ससुराल में बहु का आखिरी दिन – प्रीती वर्मा

सुबह सुबह डोरबेल बजी। मैने दरवाजा खोला तो हैरान रह गई।सामने अपने पसंदीदा वाहन पर , मुख पर वही चिरपरिचित मुस्कान सजाए, साक्षात यमराज जी खड़े थे।

   मन तो डर गया,अब मन तो डरना ही था, वो यमराज जो ठहरे।उनकी जगह कोई और देवता या भगवान होते, तो मैं खुशी से झूम उठती।लेकिन यमराज जी को दरवाजे पर देख, डरना तो स्वाभाविक है।फिर भी मैने हिम्मत करके सादर प्रणाम किया।और उन्हें अंदर आने का आग्रह किया!और करती भी क्या, अथिति देवोभव का सवाल था।

  अपने वाहन से उतर वो आगे बढ़ते हुए बोले, “कन्या!धरती पर अब तुम्हारा समय पूर्ण हो चुका है , मैं तुम्हे लेने आया हूं, तुम मेरे साथ चलो”।

   यमराज जी की बात सुन पूरे घर में हलचल मच गई। सास, ससुर, देवर, नंद, और पतिदेव सब मेरी तरफ भागे।यमराज जी भावविभोर हो उठे मेरे प्रति सबका प्यार देखकर।तभी पतिदेव बोले.. “नीतू, आलमारी से मेरे कपड़े और टॉवेल निकाल देना प्लीज, मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है, फिर जाना”।

  यमराज जी के मुखमंडल के चिरपरिचित मुस्कान की जगह अब हैरानी की लकीरें खिंच गई थी। कि तभी दूसरी आवाज गूंजी ससुर जी की, “बहु जाने से पहले मुझे एक कप चाय बना कर दे दे”।पीछे से ननद जी भी बोली, भाभी मेरा नाश्ता रेडी किया या नहीं?मेरा नाश्ता रेडी करके तभी जाइएगा प्लीज। अब यमराज जी की आंखे चौड़ी हो गई थी…हैरानी से।




    देवर जी भी कहां पीछे रहने वाले थे, वो भी बोले. भाभी लगे हाथ मेरा भी नाश्ता तैयार कर देना प्लीज , फिर जाना।अब यमराज जी कभी मुझे देख रहे हैं, कभी बारी बारी से घर के सदस्यों को।और मैं खड़ी मंद मंद मुस्कुरा रही थी।इसलिए नही कि अब शायद यमराज जी मुझे जीवनदान दे देंगे, मैं मुस्कुरा इसलिए रही थी, क्योंकि ऐसा कुछ होने का मुझे पहले से अनुमान था।

   तभी एक और आवाज गूंजी..और ये आवाज सासू मां की थी…”बहु,  दालों और मसालों को जरा धूप में डालती जाना, धूप लग जाए जरा नही तो खराब हो जायेंगे, और हां आज का खाना भी बना कर रख जाना।

    मैं अभी भी खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी और यमराज जी अब बेहोश पड़े हैं। और मैं उनके होश में आने का इंतजार कर रही हूं, वो होश में आए तब मैं उनके साथ जाऊं।

   अरे हां, मैं तो भूल ही गई जबतक यमराज जी होश में आते हैं, तबतक मैं ये सारे काम ही निपटा लेती हूं।

 प्रिय पाठकों, मनोरंजन के तौर पर लिखी गई यह एक काल्पनिक कहानी है, कृपया इसे अन्यथा न लें।कहानी को पढ़कर किसी को ठेस लगे, तो मैं क्षमाप्राथी हूं

प्रीती वर्मा

कानपुर (उत्तर प्रदेश)

 

 

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