आखिर उमा जी चली गयी -मीनाक्षी सिंह

रवि – पापा ,,हमारा भी तो कुछ सोचिये !!

रजनीश जी  ( रवि के पापा ) – सोच की मुद्रा से बाहर आते हुए,,किसकी बात कर रहे हो बेटा,,मैं कुछ समझा नहीं !!

रवि – इतने भी नासमझ मत बनिये पापा,,आपको अच्छे से पता हैं मैं माँ के विषय में बात कर रहा हूँ !!

रजनीश जी – उस बेचारी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ दिया !! बेचारी मेरी उमा कैंसर से जूझ रही हैं !! तुम्हे पता नहीं हैं !!

रवि – हाँ, मैं सब जानता हूँ !! आपको शायद सीधी बात समझ नहीं आती !!  मेरे पास भी ज्यादा समय नहीं हैं आपसे बहस करने का !! आप एक एक करके सब चीज बेचते चले जा रहे हो ,,माँ की कीमोथेरपी के कारण ,, जबकि आप अच्छे से जानते हैं,, माँ कैंसर के  लास्ट स्टेज पर हैं !!

अब कोई उम्मीद नहीं हैं उनके बचने की !! और वैसे भी साठ साल के ऊपर हो गयी और कितना ज़ियेंगी !! उनके ऊपर पैसा खर्च करना फिजूल हैं !! उनको किसी सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिजिये !! मेरे बच्चों और बीवी का कुछ सोचिये !!

आप हमें कंगाल क्यों करते चले जा रहे हैं !! ईश्वर ना करे मुझे कुछ हो गया तो मेरे बीवी बच्चों का क्या होगा !! अब सिर्फ ये घर और गांव की बाबा की जमीन बची हैं !!उसे भी बेच देंगे तो मैं और मेरे बीवी बच्चे कहाँ जायेंगे !!

रजनीश जी – बेटा ,,क्या  बोला तूने ,,तेरे बीवी बच्चे !! तुझे इस दुनिया में लाने वाला कौन है तेरी माँ ,,मेरी उमा !! तुझे पता हैं हमें बच्चे नहीं हो रहे थे !!

उमा दिन रात रोती रहती थी,,कोई तीर्थ नहीं बचा जहां वो गयी नहीं !! घंटों भगवान की पूजा करती तुझे पाने के लिए !! जहां भी किसी अच्छे डॉक्टर का पता चलता वहां वहां जाती !! भूखी प्यासी दो – दो दिन वही रुकती !! तब जाकर ईश्वर ने उसकी सुनी !!

तुम्हारे आते ही मुझसे कहती रवि के बापू  अब मुझे कुछ नहीं चाहिए ऊपर वाले से ,,सब कुछ दे दिया उसने !!  तुमने आज अपनी माँ का जो अपमान किया हैं अगर वो सुनती तो जीते जी मर जाती !!

तुझे पता हैं जिस दिन तुझे बुखार होता य़ा तू बिमार हो जाता हम दोनो में से कोई खाना नहीं खाता !! और पूरी पूरी रात जागके घुमाती रहती और उसके चेहरे पर  शिकन भी नहीं आती !!

तेरी  नजर ऊतारती तो पहले ही कह देती,,कि सामने मत आना रवि के बापू ,,लाला की नजर ऊतार रही हूँ !! तुझे एक बार पिलिया हो गया था ,,तू पांच दिन अस्पताल में भर्ती रहा,,उसकी सगी बहन की शादी थी ,,उसमे भी नहीं गयी !! सिर्फ क्यूँकि तू बिमार था !!




रवि – आप मेरा  समय क्यूँ खराब कर रहे हैं इन फालतू की बातों में !! कौन सा अहसान कर दिया आपने मुझ पर ,, हर माँ बाप अपने बच्चों के लिए करते हैं !! पैदा भी तो आपने ही किया मुझे मैं अपनी मर्जी से तो आया नहीं !!

खैर छोड़िये,,आपसे बहस करना बेकार हैं !! अब मीनू ने भी  आफिस जॉइन कर लिया हैं !! वो अब आप लोगों के खाने पीने की व्यवस्था नहीं कर पायेगी !! ऊपर से माँ का परहेजी खाना और पूरे दिन घर में कैंसर के मरीज का घर में पड़े रहना बच्चों के लिए भी सही नहीं हैं !!

