इक बंगला बने न्यारा – लतिका श्रीवास्तव 

..पापा आप लोग हम लोगों के साथ नहीं रहेंगे….आनंदी का ऐसा मानना है ….अब उसे भी शानदार जॉब मिल गया है…बहुत व्यस्त हो गई है….अनिमेष फोन पर कह रहा था और इधर सुधीर जी की आंखों में आंसू और दिल में दफ्न  मकान की ख्वाहिश अचानक उभर कर फिर से सांसे लेने लगी थी…बुढ़ापे का सहारा….अपना मकान होता है…अपना मकान भावनात्मक सुरक्षा देता है ….आत्मविश्वास देता है…..पिताजी के वाक्य मानो हथौड़े सी चोट करने लगे थे उनके सिर की शिराएं झनझना उठीं थीं…हाथ से गिरते फोन को पास आती उनकी धर्मपत्नी शांति ने तत्काल पकड़ लिया था और अनिमेष को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने और खुश रहने की समझाइश देते हुए खुद को भी बेटा बहु की खुशी में खुश रहने को समझा लिया था…!पर सुधीर जी को कैसे समझाए!!

आज से 30 बरस पहले का समय याद आ गया था उन्हें…….

….. सुनिए तो इस महीने का मकान किराया बचा है अभी मकान मालिक दो बार मांगने आ चुके हैं….अनिमेष की मां शांति देवी बहुत आहिस्ता स्वर में कह रहीं थीं ।… जानता हूं शांति मैं मकान मालिक को देख कर ही घर नहीं आया था मैनेजर ने आज पगार देने के लिए कहा है ….पर सोच रहा हूं उस पगार में क्या क्या कर पाऊंगा मैं!!अनिमेष और अर्ची की स्कूल फीस …..मकान का किराया….महीने का राशन…..पिताजी का  इस बार मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवाना ही है ..पिछले साल से टल रहा है ना ही वो पेपर पढ़ पाते हैं ना ही कोई पुस्तक…! ठीक से देखने में उनको कितनी ज्यादा दिक्कत हो रही है मैं समझ सकता हूं….कितने विवश हो गए हैं ……कुछ कहना चाह कर भी कह नहीं पाते हैं…बेटे के दिल को अपने दिल से समझ जाते हैं…अपने ही बेटे पर अपनी हर जरूरत के लिए मोहताज हो गए हैं..!!सुधीर जी काफी व्यथित और चिंतित थे…..

…अरे ओए सुधीरवा कहां रहते हो भईए..!!कहते हुए उनके जिगरी दोस्त निशांत आ गए थे….का भाई पगार मिल गई के नहीं!!

अमा दूध अभी आया नहीं और बिल्ली पहले आ गवी …!!हंसते हुए सुधीरजी उठ खड़े हुए तुझे पगार की याद क्यों आ रही है!!



देखा हम जनित रहे तुम भूल गए होगे..!वो जमीन दिखाए रहे तुमको ना वही पक्का करने आए हैं तुम्हाए लिए चलो आज पहली किश्त देकर पक्की कर आते हैं …प्रमुदित स्वर था निशांत का पर सुधीर का चिंतातुर चेहरा उन्हें सब कुछ महसूस करवा गया था….वो जानते थे इस छोटे से किराए के मकान में कितनी दिक्कतें वो उठा रहा है एक बेड रूम एक बैठक और छोटा सा रसोई घर…बस इतने का ही बहुत किराया  हो जाता था।बैठक में पिताजी की व्यवस्था की गई थी परंतु आने जाने वालों के कारण उन्हें बहुत असुविधा होती थी….अनिमेष और अर्ची के पढ़ने के लिए भी शांत और एकांत कक्ष की  आवश्यकता बढ़ती जा रही थी….!

बेटा मैं तो चाह के भी तुम सब के लिए अपने लिए एक मकान नहीं बनवा पाया….पर तुम जरूर बनवा लेना…बुढ़ापे का बहुत बड़ा सहारा होता है अपना खुद का मकान….एक अनोखा लगाव जुड़ाव और आत्मनिर्भरता की भावना भर देता है ….सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना बलवती हो जाती है ….अशक्त और विवश बुढ़ापे की संजीवनी बन जाता है ये….!!बुजुर्ग पिता की ये बात सुनकर हमेशा सुधीर अपने पिता को गले से लगाते हुए कह देता था अरे पिताजी आपके बुढ़ापे का असली सहारा असली संजीवनी तो मैं आपका बेटा हूं ना….फिर आप मकान की चिंता क्यों करते हैं….आपकी छत्रछाया हमारे साथ हमेशा बनी रहे यही हम लोगों के लिए किसी महल से कम नहीं है …. इक बंगला बने प्यारा …..और पिता पुत्र की समवेत हंसी  ख्वाहिशो को फिर कभी आना…. कह दिया करती थी।

परंतु पिता के कष्टपूर्ण जिंदगी जीकर जाने के बाद सुधीर जी भी पिता की इसी अधूरी ख्वाहिश की गिरफ्त में आ गए थे।

आज निशांत के जमीन का जिक्र छेड़ने पर फिर उसने अपने बेटे अनिमेष को गले से लगाते हुए कहा ….देख भाई मेरी जमीन तो ये है …बस यहीं पर मेरा मकान भी बन रहा है … तू देखना मेरा बुढ़ापा मेरे पिताजी के कष्टपूर्ण बुढ़ापे से ज्यादा बेहतर रहेगा ….क्यों बेटा!!…. हां पिताजी कह अनिमेष भी अपने पिता को उनकी समस्त ख्वाहिशों सहित अपने नन्हें हाथों में समेट कर निहाल कर देता था…!



