानने की जरूरत भी नहीं थी । उसे तो बस पैसों से मतलब था ।
अदालत में उन्हें दूसरी तारीख मिली । उससे पहले नवीन ने सोचा चलो एक बार उस घर को देख कर आया जाए जिसके लिए रविन्द्र उसे इतनी मोटी रकम देने को तैयार हुआ है । एक दिन यूंही घूमते हुए वो उस घर के समीप पहुंचा घर क्या था एक जर्जर इमारत थी । वैसे जगह काफी थी , किंतु घर बहुत पुराना होने के कारण जगह जगह से पपड़ी उतरी हुई थी कही कही से प्लास्टर भी उखड़ गया था । ऐसा लगता था ये इमारत कभी भी गिर सकती है ।
नवीन ने घर का दरवाजा खटखटाया क्योंकि वहां घंटी का तो नामो निशान नहीं था।
” कौन है भाई अंदर आ जाओ दरवाजा खुला है !” अंदर से एक वृद्ध की आवाज आई ।
” जी मेरा नाम नवीन है मैं वो आपके पड़ोस में रहने वाले शर्मा जी का रिश्तेदार हूं । उनसे मिलने आया था पर शायद उनके घर में कोई नहीं है !” नवीन अंदर आते हुए बोला उसने अपनी पहचान छिपा ली थी ।
” बेटा तुम बैठो बाहर बहुत धूप है मैं अभी पानी लाता हूं !” सामने एक टूटे से तख्त पर बैठा बुजुर्ग बोला और धीरे धीरे चलता हुआ अंदर चला गया। नवीन पास के रखी इकलौती कुर्सी पर बैठ गया और कमरे का मुआयना करने लगा । बेहद साधारण सा कमरा था जिसमें एक तख्त रखा था जो शायद उस बुजुर्ग आदमी की उम्र जितना पुराना था और थी एक कुर्सी। कमरे की हालत घर में रहने वाले लोगों की गरीबी की गवाह थी।
तभी वो बुजुर्ग हाथ में पानी का गिलास लेके आए और नवीन को दिया । उनके पीछे पीछे एक वृद्ध महिला भी थी जो उनकी पत्नी थी उनकी हालत भी घर जैसी जर्जर थी पर उनके चेहरे को देख इतना नवीन को समझ आ गया था कभी इस मकान की तरह उनके चेहरे पर भी तेज था जो शायद लाचारी के कारण धूमिल हो गया।
” बेटा इस घर में बरसो बाद कोई आया है वरना तो बस मकान मालिक के भेजे गुंडे ही धमकाने आते है !” वो औरत नवीन को देख खुश होते हुए बोली।
” ये मकान आपका अपना नहीं है ?” नवीन ने जान बूझकर पूछा ।
” नहीं बेटा लेकिन हां ये हमारे लिए अपने से बढ़कर है छोटा सा था जब पिताजी इस शहर में बस गए थे तबसे इसी घर में है । इस घर के जो मालिक थे उनसे हमारे अच्छे संबंध थे उनके बेटे से मेरी मित्रता हो गई थी। पिताजी चले गए पर संबंध बरकरार रहे मकानमालिक के जाने के बाद उनके बेटे ने भी हमें कभी परेशान नहीं किया पर दो साल पहले वो भी दुनिया को अलविदा कह गया उसके बाद उनके पोते ने इस घर को पाने के लिए केस कर दिया हम पर ।” इतना बोल वो रोने लगे।
” आप भी क्या बात लेकर बैठ गए । बेटा तुम भूखे होंगे मै कुछ खाना बना देती हूं !” उन बुजुर्ग महिला ने स्नेह से कहा।
” नहीं नहीं माताजी आप परेशान मत होइए। वैसे आपके घर में कौन कौन है । आपके बच्चे कहां रहते है ?” नवीन के मन में उत्सुकता थी ।
” बेटा एक ही बेटा था हमारा बड़े जतन से उसे पाल पोस बड़ा किया । शादी भी की उसकी और हम दादा दादी भी बन गए पर ….!” ये बोल माताजी चुप हो गई क्योंकि उनका गला भर आया था।
