मामी जी•• हमें आपके सामान की भी•• तलाशी लेनी होगी! कृपया
अपना बैग खोलें !
क्या पर क्यों •••?अभ्यांस के ऐसे बोलने से शांति जी घबरा गई । और कुछ देर रुक के, अपना बैग चेक करवाने लग गईं ।
देखिए••• हम लोग सिर्फ अपनी तसल्ली के लिए ऐसा कर रहे हैं आप सब कृपया इसे अन्यथा ना लें ••धन्यवाद! अभ्यांस सभी रिश्तेदारों से बोला।
मामी जी!आपके सामान की तलाशी हो चुकी है अब आप इसे समेट लें••! कहते हुए अभ्यांस दूसरे आए रिश्तेदारों के बारी-बारी से बैग चेक करने लग गया।
इधर शांति जी डब-डबाई आंखों से पति के आने का इंतजार कर रही थीं जो, शादी के काम से बाहर गए हुए थे।
सभी रिश्तेदारों के सामान की तलाशी के बाद अभ्यांस को निराशा हाथ लगी।
इन लोगों के पास से भी नहीं मिला आखिर बाजूबंद•• गया तो कहां गया? परेशान होते हुए अभ्यांस दिव्या से बोला ।
भैया•• मेरी मानो तो सभी लेडिज का पर्स एक बार फिर से चेक कर लो•• क्या पता किसी ने पर्स में डाल लिया होगा!
दिव्या अपने भाई को सुझाव देते हुए बोली।
बहन की सुझाव से वह एक बार पुन: सभी लेडिज के पर्स को चेक करने लग गया !
निगाहें नीचे की हुई शांति जी से अभ्यांस बोला••”मामी जी•• आप भी अपना पर्स दिखा दीजिए! शांति जी ने अपना पर्स खोल दिया ।
बगल में उनकी”नंद कुन्ती” परेशान और चिंतित खड़ी सभी के सामान पर अपना नजर दौड़ा रही थीं कि••
क्या हो रहा है यहां••?
“मामा देव बाबू “कमरे में हो रहे तलाशी को देखकर आश्चर्य से बोले।
पति की आते ही शांति जी फुट-फुट के रोने लगी ।
अरे क्या हुआ तू रो क्यों रही है•• और क्या चल रहा है यह सब••?
उनको रोता हुआ देख ,वह घबराते हुए पूछे।
पूछने का समय नहीं•• !अब यहां मुझे एक पल भी नहीं रहना••! कहते हुए शांति जी अपने कमरे में चली आई•• ।
पीछे-पीछे देव बाबू भी कमरे तक चले आए ।
क्या बात है शांति•• ?जब तक तुम बताओगी नहीं तब तक मैं क्या जानूंगा••?
“आज दिव्या के गहनों में उसका बाजूबंद गायब था•• “हम सब ने बहुत ढूंढा पर हमें मिला नहीं! तभी किसी ने सुझाव दिया कि सभी रिश्तेदारों की तलाशी ली जाए••! आपकी बहन कुंती के सहमति से, सभी की तलाशी ली जा रही है और साथ में मेरी भी••!मुझे इतनी शर्मिंदगी महसूस हुई की इस घर में मेरा सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है•••!
क्याऽऽऽऽ इतनी बेज्जती? देव बाबू गुस्से में बोले।
हां•• अब यहां हमें नहीं रुकना चाहिए चलिए•• ! मैं सामान तैयार करती हूं !
बेटा सोनू छत पर अपने सुखे कपड़े होंगे•• जा जल्दी से लेकर आ•• हमें अभी यहां से तुरंत ही निकलना होगा !लूडो खेल रहे बेटे सोनू की तरफ देख शांति जी बोलीं ।
तुम ठीक कह रही हो शांति हमें यहां से निकल जाना चाहिए•• इन लोगों में जरा भी शर्म नाम की चीज नहीं अरे जब “बाजूबंद” गायब हुई तो आदमी देखकर तलाशी करवानी चाहिए ना••! आपने कितना किया इन लोगों के लिए बेचारे संभाजी (शांति जी के नंदोई )के गुणों को हम ध्यान में रखकर, इस शादी को संपन्न कराने आए और हमें आज यहां ये दिन देखने को मिला शांति जी बोलीं ।
हां•• मैं वही सोच रहा हूं शांति की 5 दिन की बात है ! हम यहां जिस वजह से आए वही पूरा ना हो, तो संभाजी को बुरा लगेगा !कहते हुए देव बाबू की आंखों में आंसू आ गये ।
तो कहना क्या चाहते हो•• हम इतनी बेज्जती सहकर भी उनकी शादी तक रुके रहें ••ना-ना मुझसे ना हो पाएगा शांति जी एक और मुंह फेरते हुए बोलीं ।
अरे जरा सोचो••? इन लोगों के द्वारा की गई नादानियों से मैं अपने स्वर्गवासी बहनोई से किया वादा नहीं तोड़ सकता ! शादी जिस दिन संपन्न हो जाएगी हम उसी दिन यहां से चले जाएंगे देव बाबू शांति जी को समझाते हुए बोले।
ठीक है•• जब आप का यही फैसला है तो मेरा भी # एक फैसला है आत्मसम्मान के लिए••! कौन सा••?
“मैं जब तक यहां रहूंगी तब तक उनके घर का अन-जल ग्रहण नहीं करूंगी! शांति जी कहते हुए रोने लगीं !
ठीक है शांति जैसा तुम उचित समझो••!
