पुराणों में वर्णित है कि बहुत पुण्यकर्म करने के बाद मनुष्य योनि में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त होता है। मनुष्य योनि प्राप्त होने पर व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी जिन्दगी को व्यर्थ बनाऍं या अपने आत्मसम्मान की खातिर एक फैसला लेकर अपनी जिन्दगी को एक नया आयाम दे।
कबीरदास जी ने भी कहा है-‘मानुष तन परम बैकुंठी,नाहिं तो काह छार एक मुट्ठी। ‘ उपरोक्त पंक्तियों द्वारा मानव जीवन की महत्ता समझ में आ जाती है। आखिर इस शरीर का अंत तो बस एक मुट्ठी राख के रूप में ही होना है, इसलिए मनुष्य का कर्त्तव्य है कि अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए एक फैसला अवश्य लें।
एक बाईस साल की नीरजा भनोट ने अपने आत्मसम्मान के लिए ज़िन्दगी में ऐसा फैसला लिया कि इतिहास में उसका नाम दर्ज हो गया।नीरजा भनोट का जन्म 7 सितम्बर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ था। उसके पिता हरीश भनोट पत्रकार थे और माता रमा भनोट गृहिणी।दो भाईयों की लाडली बहन नीरजा थी।
इस कारण घर में सब उसे लाडो कहते थे।नीरजा देखने में जितनी खूबसूरत थी,उतनी ही होनहार भी।उसकी आरंभिक शिक्षा -दीक्षा चंडीगढ़ में हुई।मन में ज़िन्दगी के सुनहरे सपनों के साथ आगे की पढ़ाई के लिए नीरजा मुंबई आ गई।
आम भारतीय लड़की की तरह नीरजा का भी ख्वाब पंख लगाकर आसमां में उड़ने का था। चुलबुली और शोख नीरजा फिल्मी हीरो राजेश खन्ना की प्रशंसक थी।वह हमेशा राजेश खन्ना के गानों पर थिरकती रहती थी। पढ़ाई के साथ-साथ उसका झुकाव माडलिंग की ओर हो गया।नीरजा कई विज्ञापनों में माडलिंग करती नजर आई।
बिनाका, बेस्टो ,वाशिंग पाउडर,चार्मिस जैसे विज्ञापनों में नीरजा ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई।उसका कैरियर ऊॅंचाईयों को छूने लगा था,उसी समय उसकी शादी गल्फ में रहने वाले नरेश मिश्रा से हो गई।आम भारतीय लड़की की तरह नीरजा भी अपना कैरियर छोड़कर पति के पास गल्फ चली गई, परन्तु शायद सुखी दाम्पत्य -जीवन उसके भाग्य में नहीं था।
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शादी के कुछ ही महीनों में पति का असली रूप उसके सामने आ गया।उसे पति का बुरा व्यवहार, ससुराल वालों की दहेज की माॅंग और घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ा। बहादुर नीरजा ने इन अत्याचारों के आगे हथियार नहीं डाले, वरन् अपने आत्मसम्मान की खातिर एक फैसला लेते हुए पति का गृह त्याग कर माता-पिता के पास वापस लौट आई।
नीरजा के माता-पिता ने अपना मजबूत संबल देकर नीरजा को टूटने-बिखरने से बचाया। परिणामस्वरूप नीरजा आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर अपने पैरों पर खड़ी होने की कोशिश करने लगी।नीरजा ने दुबारा से माडलिंग आरंभ की तथा अपने जगह नौकरियों के लिए आवेदन दिया।नीरजा को पैन एम नामक फ्लाइट में नौकरी मिल गई।
नीरजा की माॅं इस नौकरी के खिलाफ थीं।उसकी माॅं को बेटी के इस खतरे वाले काम से डर लगता था,पर पक्के इरादों वाली नीरजा ने अपने परिवार को इस नौकरी के लिए मना ही लिया।माडलिंग और एयर होस्टेस की नौकरी के साथ नीरजा की नौकरी पटरी पर फिर से दौड़ने लगी।जिन्दादिल नीरजा को जिंदगी और अपने काम से प्यार था।नीरजा ने अमेरिका जाकर एन्टी-हाईजैक का कोर्स भी किया था।
5 सितंबर 1986 को मुंबई से अमेरिका जानेवाली पैन एम फ्लाइट में नीरजा मुख्य पर्सर के रुप में मौजूद थी।इस फ्लाइट को कराची और जर्मनी के फ्रैंकफर्ट होते हुए न्यूयॉर्क पहुॅंचना था।प्लेन जब कराची हवाई अड्डे पर रूकी,तो कुछ यात्री जहाज से उतर चुके थे, आगे जानेवाले यात्री जहाज में सवार हो चुके थे। अचानक से अंतिम सवार होनेवाले व्यक्ति के साथ चार आतंकवादियों ने गोलियों की बरसात करते हुए