” वो आपको छोड़ कही और चले गए !!” नवीन ने उनकी बात पूरी करनी चाही ।
” हां बेटा वो भी इतनी दूर जहां से कोई वापिस नहीं आता । आज से आठ साल पहले एक एक्सीडेंट ने मेरे बेटे का पूरा परिवार छीन लिया । हमारे बुढ़ापे की लाठी छीन ली । बस तबसे किसी तरह जिंदगी काट रहे हैं हम !” ये बोल वो बुजुर्ग बिलख पड़े। नवीन को ऐसा लगा जैसे सालों से उनके घर कोई मेहमान या रिश्तेदार भी नहीं आया इसलिए आज नवीन को देख बिना उसके बारे में जाने वो अपना दर्द उसके साथ बांट रहे थे । जाने क्यों नवीन की आंख भी भर आई जिसे उसने बाथरूम जाने से बहाने छिपा लिया ।
बाथरूम जाते हुए उसने पूरे घर को एक नज़र देखा पूरा घर उन वृद्ध दंपत्ति की तरह वक्त के थपेड़ों को सहता किसी तरह खड़ा था। घर के हालात बद से बदतर थे जाने कैसे ये लोग अपना गुजारा भी कर रहे होंगे । नवीन अपने आंसू पोंछ वापिस बैठक में आ गया। तब तो माताजी ने खाना परोस दिया था।
” अरे माताजी मैं खाना नहीं खाऊंगा आप लोग खाइए !” नवीन बोला।
” बेटा ऐसे कैसे हम अकेले खा लेंगे जानती हूं बस खिचड़ी है ये पर भूखे के लिए ये भी कभी कभी स्वादिष्ट पकवान सी लगती है वैसे भी ये खिचड़ी बहुत बढ़िया बनाती है !” बुजुर्ग बाबा बोले और मुस्कुराने लगे अपनी तारीफ सुन माताजी के चेहरे पर चमक और गालों पर लाली आ गई। नवीन से भी अब इंकार नहीं किया गया और वो खाने बैठ गया।
” आप नहीं खाएंगी माताजी?” नवीन ने पूछा।
” तुम खाओ मैं बाद में खा लूंगी बेटा !” माताजी बोली पर नवीन समझ गया माताजी ने अपने हिस्से का खाना उसकी थाली में परोसा है । आज उसने जिंदगी का एक नया पहलू देखा था , अमीरी उसने बहुत देखी थी आज उसने गरीबों का अमीर दिल देखा था। पैसा उसने बहुत देखा पर आज इंसानियत देखी थी । जैसे ही उसने खिचड़ी का निवाला मुंह में डाला उसे मां की याद आ गई । किसी तरह खाना खा वो उठा अब उससे झूठ नहीं बोला जाएगा उसने इनका नमक खाया है वो सब सच बता देगा ये सोच वो हाथ धोकर वापिस अपनी जगह आकर बैठा।
” बाबा …माताजी मैं शर्मा जी का रिश्तेदार नहीं हूं !” अचानक नवीन बोला।
” हम जानते है बेटा तुम शर्मा जी के रिश्तेदार नहीं हो !” बाबा मुस्कुरा कर बोले।
” क्या!!!!!! फिर भी आपने मुझे घर में बैठाया मुझे खाना खिलाया !” हैरानी से नवीन बोला।
” बेटा शर्मा जी को यहां से गए बरसो बीत गए उनका कोई रिश्तेदार यहां क्यों आएगा । रही तुम्हे बैठाने की बात बाहर धूप बहुत है और तुम खाने के समय आए और हमारे घर से कोई खाने के समय भूखा जाए ऐसा हो नहीं सकता !” माताजी ने कहा।
अब तो नवीन को पछतावा सा होने लगा उसने इनका केस लिया ही क्यों । अपने बीस साल के वकालत के कैरियर में उसने बहुत केस लड़े और जीते सही गलत सब तरीके से किंतु आज उसे पछतावा हो रहा था इसे सीधे सच्चे और लाचार लोगो के खिलाफ केस लेने का।
