अम्मा! तुम क्यों डांटती हो इसको इतना? सब काम तो करती है ख़ामोशी से, कितनी सीधी सादी बहु है तुम्हारी।
बेटे ने मां से शिकवा किया।
कुछ बोलती नहीं, कितना भी ताना दे लो। बड़ी बड़ी आंखों से ख़ामोश देखती है। कुछ जवाब दे तो बब्बू को कहूं भी कि अपनी दुल्हन की नकेल कसे। गूंगी बनके अपने मरद को लुभाती है। पेट में दांत होंगे इसके।
चुड़ैल कहीं की!
अम्मा! रोटी कम हो जाने पर इतना कड़वा बोल रही हो, तुम्हारी बहु है वो, थोड़ा तो प्यार से बोलो।
कह तो रही थी न वो कि फिर से बना देती हूं।
बेटे ने फिर टोका मां को।
आज इसे रोटी कम हो जाने का ताना दिया तो कैसे पलट के जवाब दे रही थी,
और बना देती हूं अम्मा जी! हुंह!
मुंह में ज़बान उग आई है। बब्बू को अपने इशारों पर नचा रही है, कैसे बीवी की हिमायत में मुंह खोलने लगा है मेरा बेटा।
कहां से मेरे घर आ गई!!
चुड़ैल कहीं की!
ये लो! ठूंसो!
जानबूझकर धीमी आंच में सुबह की सेंकी दो रोटियां जो चमड़े जैसी हो गई थीं, सास को पानी जैसी दाल के साथ दी बहु ने।
धीरे धीरे सख़्त रोटी को चबाती सास को देखकर बहु सोच रही थी, कुछ शिकायत तो करे ये अपने बेटे से, घर अलग करके ही रहूंगी फिर।
पर ये डोकरी तो कुछ बोलती ही नहीं, चुप रहती है कितना भी सताओ। भली बनके, बेटे को अपनी तरफ़ कर रखी है।
चुड़ैल कहीं की!
रात को ठंडा चावल नहीं पचता बहु, दो रोटियां दे दो।
नखरे तो देखो महारानी के, गरम रोटियां चाहिए, मुंह में ज़बान आ गई है, बेटे के सामने बोल रही है, दिन में तो चुपचाप खा लेती है। चालाकी कर रही है, पता है इसे, मैं इसके बेटे के सामने चुप रहूंगी।
तुझे कल दोपहर को मज़ा चखाती हूं!! रुक
चुड़ैल कहीं की!
चुड़ैल में बदलती इन स्त्रियों को देखकर
असली चुड़ैल शर्मिंदा हो गई और खंडहरों की तरफ़ उड़ चली।
चुड़ैल कहीं की!