धूप छावँ …. ज़िंदगी की !! – अल्पना श्रीवास्तव

उस साल प्रिया की शादी को दो साल हो गए थे ।

पर क्या इन दो सालों में प्रिया पंकज को जान पाई थी ?

शायद नहीं …

कभी -कभी लगता था ,यूँही ज़िंदगी बीत जाएगी ।”एक तो ज़बरदस्ती की शादी उस पर ऐसा बेरुख़ी भरा पंकज का व्यवहार “

शायद पंकज ने भी बेमन से शादी की थी ।

पर प्रिया पंकज को समझने की कोशिश करना चाहती थी ।पर समझना मुश्किल था ।

जब भी घर पर पंकज होता तो प्रिया थोड़ी डरी -डरी सी रहती थी ।बातें तो सिर्फ़ काम भर करता था ।पर नज़र प्रिया के हर काम पर रखता था ।

कुछ ज़रा सी भी चूक हो जाए फ़िर क्या इतनी ज़ोर से चिल्लाकर बोलता था की कभी कभी प्रिया काँप जाती थी ॥

एक बार मम्मी जी से डरते डरते प्रिया ने कहा था ॥

मम्मी जी प्लीज़ !पंकज जी को बोलो ना थोड़ा कम चिल्लाया करे ॥

हमें डर लगता है ॥

मम्मी जी ने कहा था …. कोई बात नहीं जवाब मत दिया करो ये तो इसकी आदत है ही

वैसे ये सब इनकी ख़ानदानी आदत हैं अभी बच्चा वच्चा हो जाएगा ना फ़िर देखो सब आदत सुधर जाएगी

अब तुम गलती ही मत किया करो ॥

हाँ अब प्यार से रहो दो साल हो गए शादी को अब तो दादी बना दो…

पर मम्मी जी ??

अब कोई पर वर नहीं..

देखो पंकज से तो कह नहीं सकती

कुछ सोचो भाई तुम भी ….

जी

अब प्रिया क्या बताती … पंकज तो उसके साथ बेड भी शेयर नहीं करता था ॥




बिन माँ बाप की बच्ची प्रिया ….चाचा -चाची ने पाला था ।

उनके खुद के चार बच्चे

एक उसे भी रखा… ब्याह किया ।

अब उन्हें वो और तकलीफ़ नहीं देना चाहती है ।

शायद पंकज भी ये जानता था ॥

कि प्रिया कहां जाएगी ….. इसलिए बेरुख़ी कभी कभी होती तो कभी कभी नाराज़गी भी..

समझना मुश्किल था।

अभी कुछ दिनों से तो हिंसक भी होने लगा था।

कुछ गलती हो प्रिया से चाहे वो खाने में नमक कम या ज़्यादा चाहे कपड़े रखने में इधर उधर हो शामत तब आती जब प्रिया किसी से बात कर ले या किसी के घर चली जाए और पंकज घर आ जाए …..

मम्मी जी जब आती थीं तब तो सब ठीक रहता था ॥

पर अब बहुत हो चुका था । दुःखी हो चुकी थी प्रिया … प्यार से कभी बात तो करता नहीं था पंकज पर अधिकार क्यूँ … फ़िर उसकी बेरुख़ी और हिंसक बर्ताव क्यूँ ?

क्या है ये क्या चाहता है…

पर उस दिन तो हद ही हो गईं उस दिन नवरात्री का पंचमी का दिन था ।

पड़ोस में रहने वाली गीता ने कहा

“अरे प्रिया आज चलोगी तुम डांडिया में “? यहीं चलना है ” लेडीज़ क्लब “में क्यूँ ??

एक गीता ही थी जिससे कभी कभी प्रिया बात करती थी ।

वैसे तो इसी शहर में प्रिया की सबसे प्यारी सहेली सिमरन रहती थी । वर्किंग वूमेन हॉस्टल में … पर उससे भी सिर्फ़ फ़ोन पर ही बात होती थी

हाँ तो बोल दिया प्रिया ने गीता को

बस पंकज के हाँ की ज़रूरत थी

पंकज के हाँ ने प्रिया के पैरों में पँख लगा दिए।

पर घर लौटते-लौटते देर हो गईं।

प्रिया जानती थी …देर हो गई हैं ,आज पता नहीं क्या होगा डरते -डरते घर में आई ।

दरवाज़े पर ही पंकज खड़ा मिला गीता के सामने कुछ ना कहा पर प्रिया ने धीरे से कहा “सॉरी देर हो गई”




झन्नाटे दार थप्पड़ प्रिया के गालों पर

वो गिरी टेबल पर ज़ोर से चींख़ी ….

रोती हुई बोली “आपसे पूछ कर ही गई थी ना “

“मैं हाँ बोलूँगा तो क्या छत से कूद जाओगी तुम ??? “

चलो कूद जाओ ख़त्म करो कहानी ….

आइंदा याद रहे ज़्यादा पर ना निकलें तुम्हारे

आप चाहते क्या हो मुझसे पंकज ??

कहते क्यूँ नहीं ??

प्यार नहीं मुझसे तो ना सही पर नफ़रत क्यूँ ??

क्या बिगाड़ा है मैंने ??बोलो ना

हाथ छुड़ाकर पंकज अपने कमरे में चला गया था ॥

खूब रोई थी प्रिया … अब तो बेरुख़ी अब थप्पड़ भी

कुछ दिनों तक सदमे में रही प्रिया ।

आज ही तो छत पर आई थी ॥

गीता को देखा … करवा चौथ की तैयारी में लगी है। वो देख कर भी अनदेखा करना चाह रही थी

तभी गीता ने आवाज़ दिया

अरे प्रिया ! कैसी हो ??