” बाबा दरअसल मैं रविन्द्र जी का वकील हूं उन्होंने मुझे इस घर को खाली कराने की फीस दी है । आप लोग कोर्ट की पेशी में नहीं आए तो मैं बस यूंही इधर चला आया ये घर देखने की इसमें ऐसा क्या है जो आप खाली नहीं करना चाहते !” नवीन शर्मिंदा हो सिर झुका कर बोले।
” बेटा तुम अपना काम कर रहे हो इसमें शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं । रही पेशी की बात अब मेरे पास न तो वकील को देने को पैसे है ना इतनी हिम्मत की मैं अदालत के चक्कर काट सकूं । और इस घर का मुझे कोई लालच नहीं बस मोह है क्योंकि यहां हमारे बच्चों की यादें है जीवन के अंतिम पड़ाव में हम इन यादों के साथ जीना चाहते है और इन्हीं यादों के साथ मर जाना चाहते है पर लगता है ऐसा संभव नहीं । अब हम हार मान चुके हैं अब जमा पूंजी लगा दी हमने इस घर में रहने के लिए पर शायद अब इसे छोड़ने का वक्त आ गया रिश्तेदारों ने तो कबसे मुंह मोड़ लिया था अब इस घर का साथ भी छूट जाएगा !” बाबा ये बोल रोने लगे , उन्हें रोता देख माताजी की आंखों में भी आंसू आ गए ।
” नहीं बाबा मैने आपका नमक खाया है मैं अब आपके खिलाफ केस नहीं लड़ पाऊंगा मैं रविन्द्र जी की फीस वापिस के दूंगा । आज मुझे समझ में आ रहा है जो लोग मुझे मुंह मांगी कीमत दे देते है उनको तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर जो केस हार जाते है उनकी तो दुनिया ही लुट जाती होगी । जाने अनजाने मैने कितने लोगों की हाय ली है !” एक सख्त मिज़ाज वकील आज बच्चों की तरह रो दिया।
” नहीं नहीं बेटा इसमें तुम्हारी गलती नहीं ये तो तुम्हारा पेशा है रही हमारी बात हम अब कितने दिन के मेहमान है इस जर्जर घर की तरह हम भी जर्जर हो चुके हैं क्या पता इसको गिराने से पहले हम ही इस दुनिया से विदा हो जाए । इस घर में हमारी कोई कीमती चीज नहीं बस कीमती यादें है जिन्हें हम दिल में दफन कर चले जाएंगे यहां से । हम यहां कोई कब्जा नहीं करना चाहते थे बस अपनी अंतिम सांस यहां लेना चाहते थे !” बाबा उसे चुप कराते हुए बोले।
” बाबा आप यहीं रहेंगे ये आपके इस बेटे का वादा है आपको यहां से कोई नहीं निकाल सकता कोई भी नहीं !” ये बोल नवीन वहां से उठकर बाहर चला गया और थोड़ी देर बाद कुछ फल और खाने का सामान ले लौटा।
” माताजी आपने जो खाना मुझे खिलाया उसकी कीमत तो मैं कभी नहीं चुका पाऊंगा पर जिसने अपने हिस्से के निवाले मुझे खिलाए उसे भूखा भी नहीं देख पाऊंगा मैं !” बाबा और माताजी द्वारा सामान के लिए मना करने पर नवीन हाथ जोड़ कर बोला। वो लोग नवीन के आगे निरुत्तर हो गए।
ऑफिस वापिस जा नवीन ने सबसे पहले अपने असिस्टेंट के द्वारा रविन्द्र के पैसे लौटा दिए और उसको फोन कर केस लड़ने से इनकार कर दिया।
” देखिए रविन्द्र जी उन वृद्ध पति पत्नी की जिंदगी कितनी बची है आप उन्हें वहां रहने दीजिए बाद में तो वो जमीन आपकी है ही ।”
