छुटकारा – ऋतु अग्रवाल

    “पूनम! मैं तुमसे हजार बार कह चुका हूँ कि मुझे नई गाड़ी खरीदनी है और जिसके लिए तुम अपने पापा से मुझे रुपए लाकर दोगी।” प्रशांत घर में चीख चिल्लाहट मचाए हुए था।

    “प्रशांत, आप जानते हैं कि कोविड के बाद पापा का कारोबार ठंडा पड़ा हुआ है और फिर पूरे घर की जिम्मेदारी और अभी तो उन्हें विभा की शादी भी करनी है। ऐसे में मैं बार-बार उनसे रुपए नहीं माँग सकती।” पूनम रोए जा रही थी।

     “मुझे नहीं पता, तेरे बाप ने हमें दिया ही क्या है? मुझे रुपए चाहिए तो चाहिए और अब मैं कुछ नहीं सुनना चाहता।” प्रशांत चाय का कप फर्श पर फेंक कर घर के बाहर निकल गया।

    प्रशांत का हर दूसरे महीने यही काम था। वह पूनम को बार-बार उसके मायके से पैसे लाने के लिए कहता।

कई बार पूनम मायके से रुपये ले भी आई पर इससे तो शेर के मुँह खून लग गया। पहले तो प्रशांत कभी प्यार से तो कभी रूठ कर पैसे मंगवा लेता था पर अब तो वह मारपीट तोड़फोड़ पर उतरने लगा था। पूनम को भी मायके से बार-बार पैसे माँगते शर्म आती थी इसलिए अब वह आनाकानी करने लगी थी।

     पूनम और प्रशांत के विवाह को दस वर्ष हो चुके थे।

बड़ी बेटी राध्या आठ वर्ष और छोटा नभ छह वर्ष के थे।

प्रशांत को राध्या से भी बहुत चिढ़ थी। वह अक्सर कहता कि इसके दहेज के लिए मुझे बहुत काम करना पड़ेगा। मनहूस है यह, इसे तो मर ही जाना चाहिए। राध्या भी प्रशांत से डरी डरी रहती।




      प्रशांत तो घर से बाहर निकल गया पर पूनम सफाई करते करते सोचती रही कि अभी तो शाम को फिर तूफान आएगा। इसी भय में पूरा दिन निकल गया  शाम को प्रशांत घर आया तो बड़ा खुश था। आते ही उसने पूनम से कहा,” सुनो! मैं सोच रहा था कि बच्चों की छुट्टियाँ चल रही है, तो क्यों ना कहीं घूमने चलें? वैसे भी आज तक मैं तुम्हें कहीं घुमाने लेकर नहीं गया। तुम तैयारी कर लो तब तक मैं बाजार से कुछ खाने पीने का सामान ले आता हूँ।”कहकर प्रशांत बाहर की ओर निकल गया।

       पूनम आश्चर्य में पड़ गई।  पहले तो प्रशांत के बदले व्यवहार को समझ नहीं पाई पर फिर अपने ख्यालों को झटक कर तैयारी में लग गई। अगली सुबह बस के रास्ते पूनम और प्रशांत अपने बच्चों के साथ नैनीताल की यात्रा के लिए चल दिए। हँसते मुस्कुराते सब सफर का मजा ले रहे थे। आधे रास्ते पहुँचकर जब बस एक स्थानीय होटल पर एक घंटे के लिए रुकी और थकान उतारने के बाद जब बस पुनः चली तो प्रशांत और नभ बस में चढ़ चुके थे और बस चल पड़ी। पूनम ने बस को चलते देख आवाज लगाई तो ड्राइवर ने बस रोक दी। पूनम और राधा भाग कर बस में चढ़ी। अभी वह दोनों बस के पायदान पर ही खड़े थे कि बस चल पड़ी। अचानक से दो शक्तिशाली हाथों ने पूनम और राध्या को धक्का दिया और वह दोनों बस से गिर पड़ी।

      दोनों के गिरते ही यात्रियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। झटके से बस रुकी और और कुछ यात्रियों ने नीचे उतर कर पूनम और राध्या को उठाया। दोनों को ही काफी चोटें आई थी। कुछ यात्रियों ने प्रशांत की मुश्कें बाँध दी थी क्योंकि उन्होंने प्रशांत को राध्या और पूनम को धक्का देते हुए देख लिया था।

      जब प्रशांत से सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि मायके से पैसे ना लाने के कारण वह पूनम से छुटकारा पा दूसरी शादी करने वाला है और लड़की होने के कारण वह राध्या के दहेज में कुछ नहीं देना चाहता था इसलिए उसने यात्रा के बहाने माँ बेटी से छुटकारा पाने की योजना बनाई थी। प्रशांत की इतनी गिरी सोच के बारे में जानकर पूनम ने एक सख्त फैसला लिया।

      “प्रशांत! तुम्हें मुझ से छुटकारा चाहिए ना! मैं तुम्हें छुटकारा देती हूँ। मेरे दोनों बच्चे मेरे साथ रहेंगे और जल्द ही तुम्हें अदालत से सम्मन आएगा।अपने आज तक के कारनामों की सजा भुगतने को तैयार रहो।” बच्चों का हाथ थामे दूर जाती पूनम को देखकर प्रशांत सिर थाम कर वहीं सड़क पर बैठ गया।

मौलिक सृजन

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

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