जहाज का अपहरण कर लिया। उनके पास बहुत सारे हथियार और विस्फोटक सामग्रियाॅं थीं।इस फ्लाइट में क्रू मेंबर समेत 369 यात्री थे। जहाज अपहरण की कठिन परिस्थितियों में भी नीरजा ने बहादुरी का फैसला लेते हुए पायलट को विमान अपहरण की सूचना दी।जहाज के तीनों अमेरिकन पायलट काॅकपिट से निकलकर भाग गए।इसका एक फायदा यह हुआ कि आतंकवादी पायलट को उड़ान भरने के लिए मजबूर नहीं कर सकें।नीरजा आत्मविश्वास के साथ जहाज के अंदर ही थी।
आतंकवादी अमेरिकन नागरिकों को चुन-चुनकर निशाना बनाना चाहते थे,इस कारण उन्होंने नीरजा को सभी यात्रियों के पासपोर्ट को जमा करने को कहा,जिससे पता चल सके कि जहाज में कितने अमेरिकन यात्री हैं!नीरजा ने इस बात को समझकर चालाकी से सभी अमेरिकन नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिया, जिससे आतंकवादी क्रोधित हो गए।17 घंटे तक नीरजा ने अपनी सूझ-बूझ से आतंकवादियों को गोली चलाने से रोके रखा और उसके दिमाग में यात्रियों की जान बचाने की जद्दोजहद चल रही थी।
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सत्रह घंटे बाद एक तो किसी अमेरिकन नागरिक का पासपोर्ट नहीं मिलने के कारण और जहाज में सहायक विद्युत इकाई बंद हो जाने के से आतंकवादी बौखला उठे। जहाज में रोशनी और एयरकंडिशनिंग बंद हो गई।अब आतंकवादियों ने गोलीबारी शुरू कर दी और जहाज में बम रख दिया। फिर भी उस संकट की घड़ी में भी नीरजा ने अपने हौसले को बरकरार रखा।नीरजा ने उस मुश्किल परिस्थिति में भी ऐसा फैसला लिया,जिसकी कल्पना कोई आम इंसान नहीं कर सकता था।नीरजा ने चुपके से जहाज का गेट खोलकर यात्रियों को निकाल दिया था।
अंत में तीन बच्चों को निकालते हुए आतंकवादियों की नजर नीरजा पर पड़ी। आतंकवादियों ने बच्चों पर गोली तान दी। बच्चों को बचाने के लिए नीरजा आतंकवादियों से भिड़ गई। आखिर बच्चों को तो नीरजा ने बचाकर निकाल दिया, परन्तु आतंकवादियों ने नीरजा की पीठ में गोली मार दी।अपने आत्मसम्मान और एक जिम्मेदार मुख्य पर्सर होने के नाते उसने अपनी जान से ज्यादा महत्त्व यात्रियों की जान को दिया, जिसके कारण उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
इस विमान अपहरण में 20 यात्री मारे गए और 120 , यात्री घायल हो गए।मात्र 22 साल की नाजुक-सी उम्र में ज्यादातर लड़कियाॅं दोस्ती, कैरियर, प्यार और भविष्य के सपने बुनतीं हैं, वहीं नीरजा इतने यात्रियों की जान बचाते हुए अपने कर्त्तव्य की बलि वेदी पर शहीद हो गई।नीरजा पुरूष प्रधान समाज मे अपनी बहादुरी का लोहा मनवाकर, लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर इतिहास में अमर हो गई।नीरजा की शहादत पर केवल भारत, पाकिस्तान और अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाॅं गमगीन हो उठी।
नीरजा देश की पहली ऐसी असैन्य नागरिक थीं,जिसे असीम वीरता के लिए शांतिकाल के दौरान सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र (मरणोपरांत)से नवाजा गया।इतनी कम उम्र में ये पुरस्कार पाने वाली नीरजा देश की पहली नागरिक है।भारत ने नीरजा के सम्मान में 2004 में उसके नाम से एक स्टैंप भी जारी किया।
अमेरिका ने नीरजा को ‘हीरोईन ऑफ हाईजैक ‘की उपाधि से नवाजा। पाकिस्तान ने उसे अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ से विभूषित किया।नीरजा के माता-पिता ने ‘नीरजा भनोट PAN AM’नाम से एक ट्रस्ट बनाया, जिसमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सम्मानित किया जाता है।नीरजा की जिंदगी पर हिन्दी फिल्म ‘नीरजा’भी बन चुकी है।
हमें उम्मीद है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सशक्त महिला नीरजा की प्रेरणास्पद कहानी पाठकों के दिल को छू लेगी और उसकी याद में लोग नम ऑंखों से उसे जरूर श्रद्धांजलि देंगे।
उपरोक्त कहानी में प्रस्तुत किसी भी तथ्य की पुष्टि लेखिका नहीं करती है।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा ,स्वरचित