” देखिए आप ये गलत कर रहे हैं मैने आपको मुंह मांगी कीमत दी है । रही जमीन की बात मुझे वो अभी चाहिए आप नहीं तो कोई और सही क्योंकि अब सामने वाला पक्ष ये केस लड़ने के काबिल ही नहीं रहा !” रविन्द्र गुस्से में बोला।
” आपने मुझे ये नहीं बताया था कि मुझे घर खाली करवाने के लिए इंसानियत को ताक पर रखना होगा । और रही उस जमीन को खाली करवाने की बात तो मैं भी देखता हूं कौन उसे खाली करवा सकता है क्योंकि अब मैं आपके खिलाफ केस लडूंगा !” नवीन बोला।
” ये तुम गलत कर रहे हो और तुम इंसानियत की बात कर रहे हो तुमने तो ऐसे कितने केस लड़े है और जीते हैं !” रविन्द्र गुस्से में बोला।
” गलत तो मैं अब तक करता आया हूं अब तो उन गलतियों का प्रायश्चित करने का समय है जो बीत गया उसे वापिस नहीं ला सकता पर अब गलत भी नहीं होने दूंगा मै !” नवीन ने ये बोल फोन रख दिया।
उसने रविन्द्र की तरफ से केस वापिस ले बाबा की तरफ से केस फाइल कर दिया और उसे तारीख भी मिल गई । तारीख वाले दिन वो खुद बाबा को लेने गया ।
” योर ऑनर बाबा इस घर में किसी लालच की वजह से नहीं रह रहे वो मजबूरी में रह रहे है वैसे भी साठ साल एक लंबा अरसा है मैं ये नहीं कह रहा कि मकान बाबा के नाम हो जाना चाहिए क्योंकि बाबा खुद ये नहीं चाहते बस वो इतना चाहते है जब तक वो दोनों पति पत्नी जीवित है उसी घर में रहे । यही सही फैसला भी है और इंसानियत भी ।” सारी बात रखने के बाद नवीन कोर्ट में बोला । दोनों वकीलों की काफी बहस भी हुई । यहां तक की रविन्द्र के वकील ने दूसरा घर भी देने की बात की पर नवीन जानता था उस घर से बाहर होकर बाबा और माताजी टूट जाएंगे पूरी तरह से।
जज ने फैसला सुनाने से पहले कटघरे में सहारे से खड़े लाचार बाबा को देखा जिनकी आंखों में आंसू और चेहरे पर बेचारगी थी।
” ये अदालत सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए ये फैसला करती है कि श्री विशम्भरनाथ जी ( बाबा) का पूरा हक है उस घर पर क्योंकि वहां उन्होंने कई पीढ़ी देखी है और वैसे भी उनकी देखभाल को कोई नहीं ऐसे में इंसानियत का भी यही तकाज़ा है उन्हें उनकी मिट्टी से अलग ना किया जाए क्योंकि बूढ़ा पेड़ अपनी जड़ छोड़ पनप नहीं पाएगा। रविन्द्र जी वो जमीन आपकी ही रहेगी क्योंकि विशंभर जी ने उसके मालिकाना हक का दावा नहीं किया किंतु आप उन्हें भविष्य में परेशान नहीं करेंगे जब तक वो उस घर में रहना चाहे मालिकाना हक के साथ ही रहेंगे !” जज अपना फैसला सुनाते हुए बोला।
बाबा की लाचार आँखें खुशी से चमक उठी । अदालत में बैठे सभी लोगों ने फैसले के स्वागत में ताली बजाई।
” धन्यवाद बेटा मुझे जिंदगी की सांझ में फिर से जिंदगी देने के लिए । मेरे पास तुम्हे देने को आशीर्वाद के सिवा कुछ भी नहीं है !” बाबा नवीन के सिर पर हाथ रखते हुए बोले।
