चुप्पी कब तक – शालिनी दीक्षित

अरे बेटा इसमे नींबू पानी क्यों ले आई यह तो वाइन के ग्लास है?”

“ओके मम्मी जी अभी चेंज कर लेती हूँ……..” स्नेहा ने अपनी सास से कहा।

स्नेहा की सासू माँ अपनी किटी पार्टी की एक सहेली के साथ बैठी बातें कर रही थी, आज दोनों का नींबू पानी पीने का मन था। स्नेहा ग्लास में लेकर गई तो उन्होंने टोक दिया, वैसे यह कोई नई बात नहीं है स्नेहा के साथ यह टोका टाकी यहां चलती रहती है।

यह लोग महानगर में रहने वाले हाई सोसाइटी टाइप लोग हैं स्नेहा एक बहुत संभ्रांत परिवार की पैसे वाले घर की इकलौती लड़की है, अच्छा-खासा कारोबार है उसके पिता का।

स्नेहा ने भी सारे आराम बचपन से देखे हैं लेकिन उसके और इन लोगों के रहन-सहन में काफी अंतर है, कई बार उसके साथ यहाँ ऐसा व्यवहार होता है कि जैसे वह कोई अनपढ़ गवार है, लेकिन वह शालीनता के साथ चुपचाप सह लेती है। वह मन में यही सोचती है कि उनका रहन-सहन अलग है, बोल दिया तो बोल दिया चलो कोई बात नहीं। वह उनके जैसे तौर तरीके सीखने की भी कोशिश कर रही है।

उसके मन मे कई बार यह सवाल तो आता है कि इन लोगों ने अपने जैसी रहन-सहन वाली लड़की से अपने बेटे की शादी क्यों नहीं करी ?


शायद वह यह नहीं समझ पा रही है कि स्नेहा की खूबसूरती और उसके पिता का अच्छा खासा कारोबार ही है जिसने इन लोगों को मजबूर कर दिया इस शादी के लिए। जबकि स्नेहा के पिता ने कहा था कि हम छोटे शहर के लोग हैं रहन-सहन में बहुत अंतर है तब सासु माँ ने कहा था कोई बात नहीं हम सब सिखा लेंगे आपकी बेटी बहुत पढ़ी लिखी और होशियार है उसके अंदर कोई कमी नहीं है। लेकिन अब इन्हे रोज कमियां दिखती रहती हैं।

इन सब बातों को दिमाग से झटक कर स्नेहा अपने कामों में लग गई।

वह सब बर्दाश्त कर लेती, लेकिन उसके पति पार्थ का अपने साथ काम करने वाली एक महिला के साथ जरूरत से अधिक दोस्ताना उसको बर्दाश्त नहीं हो रहा है। जब भी वह कुछ कहने की कोशिश करती है तो पूरा घर यही कहता है- अरे साथ काम करने वालों से दोस्ती तो होती है, तुम नहीं समझ पा रही हो उसमें गलत कुछ भी नहीं है।

उस लड़की का घर आना इन लोगों के साथ इतना धुलना-मिलना इतनी नजदीकी के साथ अधिकार के साथ पार्थ से बातें करना स्नेहा को अच्छा नहीं लगता है, पर हमेशा यह कह दिया जाता है इसमें कुछ गलत नहीं है। वह भी सोचने लगती है कि चलो हो सकता है वही गलत सोच रही है, कुछ भी गलत नहीं है उन दोनों के बीच में।

वह हमेशा यह सोचती है कि वह अपने नाम की तरह ही एक दिन इन लोगों के मन में भी ऐसी जगह बना लेगी और इनकी सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी।

आज का तो पूरा दिन इसी सब उहा-पोह में निकल गया, पता ही नहीं चला कब शाम हो गई।

स्नेहा ने रसोई में जाकर कुक को बताया कि रात के खाने में क्या बनेगा और शाम के लिए कॉफी बनाने के लिए बोल दिया। उसको पता था पार्थ के आने का टाइम हो गया है तो सब एक साथ बैठकर कॉफी पिएंगे।


पार्थ ऑफिस से आ गए कपड़े बदल कर वह भी ड्राइंग रूम में बैठ गए हैं कॉफी का इंतजार करने लगे आज काफी कुछ खुश नजर आ रहे हैं।

“मा पापा मेरी कंपनी दूसरी कंपनी को टेकओवर करने वाली है, उसके लिए मुझे दूसरे शहर जाना है सारे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग रखी गई है। मीटिंग के बाद एक फैमिली पार्टी होगी जिसमें सबको अपनी वाइफ के साथ में आना है।” बोलकर पार्थ चुप हो गया।

स्नेहा मन में खुश हो गई इस बहाने उसको भी पार्थ के साथ बाहर जाने का मौका मिलेगा वरना तो वह हमेशा काम में बिजी रहते हैं।

“अच्छा बेटा ऐसी बात है तो फिर स्नेहा को कुछ अच्छे कपड़ों की शॉपिंग करा दे जैसे पार्टी में पहनने हो……”–पार्थ की मां ने कहा।

“मां मैं सोच रहा था कि अंजलि को अपने साथ ले जाऊं स्नेहा उस पार्टी में सेट नहीं होगी मुझे लगता नहीं कि स्नेहा को कोई प्रॉब्लम होगी अगर अंजलि मेरे साथ जाए वहां कौन जानता है कि अंजलि मेरी वाइफ नहीं है……”

यह सुनकर स्नेहा तो सन्न रह गई वह कुछ बोली नहीं चुपचाप अपने कमरे में चली

“अरे क्या हुआ डार्लिंग बुरा मान गई…….” पीछे पीछे पार्थ भी रूम में आ गए

“मेरी जगह किसी और को ले जाने की बात कर रहे हैं तो मुझे दुख तो होगा ही यह कौन सी बात हुई…….?”


“अरे समझा करो तुम्हारी जगह कौन ले सकता है, बस कंपनी का मामला है; जरा पार्टी में ले जाने की तो बात है और तो कोई बात है नहीं, प्लीज तुम समझो न……”

तभी पार्थ का कोई फोन आ गया तो वह फोन सुनने रूम से बाहर चला गया।

इस दुखी उदासी के माहौल में जबकि स्नेहा के मन में अंदर से बहुत गुस्सा भी है इस बात को लेकर उसको कई साल पहले पढ़ी हुई उषा प्रियंवदा की उपन्यास याद आ गई शेष यात्रा नायिका के साथ लगभग ऐसा ही व्यवहार होता था और उस नायिका ने अपना पूरा कायाकल्प करके उन लोगों के जैसी बन गई थी लेकिन अपने संस्कार नहीं छोड़े थे और उनको दिखा दिया था वह कुछ भी कर सकती है आज स्नेहा ने भी मन में सोच लिया है वह भी इन लोगों को दिखा देगी कि स्नेहा भी कुछ भी कर सकती है लेकिन अब इन लोगो के  साथ नहीं रहेगी उसको अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता अब बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है।

#आत्मसम्मान    

शालिनी दीक्षित

मौलिक/ स्वरचित

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