“देवी का असली रूप” – पूनम वर्मा

आज नवरात्रि की पहली पूजा थी । मिसेज शर्मा सुबह से ही पूजा की तैयारी में लगी हुई थीं । बहू-बेटियाँ भी उनका सहयोग कर रही थीं । शर्माजी के  पूजा पर बैठने से पहले सारी तैयारी हो जानी चाहिए थी । शर्माजी वैसे तो बहुत पुजेरी नहीं थे, पर नवरात्रि की पूजा बड़े धूमधाम से करते थे । हफ्ते भर से तैयारियाँ चल रही थीं । पूजा का सारा सामान आ गया था । पंडित जी के आने का समय हो गया था । शर्मा जी भी नहाकर आ गए । मिसेज शर्मा ने पूजा-सामग्री पर सरसरी निगाह डाला – “कहीं कुछ छूटा तो नहीं !

“दीया, बत्ती, धूप, अगरबत्ती, घी,  प्रसाद, फल, मेवे, फूल, माला, दूध….  अरे ! दूध कहाँ है ?” मिसेज शर्मा ने पूछते हुए बेटी निशा को बुलाया ।

निशा दौड़ती हुई किचेन से आई और पूछा “क्या हुआ माँ ?”

“दूध का बर्तन कहाँ है ?” मिसेज शर्मा ने फिर पूछा ।

“किचेन में !” निशा ने सहज भाव से कहा ।

“जल्दी लेकर आ ।” मिसेज शर्मा ने डाँटते हुए कहा ।

निशा ने झट से दूध का बर्तन लाकर माँ को दे दिया ।

“यह क्या ? यह तो खाली है !” लगभग चीखते हुए मिसेज शर्मा ने पूछा ।

“हाँ ! भाभी ने सुबह ही दूध उबाल दिया था ।” निशा ने सहजता से जवाब दिया ।

अब मिसेज शर्मा का क्रोध सातवें आसमान पर चढ़ गया । तभी पंडित जी भी आ गए । शर्मा जी भी तैयार होकर पूजा स्थल पर पहुँच चुके थे ।  परिस्थितियाँ माहौल को और गर्म कर रही थीं ।

“जा जल्दी अपनी भाभी को बुला ला !” माहौल पर हावी होते हुए मिसेज शर्मा निशा पर  फिर चिल्लाईं ।


बहू डरी-सहमी-सी, अपनी गलती से अनजान, सजा पाने के लिए सबके सामने आकर नतमस्तक हो गई ।

“तुमने दूध क्यों उबाला ?” मिसेज शर्मा ने एक प्रतिवादी वकील की भांति सवाल किया ।

“जी ! रोज सुबह मैं ही उबालती हूँ,  इसलिए……. ” बहू ने डरते हुए सफाई दी ।

“अरे निकम्मी ! आज पूजा थी, एक बार पूछ तो लिया होता । कर दिया न सत्यानाश !” मिसेज शर्मा ने चिल्लाते हुए कहा ।

“जी, वो बच्ची को भूख लगी थी इसलिए पूछने का ध्यान नहीं रहा । 

बहू ने सहमते हुए कहा ।

तभी पंडित जी, जो उनलोगों की गरमा-गरमी का ताप सह रहे थे, ने शीतल वाणी की फुहार डालते हुए कहा , “यजमान ! क्रोध त्याग दें । आज नवरात्र के पहले दिन माता के आवाह्न का दिन है । आप क्रोध करके उन्हें रुष्ट न करें देवी !”

“पता नहीं पंडित जी क्या होने वाला है ? इन लड़कियों की लापरवाही से तो माता अवश्य ही रुष्ट हो जाएँगी ।” मिसेज शर्मा ने चिंता जताते हुए कहा ।

“यजमान ! मैं इन्हीं देवियों की बात कर रहा हूँ । आप नाराज़ न हों और इन देवियों को दुखी न करें । इन्होंने तो बहुत ही अच्छा काम किया है ।”

“अच्छा काम !” मिसेज शर्मा ने चौंकते हुए सवाल किया ।

“हाँ ! बिल्कुल सही सुना आपने ! इन बच्चियों में भी तो देवी का ही रूप है । नवें दिन तो आप इनकी भी पूजा करतीं हैं । आप यह समझें कि देवी ने प्रसाद ग्रहण कर लिया है । इन्हें दुखी करके पाप का भागी न बनें ।” पण्डित जी ने समझाते हुए कहा ।

मिसेज शर्मा दुर्गा जी को प्रणाम करते हुए क्षमा प्रार्थना करने लगीं । शायद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो रहा था ।

-पूनम वर्मा

राँची, झारखण्ड ।

 

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