” बाबा इस आशीर्वाद से बड़ा कुछ है क्या ? आपने तो मुझ जैसे इंसान को सही गलत का फर्क समझा दिया है पैसा बहुत कमाया मैने पर आशीर्वाद नहीं वो तो आज पहली बार कमाया है जो मेरे लिए सबसे कीमती है क्योंकि आज मेरा प्रायश्चित भी पूरा हो गया। और किसने कहा आपके पास मुझे देने को कुछ नहीं आपने और माता जी ने तो कीमत पहले ही चुका दी वो भी बहुत ज्यादा । उस एक थाली खिचड़ी की कीमत लाखों रुपए से ज्यादा है बाबा !” नवीन बाबा के पैर छूता हुआ बोला। आज उसके जमीर ने उसे माफ कर दिया था इसीलिए वो बहुत खुश था।
” बेटा अब मुझे घर जाना है कमला परेशान होगी कि जाने क्या फैसला हुआ है !” बाबा उसे आशीर्वाद देते हुए बोले।
” चलिए बाबा चलते हैं माताजी के हाथ से एक बार फिर खाना खाने का मन है मेरा भी । उनके खाने से मां के हाथ की खुशबू आती है !” नवीन उनका हाथ पकड़ गाड़ी की तरफ ले जाता बोला। रास्ते में रुककर नवीन ने मिठाई , फल और कुछ खाने का सामान खरीदा । बाबा ने बहुत मना किया पर नवीन ने उन्हें उनके बेटे का वास्ता दे दिया।
” कमला ओ कमला कहां है तू… देख हमें इस घर से अब कोई नहीं निकाल सकता । नवीन बेटा केस जीत गया हम केस जीत गए !” दरवाजे के बाहर से ही विशंभर जी खुशी की अधिकता में चिल्लाने लगे।
” मुझे पता था हमारा ये बेटा हमें हारने नहीं देगा इसलिए मैने आज खीर बनाई है !” दरवाजा खोलते ही माताजी बोली ।
” अरे वाह खीर … उसके आगे तो ये मिठाई फीकी लगेगी । माता जी आप ये मिठाई खाइए और मुझे खीर दीजिए खाने को बहुत साल हो गए मां के हाथ की खीर नहीं खाई !” नवीन मचलते हुए बोला।
” पर बेटा वो तो साधारण सी खीर है !” माताजी को शायद अंदेशा नहीं था नवीन भी साथ आएगा उन्होंने तो घर में रखे थोड़े से सामान से खीर बना दी थी।
” मां के हाथ की कोई चीज साधारण नहीं होती ये बोल नवीन कमरे में रखा खीर का डोगा ले खीर निकालने लगा। इतना बड़ा वकील आज बच्चों की तरह मचल रहा था । प्यार की ताकत ने उसे भी बदलने को मजबूर कर दिया था ।
” कितनी स्वादिष्ट खीर है मजा आ गया !” खीर खाते हुए नवीन बोला । कमला जी उसे खीर खाते देख ऐसे खुश हो रही थी मानो उनके सामने उनका बेटा ही बैठा हो ।
उस दिन के बाद भी नवीन बाबा और माताजी से मिलने जाता रहा उनकी जरूरत का सामान भी ले जाता था और खुद उसके बदले कीमती प्यार लेकर आता था । अब नवीन का हृदय पूरी तरह परिवर्तित हो चुका है अब भी उसकी गिनती बहुत अच्छे वकील के रूप में होती है पर अच्छे के साथ ही सच्चे वकील के रूप में भी क्योंकि अब वो किसी गरीब पर अत्याचार नहीं होने देता बल्कि उनका केस खुद लड़ता है । एक घटना ने उसकी जिंदगी इतना बदल दी उसे खुद यकीन नहीं होता । अब वो भले पैसे कम कमा रहा है पर दुआएं बहुत कमा रहा है । माताजी और बाबा तो अब उसके आने का इंतजार करते है क्योंकि उसमें उन्हें अपने बेटे की झलक जो दिखती है ।
दोस्तों ये भले एक काल्पनिक कहानी हो पर ये सच है कि प्यार किसी का भी हृदय परिवर्तित कर सकता है । आज भी अच्छाई कहीं ना कहीं बुराई पर हावी हो जाती है इसीलिए इंसानियत आज भी जिंदा है ।
#प्रायश्चित
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल