एक नई शुरुआत – अंतरा

आरती को बचपन से ही कला का बहुत शौक था। हालांकि उसने कहीं भी कोई कोर्स नहीं किया था फिर भी वह किसी   की भी शक्ल हूबहू कागज पर उतार देती थी …शायद भगवान का दिया वरदान था उसके हाथों में …लेकिन कला एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर ना तो मां-बाप कभी कोई ध्यान देते हैं और ना ही उसमें कोई  भविष्य उन्हें दिखाई देता है और फिर मध्यम वर्गीय परिवार तो इसे सिर्फ टाइमपास की चीज मानकर कभी इस पर पैसे खर्च करने की सोच भी नहीं सकता  । वही हुआ आरती के साथ इतना हुनर होने के बावजूद भी उसे ना तो कोई सहयोग मिला और ना ही किसी ने बढ़ावा दिया। हां.. तस्वीरें देखकर तारीफ सभी कर देते थे पर इसमें कोई कैरियर हो सकता है यह सभी के समझ के परे था। खुद आरती ने भी कभी नहीं सोचा कि वह कभी कला के क्षेत्र में करियर बना सकती है। माता-पिता भी घर के काम सीखने पर ही जोर देते रहते थे ।

समय बीता और वक्त के साथ आरती की शादी तय हो गई। आरती ने अपने होने वाले पति मनोज को खूबसूरत सी तस्वीर बनाकर गिफ्ट की जिसे देखकर वह भी चौंक गया। मनोज ने तो यहां तक कह दिया कि अगर वह शादी के बाद चाहे तो अपने शौक को निरंतर कर सकती है।  आरती को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि उसके पति को उसके हुनर की कद्र है ।

शादी के बाद मनोज ने अपने ही कमरे में एक मेज रखवा दी जहां आरती ने अपनी कला से संबंधित सारी चीजें ड्राइंग बुक, कैनवस, कलर, ब्रश वगैरह सजा कर रख दिया। आरती को इतना सहयोग और समर्थन कभी अपने मायके में भी नहीं मिला था इसलिए आरती बहुत खुश थी। घर के कामकाज के बाद आरती रोज थोड़ी देर कुछ ना कुछ बनाती रहती… हालांकि अब उसे वक्त बहुत कम मिलता था।

सास ,ससुर ,ननद और देवर से भरा पूरा परिवार था । आरती पर भी घर की जिम्मेदारियों का भार बढ़ता जा रहा था । वैसे तो उसे कोई भी अपने शौक को पूरा करने से नहीं रोकता था लेकिन घर का काम छोड़कर तस्वीरें बनाना भी आरती को नहीं भाता था। सास ससुर की सेवा.. तीमारदारी और देवर ननंद  की फरमाइशों में आरती इतना फस गई कि उसका शौक उन्हीं में कहीं खो कर रह गया। अब वह उस मेज तक  तभी पहुंचती ..जब उस पर पड़ी धूल को साफ करना होता।  मेज तो साफ हो जाती पर सपनों पर बड़ी धूल जियो की त्यों रह जाती ।




नन्द शादी कर अपने घर चली गई और घर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने के लिए देवरानी भी आ गई पर अब आरती पर खुद के दो बच्चों की जिम्मेदारी भी आ गई थी। आरती की मेज अब बच्चों की स्टडी टेबल बन गई थी और उसके सपनों को उसने डिब्बे में पैक कर अलमारी में रख दिया था। जाने कब वह डिब्बा स्टोर रूम में चला गया और आरती पूरी तरह से अपने सपनों से दूर घर गृहस्ती के चकरी में फंस कर रह गयी ।

समय के साथ साथ ससुर भी देव लोक को सिधार गए,   देवर अपने परिवार को लेकर दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.. आरती की बेटी रिम्मी  और बेटा मुकुल पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर में हॉस्टल में रहने चले गए  ।

इतने सालों तक भरे पूरे परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए अब खाली पड़ा घर आरती को काटने दौड़ता था। आरती का पति मनोज अपने ऑफिस में ही व्यस्त रहता था, आरती घर के पचड़ों से कभी फुर्सत ही नहीं पाई जो मोहल्ले में व्यवहार  बना पाती । लोगों की फरमाइशों पर नाचने वाली आरती अब घर पर अकेली जन बिन मछली की तरह छटपटाती थी ।

एक दिन स्टोर  रूम की सफाई के दौरान आरती को अपना वही पुराना डिब्बा मिला। डिब्बा तो हमेशा नजर के सामने था पर जिम्मेदारियों में फंसी आरती ने हमेशा अपने सपनों को अनदेखा कर दिया था पर आज उसने उस डिब्बे को स्टोर रूम से निकाला और काफी देर तक उसमें रखी अपनी पुरानी कलाकृतियों को देखती रही ।

आरती फुर्सत में तो थी ही, सोचा क्यों न कुछ बनाया जाए। रंग तो था सारे सूख चुके थे इसलिए उसने पेंसिल से ही स्केचिंग शुरू की। सालों पहले जो हाथ एक बार देखी सूरत को हूबहू उतार देते थे, आज आसान सी चीजें भी बनाने में सकुचा रहे थे..  लेकिन आरती ने भी हार नहीं मानी ।

अब आरती रोज कुछ ना कुछ बनाया करती। शाम को जब मनोज आते तो उन्हें भी अपनी बनाई  तस्वीर दिखाती…  मनोज भी जी भर के उसकी तारीफ करते और उसका पूरा सहयोग करते। आरती  बाजार जाकर अपनी जरूरत का सामान भी ले आई..  अब उसे पता चला कि 20 साल पहले की अपेक्षा अब बाजार में कला से संबंधित काफी अच्छे और सस्ते सामान भी मिल जाते हैं। महीने भर की प्रैक्टिस के बाद आरती में फिर से वही आत्मविश्वास और हाथ में सफाई आ गई थी।

एक दिन उसने अपनी फैमिली फोटो  की तस्वीर बनाई और उसकी फोटो अपनी बेटी रिमी के पास भेजी।  रिमी भी अपनी मां  की दबी प्रतिभा के बारे में जानती थी और जब उसने अपनी मां की बनाई तस्वीर को देखा तो वह दंग रह गई। उसने अपनी मां की जी भर कर तारीफ की और व्हाट्सएप फेसबुक और इंस्टा जैसे अपने अकाउंट पर हर जगह अपनी मां की बनाई पेंटिंग शेयर कर दी। रिमी के दोस्तों और परिवार वालों ने तस्वीर  को बहुत पसंद किया …रिमी के कई दोस्तों ने तो आरती से अपना पोट्रेट बनाने की फरमाइश भी कर दी और आरती मना भी नहीं कर पाई। आखिर उसकी इतनी तारीफ जो हो रही थी और उसे अपना सपना पूरा करने का मौका भी मिल रहा था। आरती को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि 20 साल पहले लोग कला को लेकर इतना उत्साहवर्धन नहीं करते थे जितना आज करते हैं ।  वह खुशी-खुशी लोगों की पेंटिंग बना दिया करती थी ।




रविवार का दिन था छुट्टियों में दोनों बच्चे भी घर आए हुए थे। सभी हंसी-खुशी डायनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे कि रिमी ने अपनी मां से कहा, ”  मम्मा आप अपनी कला को ही अपना व्यवसाय क्यों नहीं बना लेती?”

” मतलब मैं कुछ समझी नहीं” आरती  के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए

” देखिए मम्मा.. आज कितने लोग आपसे अपना पोट्रेट बनवा रहे हैं। इसका मतलब  आपके अंदर प्रतिभा है और आप अपनी पेंटिंग्स बेच भी सकती हैं”

” तो अब तुम चाहती हो ..मैं बाजार में दुकान खोल कर बैठूं और बिजनेस ना चला तो बेकार का नुकसान होगा। ना बाबा ना.. मेरे शौक को शौक ही रहने दो …बेमतलब के पचड़ों  में मुझे नहीं पड़ना है। “आरती ने अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास किया

“आपसे कौन बोल रहा है कि आप दुकान खोलो। आजकल तो बिना दुकान के भी बिजनेस होता है। अब देखो ना आपकी एक तस्वीर मैंने अपने सोशल अकाउंट पर शेयर किया और वह जाने कितने लोगों तक पहुंच गई और आपका हुनर भी । आपने कई सारे लोगों की फ्री में तस्वीरें बनाई है और लोगों ने आप का काम भी पसंद किया है तो क्यों ना अब आप अपने काम का मुनाफा भी लो। घर बैठे बिजनेस करो और अपना शौक भी पूरा करो।” रिम्मी ने आँखे मटकाते हुए अपनी बात ख़तम की

