डैडी  – सीमा बी.

#पितृ दिवस विशेष

हम भाई बहन जहाँ पैदा हुए थे वे एक छोटा सा गाँव था। किसान परिवार था। आज से तकरीबन 50 साल पहले गाँव में पापा को बाऊजी, पापा या बाबूजी के संबोधन से ही बुलाया जाता था पर हम पापा को डैडी कहते थे। हमारा ननिहाल दिल्ली में था तो ये शब्द मासी लोगों ने ही सिखाया होगा।

हम सब गाँव के छोटे से अँग्रेजी स्कूल में पढते थे।

हमारे डैडी दूरदर्शी थे, आने वाले समय के लिए बच्चो की अच्छी पढाई बेहद जरूरी है, सोच हमें दिल्ली ले आए। यहाँ हम सब भाई बहन पढने वाले थे। जैसे जैसे बड़े हो रहे थे, अपने पिता की खूबियों से रूबरु हो रहे थे। गाँव से खाली हाथ आने के बाद भी अपनी मेहनत से दिल्ली में छोटा ही सही अपना घर बना लेना छोटी बात नहीं थी। उनकी ईमानदारी, सच्चाई और कर्मठता की लोग आज भी मिसाल देते हैं। एक वक्त था कि पैसा नहीं था तो हम भाई बहन कुछ जरूरतों के लिए मन मार लेते थे, चार बच्चे पढने वाले थे हम और कमाने वाले वो अकेले। उन्होंने हमें बेहतरीन शिक्षा दी।

हमें अनुशासन में रहना सिखाया।उनको पढने का बहुत शौक था। यह शौक हम सब बहन भाई में भी है। वो “कमजोर की मदद करो और ईमानदार रहो”, हमेशा कहते थे। 

उनकी ये सीख हम सब भाई बहनों ने अपने जीवन में उतार ली।

आज हम सब अच्छे मुकाम पर उनके आशीर्वाद की वजह से हैं। बस दुख इस बात का हमेशा रहेगा कि जब सुख भोगने का समय आया तो वो चले गए। संतोष इस बात का है कि वो हम सब को जो सीखा कर गए हमने उसका अनुसरण किया और उनकी दी सीख ही आज अपने बच्चो तो देते हैं।

मेरा और डैडी का रिश्ता भले ही पापा बेटी का था, आज भी है क्योंकि मुझे हमेशा उनका अपने आसपास होने का अहसास होता है। हम पापा बेटी एक दूसरे से खूब लड़ते थे, बहस करते थे और मैं उन्हें कभी कभार डाँटा भी करती थी। वैसे ज्यादातर तो वही डाँट लगाते थे हम सबको। फिर भी वो मेरी डाँट को हँस कर सुन लेते थे। उन्हें मीठा बहुत पसंद था पर शुगर थी तो परहेज करना जरूरी था। वो छुप कर फ्रिज में से मीठा निकाल कर खा लेते थे तो कभी गीले फर्श पर चप्पल पहन इधर उधर घूमा करते तो मेरी डाँट उन्हें पड़ जाया करती थी।



हम लड़ते झगड़ते बेशक थे पर वो अपने दिल की बात मुझे बताया करते थे। खास कर जब घर में कोई नही होता था तब वो अपने बचपन की, स्कूल -कॉलेज की शरारतें और 10साल की उम्र से ही पढाई के साथ काम करने की बातें। मैं जब भी सुनती मैं ऐसे दिखाती कि मैं पहली बार सुन रही हूँ तो वो पूरे जोश के साथ बताते चले जाते।

कई बार वो ऐसी ऐसी बातें बताते जिन्हें सुन कर आँखों में आंसू आ जाते पर उन्होंने तो वो सब झेला था। मेरे भाई डैडी से बहुत डरते थे और सीधा उनसे अपनी बात नही कह पाते थे तो वो मेरा सहारे लेते और मैं डैडी के अंतिम वक्त तक भाइयों और डैडी के बीच एक पुल बनी रही। सब कहते थे कि डैडी तेरी बात नही टालते….. पर ऐसा भी नही था कई बार उनसे बात करने में मुझे भी डर लगता था। ऐसे में अपनी बात कहने की काफी प्रैक्टिस करती थी क्योंकि वो छोटी छोटी बात को पकड़ लिया करते थे तो ऐसे में तैयारी करनी बनती ही थी।

वो अब नही हैं पर जब हम सारे बहन भाई बैठते हैं तो डैडी के उसूलों की बातें और उनकी कही बातें जरूर करते हैं। हमारे पापा जहाँ भी होंगे उन्हें गर्व होता होगा कि उनके दोनो बेटे उनकी तरह अपने परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने में यकीन रखते हैं और हम सब भाई बहन एक हैं और साथ रह कर हर परेशानी को दूर कर लेते हैं।

ये सच है कि पिता की जगह कोई नही ले सकता पर ये भी सच है कि भाई बड़े हो या छोटे…. अगर वो अच्छे और समझदार हैं तो वो पिता की जगह चुपचाप ले लेते हैं बिना जताए और बताएँ अपनी जिम्मेदारी पूरी शिद्दत से निभाते हैं।

हमारे डैडी ने इतना कमाया जितनें में हमारी जरूरते पूरी हो सके…..और इसका कोई दुख भी नही पर जो शिक्षा और संस्कार हमें उनसे और माँ से मिले हैं वो किसी भी जमीन जायदाद से कम नही है। भगवान अगले जन्म में भी मुझे यही माता पिता दें, बस यही प्रार्थना करती हूँ।

18-06-2022

सीमा बी.

स्वरचित

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