डोर जो न टूट सके  –  ………कुमुद चतुर्वेदी.

 स्कूल बस घर के पास जैसे ही रुकी वंश ने इशारे से माही को चुप रहने को कहा और खुद उतरने को आगे बढ़ गया।गेट के पास उसकी माँ पूजा ने आगे बढ़ उसका हाथ पकड़ा और घर चल दी।पीछे माही जब उतरी तो उसकी माँ लगभग दौड़ती आती दिखी,तब तक बस रुकी रही और जब माही का हाथ पकड़ नीति ने बस ड्राइवर को धन्यवाद कहा तब बस चल दी और नीति भी माही को लेकर घर आ गई।

         पूजा और नीति एक ही परिवार की बहुएँ थीं,पूजा बड़ी और नीति छोटी थी।पूजा के पति कुमार की कपड़े की दुकान थी और छोटे भाई मोहन की किराने की दुकान थी बाजार में।जब तक माता पिता जिन्दा थे सब एक साथ ही रहते थे परंतु दो साल पहले पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों में मतभेद होने लगे,तब माँ ने दोनों को ही अलग अलग  दुकानें खुलवाकर बड़े बेटे कुमार को मकान का निचला हिस्सा और छोटे बेटे मोहन को ऊपर का हिस्सा दे दिया था। माँ ने स्वयं को नीचे बैठक के कमरे तक सीमित कर लिया था सुबह का खाना बड़ी बहू पूजा और शाम का छोटी बहू नीति दे आती थी। करीब छै महिने पूर्व माँ भी नहीं रहीं।उसके बाद तो दोनों परिवारों में बोलना चालना भी बंद हो गया था। बड़ी बहू के एक ही बेटा था वंश जो पाँचवीं कक्षा में था।छोटी बहू के भी एक ही बेटी माही थी जो दूसरी कक्षा में थी।दोनों बच्चे एक ही स्कूल में थे और एक ही बस से आते जाते थे।घर पर सख्त मनाही थी आपस में  खेलने या बोलने की। फिर भी वे दोनों स्कूल में  एक साथ ही लंच करते और बस में भी साथ ही बैठते पर घर आते ही अलग हो अपनी अपनी माँ के साथ चले जाते।दोनों का बहुत मन करता था साथ खेलने और बोलने का,पर घर में सख्ती होने से चुप रह जाते।।स्कूल के फ्री टाइम और लंच टाइम में दोनों एक साथ ही रहते।




           कुमार और मोहन दोनों भी  बाजार में प्रेम से बोलते पर घर पर आकर अलग हो जाते थे।बड़ी बहू पूजा शांत स्वभाव की थी जबकि छोटी बहू नीति गुस्सैल और मुँहफट् भी थी।यही कारण था दोनों में नहीं बन पाई और दोनों परिवारों को अलग होना पड़ा था। उनके घर जो भी रिश्तेदार आते वे नीचे,ऊपर दोनों जगह ही मिलने जाते थे।

             एक दिन स्कूल बस से माही को लाने के लिये नीति नीचे उतर रही थी पर वह अचानक जीने से लुढ़कती हुई नीचे आँगन में गिरकर बेहोश हो गई।पूजा भी उस समय वंश को लेने बस पर गई थी, घर में कोई नहीं था।जब वह आई और उसने नीति को बेहोश देखा तो पहले वंश को माही को लिवा लाने के लिये भेजा और नीति को पड़ोसन की सहायता से उठाकर बेड पर लिटा उसे होश में लाने का प्रयास करने लगी।वंश भी माही को साथ लेकर आ गया था।नीति के हाथ में चोट लगी थी उस पर दवा लगा पूजा ने सिंकाई करने के बाद कुमार को फोन पर सब बताया।कुमार जब मोहन और डॉक्टर के साथ घर पहुँचा तब तक नीति को होश आ चुका था।डॉक्टर ने चैकअप करके बताया कि ईश्वर ने माँ और बच्चे दोनों की रक्षा की है।अब नीति को जीना नहीं चढ़ना चाहिये जब तक डिलेवरी न हो जाये।यह सुन पूजा ने खुशी से नीति को गले लगा लिया और बधाई दी।नीति शर्माकर रह गई फिर पूजा के पैर छूकर माफी माँगी।पड़ोसन भी मुस्कुराकर बोली “सच है अपने तो अपने होते हैं।”  

                         ………….कुमुद चतुर्वेदी.

 

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