“पर यह सब होगा कैसे ?” मनोज ने भी अपनी उत्सुकता जाहिर की

” आप चिंता मत करो.. उसके लिए आपके बच्चे हैं ना ” मुकुल अपने कॉलर उचकाते हुए बोल

“हां मम्मा ..मैंने और मुकुल ने सब कुछ सोच लिया है। आप बस अपना शौक पूरा करो …आप के हुनर को लोगों तक पहुंचाने का काम हमारा है ..वह भी बिना किसी इन्वेस्टमेंट के।”

 “जिस इंटरनेट को आप रोज गालियां दिया करती हो.. अब उसी के बदौलत हम आपको फेमस कर देंगे.” मुकुल  आरती को छेड़ते हुए हसने लगा

“जैसा तुम लोग ठीक समझो.. मुझे क्या करना है.. बस वह बताओ” आरती अभी भी संशय में लग रही थी




“आपको सिर्फ अपने सपनों को कैनवास पर उतारना है।” रिमी ने अपनी मां के दोनों कंधों पर अपना हाथ रख कर उसकी आंखों में देखकर ऐसे कहा कि आरती की सारी चिंता दूर हो गई। अब उसे ऐसा लग रहा था कि उसके बच्चे इतने बड़े हो गए हैं कि अब वह सब संभाल लेंगे।

“हाँ आरती… मैं भी चाहता हूं कि तुम अपने सालों पुराने सपने को  जी सको..   भले ही यह बिजनेस चले या न चले… लोग तुम्हारी तस्वीरें खरीदें या ना खरीदें लेकिन तुम अपने सपने को जरूर पूरा करना… अपने शौक को बरकरार रखना..” मनोज की  इस बात से आरती के मन का बचा खुचा भय भी जाता रहा

बच्चों ने आरती की तस्वीरों के प्रमोशन के लिए इंस्टाग्राम पर एक अकाउंट बनाया और आरती की  बनाई तस्वीरों को शेयर कर दिया..  आरती की बनाई तस्वीरें इतनी सुंदर और दिल को लुभाने वाली थी कि लोग अच्छे दामों पर तस्वीरें खरीदने लगी और खुद के पोर्ट्रेट बनवाने के लिए और ऑर्डर्स भी देने लगे ।

अब आरती अपने खाली समय में अपने शौक को पूरा करती थी जिससे  अब उसे आमदनी भी होने लगी थी । जब शौक ही अपना पेशा  भी होता है तो काम करने के लिए मन को धकेलना नही पड़ता.. दिमाग में खुदबखुद नए आईडिया आते रहते है….काम में मन लगता है और उस काम में हम अपना 100% प्रतिशत देने का जूनून रखते है

ऐसा ही आरती के साथ था… समय के साथ अब उसमें कला के प्रति उत्साह और जोश भी दिखता था जिसकी वजह से उसकी तस्वीरों में हमेशा कुछ नया दिखता था

उसकी तस्वीरों की शहर में जब प्रदर्शनी लगी तो उसकी तस्वीरे अधिकतम दामों पर बिकी.. आज आरती को यह सब देख कर आश्चर्य हों रहा था कि उसका इतना पुराना शौक़ आज उसे इतनी कामयाबी दें रहा था.. लेकिन उसे इस बात कि संतुष्टि थी कि आज वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर अपने सपने को समय दें पा रही है.. कई लोग चाहे स्त्री हों या पुरुष अपने अंदर छुपी प्रतिभा को कभी जान ही नहीं पाते.. जान भी गये तो परिवार साथ नहीं देता.. या जिम्मेदारियों में फंस कर अपनी प्रतिभा को अपने अंदर ही दफ़न कर देते है..

अपनी प्रतिभा को निखारने का कोई वक़्त नहीं होता.. जब जागो तभी सवेरा… दुनिया का तो काम ही है उगते सूरज को सलाम करना… क्या पता वो उगता सूरज तुम ही हो.. अब देखो ना क्या आरती ने कभी सोचा था कि जिन रास्तों पर चलते चलते वो खुद को अकेला और ठहरा हुआ सा महसूस कर रही थी… उन्ही रास्तों पर एक ऐसा मोड़ आएगा कि वो अपने सपनों को जी सकेगी… दुसरो के लिए प्रेरणा बन सकेगी… नयी मंजिल को चुन सकेगी…

ये एक नयी शुरुआत थी आने वाले कल की…जहाँ एक नया सवेरा.. नया भविष्य.. उसका इंतज़ार कर रहा है

मौलिक

स्वरचित

अंतरा 

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