…..यार मैं फिर कहता हूं एक मकान बनवा ले ये बेटा तेरा बड़ा होकर अपनी जिंदगी में व्यस्त मस्त हो जायेगा तू कब तक किराए के मकान में रहता रहेगा कष्ट उठाता रहेगा अभी कमा रहा है तेरा पैसा है धीरे धीरे करके मकान बन ही जायेगा तेरे बुढ़ापे में वही तेरा सहारा बनेगा …. निशांत जोर देता रहा ..लेकिन सुधीर की आमदनी उसे केवल अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए ही प्रेरित करती रही

अनिमेष और अर्ची को बाहर भेज कर पढ़ाने लिखाने ……शादी विवाह …..रिश्ते नाते निभाने की व्यवहारिकताओं में सुधीर जी का बुढ़ापा कब चुपके से आ गया उन्हें गुमान ही नही हो पाया था…।..अब तो उनकी नौकरी भी नहीं रही…..मकान मालिक ने अल्टीमेटम दे दिया था अगले महीने मकान खाली करने का…शायद उनके आसन्न असहाय बुढ़ापे और पुत्र अनिमेष की आश्चर्यजनक उदासीनता ने उसे भी अपने मकान के भावी किराए के प्रति असुरक्षित कर दिया था…!निशांत जी आज फिर  से सुधीर से उस जमीन को ना लेने अपनी आमदनी अपने उदासीन बेटे के करियर बनाने में स्वाहा कर देने का उलाहना देने में लगे थे…..

पर सुधीर जानते थे या तो उस समय वो उस जमीन को लेते या अनिमेष के कैरियर की जमीन तैयार कर पाते !!आज भले ही वो जमीन  उनके पास नहीं थी लेकिन अनिमेष का सुनहरा भविष्य गढ़ा जा चुका था ….यही उनके परम आत्मसंतोष की वजह थी।

बुढ़ापे का सहारा बेटा होता है या मकान होता है …!!इन्ही विचारों में अवगुंठित से वो …..शाम को कोई अन्य किराए का मकान ढूंढने के लिए निशांत जी के साथ निकलने ही वाले थे कि यकायक एक शानदार कार उनके सामने रुकी जब तक वो समझ पाते अनिमेष और बहु आनंदी दोनों ने आकर उन्हें और निशांत जी  को घेर लिया और कार में बिठा लिया…कहां ले जा रहे हो बेटा …वो कहते ही रह गए …..उनकी बात समाप्त होने के पहले ही कार एक जगह रुक गई अनिमेष ने बढ़ कर उन्हें कार से उतारा और एक शानदार बंगले के सामने लाकर खड़ा कर दिया…



..”शांति कुटीर “…..लीजिए पिताजी आपका अपना मकान….अनिमेष के कहते ही आनंदी ने तुरंत कहा…अपना मकान नहीं..अपना घर शांति कुटीर…!

निशांत जी  विस्फारित नेत्रों से देख रहे थे ये तो वही जमीन है जिसके लिए अनिमेष की बाल्यावस्था से वो सुधीर के पीछे लगे थे……वाह धन्य हो ईश्वर की लीला सुधीर जी की जमीन उनका वो नन्हा पुत्र अनिमेष और उस समय की वो जमीन दोनों ही आज सुधीर के बुढ़ापे का सहारा बन कर तैयार खड़े थे..।

सुधीर जी को विश्वास ही नहीं हो रहा था ….”लेकिन बेटा तुमने तो कहा था फोन पर ….कैसे कहें सोच ही रहे थे कि अनिमेष ने कहा ..हां क्या कहा था मैंने..!! कि आप लोग हमारे साथ नहीं रहेंगे यही ना…तो ठीक तो कहा था मैंने पिताजी आप लोग हमारे साथ नही हम लोग आपके साथ रहेंगे..पिताजी ये आपका और मां का घर है …क्या हम लोग इसमें आपके साथ रह सकते हैं…कहते हुए पिता को गले से लगा लिया अनिमेष ने।पिताजी अपने मकान का आपकी आंखों का सपना मैंने भी बुन लिया था और आनंदी के साथ मिलकर उसे हकीकत बनाने में जुट गया था।

इक बंगला बने न्यारा…..गीत का वॉल्यूम बढ़ाते हुए अनिमेष ने अल्हादित पिताजी की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए  लाल रिबन काटने वाली कैंची बढ़ाई और मां का हाथ पकड़कर साथ में खड़ा कर दिया…..आज तो पिताजी बहुत जच रहे हैं नेवी ब्लू गरम सूट वूलन कैप वाह….आनंदी ने मीठी मुस्कान से मां की ओर देखते हुए कहा तो मां भी हंसते हुए आनंदी की लाई हुई पिताजी से मैचिंग अपनी नेवी ब्लू येलो कांजीवरम साड़ी का पल्लू अपने सिर पर ठीक करती शर्मा सी गईं थीं… हां बेटा …आज तुम्हारे पिताजी की ही नहीं उनके भी पिताजी  की  चिर प्रतीक्षित ख्वाहिश  पूरी होने का क्षण है ….।

और सुधीर जी का बुढ़ापा आज अपने सुयोग्य पुत्र और अपने मकान दोनों का सहारा पाकर निहाल हो उठा था।

#सहारा 

लतिका श्रीवास्तव 

 

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