करवा चौथ की तैयारी नहीं करनी है क्या ??

हाँ भाभी ! आज चाची जी सब सरगी भेज देंगी

कर लूंगी ….अच्छा बाद में बात करती हूँ।

प्रिया जल्दी जल्दी नीचे आने के लिए सीढ़ियों की तरफ़ जाने लगी।

तभी गीता ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा।

सुनो प्रिया ! आज हम सब मेहता भाभी के घर मेंहदी लगवाने जाएँगे पाँच बजे तुम भी आ जाना

आओगी ना ??




हाँ भाभी … प्रिया ने बिना पलटे ही जवाब दे दिया था ।

नीचे आते ही उसने पकंज के साथ भईया को देखा …. खुश होकर भईया के गले लगना चाह रही थी बस पंकज से डर गई थी ॥

चाची ने साड़ी और खाजे भिजवाए

कितने सुहाग के समान सब अलट पलट कर देख रही थी प्रिया ख़ुशी ज़ाहिर करना चाह रही थी ताकि भईया को पता ना चले कुछ

पर कोई ख़ुशी थी नहीं …

भईया ने पूछा … भी ये सर पर चोट लगी क्या प्रिया ! नयनों में आँसू भर आए थे बस इतना ही बोली थी सीढ़ियों से गिर गई थी।

अरे पगली रो क्यूँ रही हैं। जल्दी जल्दी घर आया कर ना।

वैसे पंकज जी तो बहुत ख़्याल रखते हैं

क्यूँ प्रिया..

कुछ बोल ना पाई थी …

भईया चले गए मन की बात मन में रह गई ॥

सामान उठा कर कमरे में रखने जा रही थी प्रिया और मन ही मन सोच रही थी

ये करवा चौथ

जिसके लम्बी उम्र की दुआ माँग रही थी ।

उसे तो कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता उसके जीने या मरने से

वो तो उसे ही खत्म करने पर लगा है फ़िर क्यूँ करें वो व्रत ???

तभी गीता की आवाज़ आई “प्रिया ओ प्रिया चलो मेंहदी लगवाने पंकज भईया ! प्रिया को भेजो जल्दी “

प्रिया जाओ सब तुम्हें बुला रहे हैं जाओ …

क्या ??

अपने ख़्यालों से लौटी थी प्रिया

पर जवाब क्या दे …

ये क्या प्रिया कपड़े पैक क्यूँ कर रही हो ??

कहां जा रही हो ?

कुछ कहा नहीं प्रिया ने बैग उठकर घर से निकलते-निकलते सिमरन को कॉल किया.

“सिम्मी मैं आ रही हूँ “

पंकज से सिर्फ़ इतना ही कहा “आपको समझने की दो साल कोशिश की पर अब बस अब नहीं सहा जाता है.. जीना है।

पर मार खाकर नहीं … नहीं चाहिए ऐसी ज़िंदगी।

बस अब नहीं रहना है …”

सिमरन ने कहा था बस एक महीने में तुम्हें जॉब मिल जायेंगी …. फ़िक्र ना करो …

चलो अब कुछ खा लो

नहीं नहीं सिम्मी आज करवा चौथ है।

धत ! रही ना पूरी की पूरी टीपिकल भारतीय नारी .. अब काहे का करवा चौथ।

तू नहीं समझेगी सिम्मी

वाह वाह !

चल मुझे तैयार होने दे..




अच्छा जी

हाँ तो

देख तो करवा चौथ का चाँद पूरे शबाव पर है।

प्रिया सुंदर सी लाल साड़ी पहनी थी। चूड़ियाँ भी पहनी कितनी सुंदर लग रही थी ।

प्रिया ! मंगलसूत्र नहीं पहनी ??

हाँ सिम्मी अब उसकी ज़रूरत नहीं रही मुझे फ़िर करवाचौथ का ढोंग क्यूँ ??

ढोंग नहीं है सिम्मी

ये व्रत मैंने अपने लिए किया ताकि मैं जी सकूँ

ईश्वर ने खूबसूरत सी ज़िंदगी दी है

उसे खुश होकर जीना है मुझे।

“अब खुद के लिए कुछ करना हैं मुझे “

छत पर चाँद की तरफ़ देखती हुई प्रिया अपने दोनों हाथों को उठा कर कह रही थी।

“ये चाँद बेशक रौशनी कम हो ज़िंदगी में ,

एक हल्की सी किरण भी हो ,

थोड़ी सी खुली हवा हो ,

आज़ाद मन हो ,

हल्की सी ख़ुशी हो,

डर ना हो बस थोड़ी शक्ति दो …

यही तो चाहिए मुझे”

मैने अपनी प्यारी ज़िंदगी के लिए व्रत किया है।

बस अब सहना नहीं है अब खुल कर जीना है।

घुट घुट के मत जीयो

तोड़ दो उस बंधन को

जो तोड़ दे तुम्हें ही …

अपने वजूद को सम्भालो

क्यूँकि …

छूना है आसमाँ तुम्हें ही ..

क्या बात है प्रिया 👏👏👏

आज तो तूने दिल ही जीत लिया

सिमरन ने प्रिया को गले लगा लिया …

सच खुले आसमान के नीचे आज़ादी की एक हल्की सी हवा चली थी … अब प्रिया भी साँस लेने लगी थी ॥

 

(स्वरचित )

अल्पना श्रीवास्तव ( कोटा -राजस्थान )

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!