शादी के दस साल बाद भी संतान न हो पाने का दर्द सुहानी को भी है। जब हँसते खिलखिलाते हुए छोटे बच्चों को देखती है तो ममता जा उठती है बारिश के दिनों में बरसने को आतुर उमड़ते घुमड़ते बादलों की तरह मगर जब हकीकत का एहसास होता है तो खुद को रोक लेती है।
सच में बहुत तकलीफ देह होता है एक स्त्री के लिए ये सब सहना।
पिछली दफा जब होली पर वह अपने मायके गई तब छोटी भाभी ने अपने बेटे मयंक की भीगी कमीज उतारते हुए सुहानी को उलाहना दी।
“मना किया था कि ज्यादा देर तक रंगो और पानी में नहीं भीगना, अब बुखार आ जायेगा तब करना तो तुम्हारा हमको ही पड़ेगा… बुआ का क्या तुम्हारी आजाद हैं न बच्चे की बीमारी की फिकर न कुछ करना धरना। ” हालांकि भाभी हँसते हुए कह रहीं थी मगर सुहानी का दिल तड़प उठा।
“भगवान ऐसी आजादी किसी को भी न दे भाभी। “
माँ उसके दर्द को समझ गई और धीरे से उसके काँधे पर हाथ रखकर चुप रहने को कहा, जैसे कह रही हों बेटा सुन ले तेरी किस्मत में ही सुनना लिखा है।
वह उस दिन को कोसने लगी जब शादी के तीसरे महीने में ही अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई थी जब डॉक्टर के पास गए सुहानी और उसके पति अक्षय जब डॉक्टर ने कहा… आप प्रेग्नैंसी टेस्ट कीजिये । “
सुहानी ने देखा कि प्रेग्नैंसी किट में दो लाईने लाल रंग की साफ दिखाई दे रहीं हैं तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
उसको ऐसा लगा मानो यह लाल लाइन उसका बच्चा हो।
वह बहुत खुश थी लेकिन अक्षय खुश नहीं थे उनके हिसाब से बच्चा जल्दी हो गया अभी तो उनके घूमने घामने और एंजॉय करने की उम्र है।
“देखो सुहानी तुम तो जानती ही हो आर्मी से कितनी कम दिनों की छुट्टियां मिलती हैं और, मैंने अगले हफ्ते गोवा जाने का भी प्लान बनाया है तुम्हारे लिए सप्राइज था,… अभी मैं बच्चे के लिए तैयार नहीं हूँ। “
“लेकिन? “
“लेकिन बेकिन कुछ नहीं हम इस बच्चे का अबोर्शन करा रहे हैं…! “
“कैसी बातें कर रहे हो अक्षय… ऐसे नहीं बोलते अपने बच्चे के लिए। ” उसने रुआंसी आवाज में कहा।
“अपना बच्चा? अरे बच्चा कहाँ से आ गया अभी कुछ नही है यह… तुम गंवारों जैसी बातें मत करो… अभी तो तुम्हारा भी कोलेज खत्म हुआ है… कैरियर पर फोकस करो… हम यंग हैं… बाद में हो जायेगा बच्चा। “
अक्षय ने दो टूक कह दिया और घर में किसी को बताये वगैरह ही सुहानी ने भारी मन से दुनिया में आने से पहले ही अपने बच्चे को गिरा दिया।
दोनों गोवा ट्रिप पर भी गये लेकिन सुहानी जैसे अंदर से टूट सी गई थी।
कुछ महीनों बाद ही ससुराल और मायके वाले मजाक में कहने लगे
“सुहानी लड्डू कब खिलाओगी? “
सुहानी मुस्करा भर देती।
शादी के तीन साल बीत गए सुहानी की जॉब बैंक में भी लग गई।
“अब तो हमको बेबी प्लान कर लेना चाहिए । ” उसने फोन पर अपने पति से कहा।
“हाँ मगर अभी जल्दी क्या है? देखता हूँ। ” कहकर उसने फोन काट दिया।
अगले ही दिन अक्षय तीन महीने की छुट्टी लेकर घर आ गए।
साल भी गुजर गया मगर उनके बच्चा नहीं हुआ। हारकर डॉक्टर के पास गए तब पता चला कि व कभी माँ नहीं बन सकती क्योंकि जब अबोर्शन कराया था तब उसको इंफेक्शन रहा था काफी दिनों तक उसका स्थायी असर उसकी प्रजनन क्षमता पर पड़ा था।
उस दिन वह बहुत रोई थी। अक्षय भी उदास थे कि उनकी एक गलती की बजह से उनको कितना बड़ा नुकसान झेलना पड़ा।
बहुत बड़े बड़े डॉक्टर्स को दिखा लिया लेकिन नतीजा शून्य ही रहा।
डॉक्टर्स ने आई. बी. एफ. करने से भी मना कर दिया।
घरवाले क्या बाहरबाले सबकी नजर में कसूर सिर्फ सुहानी का ही था हर की बातें बनाकर चला जाता।
किसी के बच्चे को गोद में क्या उठा लेती लोगों के चेहरों के भाव बदल जाते।
अक्षय भी अब बुझे बुझे से रहने लगे। संगी साथियों के बच्चों संग देखकर उनको बड़ी कमी महसूस होती बच्चों की।
“क्यों न हम बच्चा गोद ले लें? ” एक दिन सुहानी ने अक्षय से कहा तो वह बोला…
“घरवाले एक्सेप्ट नहीं करेंगे उसको… और मैं अपने परिवार के खिलाफ नहीं जा सकता हूँ। “
एक उम्मीद थी सुहानी को आज जैसे वह भी टूट गई ऐसा लगा दोबारा से उसका गर्भपात करा दिया गया हो।
अब शायद उसको पूरी जिंदगी लोगों के ताने सुनने पड़ेंगे… बे औलाद होने के ताने।
राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
(मौलिक कहानी)