भाइयों में सबसे बड़े थें देव बाबू••। ” माता-पिता” के स्वर्गवास के बाद भाइयों तथा बहन की शादी देव बाबू के कंधों पर आ गई । बहन कुंती इस घर की सबसे छोटी इकलौती लाडली थी। इसलिए उन्होंने उसके लिए पढ़ा-लिखा लड़का,जो लखनऊ में ‘इंजीनियर’ थे ढूंढा। उस जमाने में उन्होंने बहन की शादी में पैसे पानी की तरह बहाए । कुंती के दो बच्चें थें ‘बेटा अभ्यांस और बेटी दिव्या ‘ ।
सभी में ज्यादा संभाजी “देव बाबू की इज्जत करते क्योंकि वह उनमें ससुर के रूप में देखते और
एक दूसरे के सहयोग के लिए वे सदा तत्पर रहते। एक अच्छा बंधन था दोनों साला और बहनोई के बीच ।
भैया दिव्या बड़ी हो गई है अब हमें इसके लिए लड़का ढूंढना पड़ेगा•• बल्कि मैंने तो एक लड़का भी पसंद कर लिया है !
एक दिन संभाजी फोन पर देव बाबू से बोले ।
अच्छा ••! यह तो अच्छी बात है••क्या करता है लड़का?
लड़का बैंक में मैनेजर है!” मैं कल ही जाकर बातचीत फाइनल कर आता हूं ••!
हां ठीक रहेगा!
अगले ही दिन संभाजी लड़के वालों के यहां जाकर ,बातचीत फाइनल घर आते हैं।
भैया शादी में सिर्फ दो महीने बचे हैं ! हमें सारी तैयारियां अब शुरू कर देनी पड़ेगी “मैं तो कहता हूं— आप एक महीना पहले ही आ जाइए•• आपके सहयोग से मेरी बेटी की शादी अच्छी तरह से निपट जाएगी!
संभाजी चिंतित होते हुए फोन पर देव बाबू से बोले ।
अरे आप टेंशन ना करें मैं सब संभाल लूंगा•• मैं एक महीना पहले ही आ जाऊंगा!
सांत्वना देते हुए उन्होंने फोन रख दिया।
लेकिन कौन जाने कि भगवान की क्या मर्जी है:-
“एक दिन ऑफिस से लौटते वक्त संभाजी का एक्सीडेंट हो गया । एक्सीडेंट की खबर सुन देव बाबू फॉरन लखनऊ पहुंचें। उस समय संभाजी को ऑपरेशन थिएटर ले जाया जा रहा था•• देव बाबू को देखते ही “भैया•• !दिव्या की जिम्मेदारी अब मैं आपको सौंपे जा रहा हूं!
तुम पहले ठीक हो जाओ! इन सब बातों की चिंता मत करो!
” मैं हूं ना••!
ऑपरेशन नाकामयाब रहा और संभाजी इस दुनिया को छोड़ सदा के लिए चल बसे ।
अतीत को याद करते हुए जब वह वर्तमान में लौटे तो:-
“दिव्या की शादी की जिम्मेदारी अब मेरे ऊपर है शांति! क्योंकि संभाजी के मरते समय “मैंने उन्हें वचन दिया था•• इसलिए मुझे शादी तक अपने कर्तव्य का निर्वाह कर लेने दो•• लेकिन मैं तुमसे भी वादा करता हूं कि जैसे ही शादी खत्म होगी हम उसी दिन अपने घर के लिए ट्रेन पकड़ लेंगे और तुम्हारे साथ हमारे और तब तक “मैं भी इस घर का अन-जल ग्रहण नहीं करूंगा “!
कहते हुए देव बाबू शादी के व्यवस्था में पूर्ण रूप से संलग्न हो गए । अपनी कर्तव्य निष्ठा के साथ दिव्या की शादी संपन्न करा दी••। “दिव्या के विदाई “के बाद वह भी अपने परिवार के साथ सदा के लिए बहन कुंती और उस घर से रिश्ता तोड़ चले गए ।
कुछ दिनों बाद देव बाबू को किसी से पता चला कि बाजूबंद उन्हें घर पर ही पड़ा मिला।
बाद में जब कुंती देव बाबू के घर बेटी की “शादी की विदाई” और उनके “द्वारा खर्च किये गये पैसे” लौटाने आईं तो उन्होंने पैसे और विदाई लेने से सख्त मना कर दिया।
कुंती शायद तुम्हें पता होना चाहिए कि जिनकी तुम तलाशी ले रही थी वह मेरी अर्धांगिनी हैं उसकी बेइज्जती मेरी बेइज्जती थी ! हम तो दिव्या की शादी में देने आए थे ना की चोरी करने••! तुमने हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर, हमसे जिंदगी भर का रिश्ता तोड़ लिया! अब इस जन्म में तो हम तुझसे कभी रिश्ता नहीं रखेंगे और आज से तेरे लिए हम सदा के लिए मर गए !
कहते हुए वो वहां से चले गए। कुंती “पश्चाताप के आंसू “के सिवा कुछ बोल भी न सकी ।
और अपने पिता समान भाई की बात सुनकर वह अपने बेटे को ले वहां से चुपचाप चली गई ।
अब देव बाबू और शांति जी इस दुनिया में नहीं हैं ••लेकिन आत्मसम्मान में लिए इस फैसले को उन्होंने अपने जीते जी निभाया ।
कुंती अभी भी इस गलानी में है कि “काश मैं भैया-भाभी से एक बार माफी मांग लेती ।
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धन्यवाद।
मनीषा सिंह।