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यादें न जाए बीते दिनों की -के कामेश्वरी

सन् १९८० की बात है। जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी। जैसे ही मैं कॉलेज से घर पहुँची। मैंने देखा माँ मुस्कुरा रही है और कुछ इशारा कर रही थी। पहले तो मुझे समझ नहीं आया फिर मुझे लगा कि बेडरूम की तरफ़ इशारा कर रही थी। मैं झट से बेडरूम की तरफ़ भागी और देखा मेरी प्यारी बुआ वहाँ छिपकर बैठी थी। मैंने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा पकड़ लिया है बुआ को मैंने पकड़ लिया। दोनों गले मिले और मैंने प्रश्नों की बौछार लगा दी कब आई मुझे पहले क्यों नहीं बताया ? मुझे पता रहता तो मैं कॉलेज नहीं जाती थी न और मुँह फुला लिया। बुआ ने कहा मेरी प्यारी रेखा मैं तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहती थी और कुछ नहीं। चल बातें करते हैं और तेरे लिए एक सरप्राइज़ और भी है। मैं उनके गले में लटकती हुई बोली बोलो ना क्या है ? बुआ ने कहा वह यह है कि कल तू मेरे साथ विशाखापटटनम चल रही है। माँ ने पीछे से कहा हाँ वहाँ तुझे लड़के वाले देखने आ रहे हैं इसीलिए। पहले तो पढ़ाई का वास्ता दिया। पर बुआ ने कहा बच्चे यह तो तेरा आख़री साल है मार्च में परीक्षा ख़त्म तो बी ए ख़त्म। इसलिए बहाने मत बना समझी कहकर किसी ने मुंह नहीं खोलने दिया। दूसरे ही दिन हम बुआ के घर के लिए ट्रेन से निकल गए। बहुत ही सालों बाद मैं उनके घर गई थी। हम दोनों ने मिलकर बहुत सारी बातें की। उसी समय बुआ ने बताया था जिस रिश्ते के बारे में तू यहाँ आई है न वह लड़का घर का बड़ा लड़का है और उसके तीन भाई हैं बहन नहीं है। बहुत ही अच्छे संस्कारी लोग हैं। तुझे भी अच्छा लगेगा। लड़का बहुत हेंडसम है। मैंने कुछ नहीं कहा सोचा पहले देखते हैं फिर बाद की बाद में सोचेंगे। उसी दिन शाम को लड़के के माता-पिता और दो भाई भी आए थे। वह लड़का जिसका नाम अक्षय था नहीं आया मैं थोड़ा निराश हो गई थी। वे लोग थोड़ी देर बैठे और कहा कि अक्षय चेन्नई गया था ऑफिस के काम से रात को आ जाएगा। हमने सोचा पहले हम देख लेते हैं फिर वह आ जाएगा। ख़ैर वे लोग चले गए।




दूसरे दिन मैं और बुआ बातें कर रहे थे तो अक्षय हमसे मिलने आ गया। अचानक सामने देख मैं घबरा गई थी और कहते हैं न पहली नज़र में प्यार हो गया।हम दोनों एक दूसरे को देखते वहीं खड़े रह गए। ऐसे लग रहा था कि हम शायद सालों से एक दूसरे को जानते हैं। बुआ ने पुकारा कौन है।मैं शरमा के अंदर भाग गई। आज इतने सालों बाद भी जब उन लम्हों को याद करते हैं तो अच्छा लगता है। फिर क्या जब तक मैं वहाँ थी अक्षय रोज अपने दोस्त के घर आते थे। जो बुआ के घर के सामने ही रहता था। मेरी एक झलक पाने के लिए घंटों खिड़की के पास बैठे रहते थे। यह उन्होंने मुझे शादी के बाद बताया था।

उनके घर वालों की तरफ़ से भी हाँ हुआ। फिर फ़रवरी सन् १९८१ में हमारी शादी हुई। फ़रवरी का महीना हमारे लिए बहुत सारी ख़ुशियाँ लेकर आया था। फ़रवरी में ही हम दोनों को एक दूसरे से प्यार हुआ और फ़रवरी में ही हम दोनों शादी के बंधन में बंध गए थे। आज इकतालीस साल हो गए शादी को हुए। दो बच्चे हैं एक लड़की रचना और एक लड़का रेयान दोनों की शादी हो गई। दोनों बच्चों के बच्चे हो गए और आज भी हम अपने पुराने दिनों को याद करते हैं और मैं उन्हें छेड़ते हुए कहती हूँ कि मुझे मालूम ही नहीं कि आप मेरे इंतज़ार में खिड़की के पास ही बैठे रहते थे तब तो मैं भी दरवाज़े पर खड़े होकर एक झलक देख लेती थी। उस ज़माने में तो फ़ोन भी नहीं थे सिर्फ़ चिट्ठियों में ही अपने दिल का हाल लिख लेते थे। डाकिया हमारे लिए भगवान होता था। उसके साइकिल की घंटी मंदिर में घंटी के समान सुनाई देता था। वे दिन बहुत ही खूबसूरत थे। आज के जनरेशन पर मुझे तरस आता है कि वे उन सब प्यारे पलों को मिस करते हैं। वह प्यार भी हमारी उम्र के साथ साथ बढ़ता रहता है। इसलिए इतने सालों के बाद भी उन दिनों को याद करते ही होंठों पर हल्की सी हँसी आ जाती है। बहुत ही सुंदर सुनहरे पल थे। बरबस ही होंठों इस गाने की पंक्तियों को गुनगुनाने लगते हैं…….

“यादें न जाए बीते दिनों की “

के कामेश्वरी

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