मैने आप दोनो की व्यवस्था पास के घर में कर दी हैं !! खाने के लिए टीफिन  लगवा दूँगा !! हम पास में ही हैं ,,कोई दिक्कत हो बता देना !! माँ पूरी रात खांसती हैं बच्चे और हम पूरी रात नहीं सो पाते !! आप लोगों को तो घर में ही रहना हैं ! हमें तो बाहर जाना होता हैं ,,हमारी तो नींद पूरी होने दिजिये !!

रजनीश जी – आंसुओं को कोरे से पोंछते हुए ,,कंपकपाती आवाज में,, अपने डंडे को संभालते हुए बोलते हैं ,,खबरदार अब एक शब्द भी आगे बोला तो मेरी उमा के बारे में !! ऐसी हालत में भी बस तेरा ही हाल पूछती हैं ,,बोल भी नहीं पाती !!

इशारों से पूछती हैं रवि खाना खाकर गया !! मीनू ठीक हैं !! तुम लोगों ने तो उसके कमरे में कभी झांका भी नहीं !! बच्चों को देखने के लिए तरस जाती हैं !! दूर से ही उन्हे आते ज़ाते देखकर दोनो हाथ  उठाकर आशिर्वाद दे देती हैं !!

अब मैं ले जा रहा हूँ अपनी उमा को !! और ये घर और गांव की जमीन उमा के इलाज में ही लगाऊंगा !! देखता हूँ कौन मुझे रोकता हैं !! दम तोड़ देती है माँ-बाप की ममता जब बच्चे कहते है की तुमने हमारे लिए किया ही क्या है।

रजनीश जी लड़खड़ाते हुए उमा के पास आते हैं !! उमा के सिरहाने बैठकर उसका माथा चुमते हैं !! और बोलते हैं ,,अब तेरा अपमान नहीं होने दूँगा मेरी लज्जो !!तू तो मेरी तरफ देख भी नहीं रही !! ऐसे लजा रही हैं जैसे ब्याह के बाद लजाती थी !!

ओ लज्जो सुन !! उमा का हाथ  अपने हाथों में लेते हैं !! यह क्या उमा के शरीर में कोई हरकत नहीं ,,ठंडी पड़ चुकी हैं !!बस रजनीश जी उमा को एकटक देखते रह ज़ाते हैं !! मुंह से आवाज भी नहीं निकलती बस सिस्कियां भरते हैं !!

रवि और मीनू  आवाज सुनकर अंदर आते हैं !! माँ के हाथों में एक कागज का टुकड़ा कस्के लगा होता हैं !! ज़िसमे रवि के नाम लाखों की सम्पत्ती के कागज होते हैं क्यूंकी उमा जी  अपने माँ बाप की अकेली संतान थी सब उन्ही के नाम कर गए वो !! इस बात की ज़ानकारी आज तक  उमा जी ने रजनीश जी को भी नहीं दी !!




शायद उमा जी  ने बाप – बेटे की बातें सुन ली थी !!

उमा को अपना अपमान सहन  नहीं हुआ !! रवि ,मीनू बस कभी माँ को देखते और कभी उस कागज के टुकडे को !!

रजनीश जी बस इतना बोल पा रहे – मैं उमा को ठीक कर दूँगा !! उसे लेके जा रहा हूँ !! उमा तो अब कभी ना वापस आने के लिए जा चुकी हैं !!

सही कहा हैं किसी ने –

सब कुछ मिल जाता है दुनिया में मगर,

याद रखना कि बस माँ-बाप नहीं मिलते,

मुरझा कर जो गिर गए एक बार डाली से,

ये ऐसे फूल हैं जो फिर नहीं खिलते…

बड़े होते ही बच्चे हाथ छोड़ देते है

साठ पर क्या गए माँ-बाप ये साथ छोड़ देते है!!

स्वरचित

मीनाक्षी सिंह

1 thought on “आखिर उमा जी चली गयी -मीनाक्षी सिंह”

  1. आपकी लिखित रचनाएं निसंदेह रोचक और प्रेरणादायक होती हें मिनाक्षी जी।इस कहानी में एक छोटी सी त्रुटि है।ऊपर आपने लिखा है की उमाजी अपनी सगी बहन की शादी में नाही गई,किन्तु बाद में आपने उनको इकलौती संतान बताया है।बाकी कहानी निसंदेह अच्छी है।ऐसे हि लिखती रहें।

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