चाहतों का आशियाना – तृप्ति शर्मा

ऋचा का बचपन आर्थिक तंगी के कारण बड़ा सादा सा बीता ।जरूरतों की चीजें ही बड़ी मुश्किल से जुड़ पाती ‌मां पापा दोनों ही बड़ी जी तोड मेहनत करते।तब जाकर चार बच्चों को साधारण सी पढ़ाई के साथ एक साधारण जिंदगी दे पा रहे थे।

       ऋचा सभी भाई बहनों में सबसे छोटी थी ।जब कभी अपनी किसी सहेली के घर जाती तो साजों सामान से सजा घर देखकर सोचती ,काश मेरा भी घर ऐसा ही सुंदर होता।

   अपनी मेधावी पने से जुगाड़ कर दिवाली आदि त्योहारों पर जैसे-जैसे अपने घर को सजाती। समय आगे चले जा रहा था और ऋचा की सजे धजे घर की चाहत भी बढ़ती जा रही थी। 

   सभी भाई बहनों की शादी हो चुकी थी। अब घर में उसकी ही शादी की चर्चा थी ।ऋचा दुखी भी थी पर खुश भी थी कि बड़ी बहनों की तरह उसका भी अपना एक घर होगा ।जिसे वह अपनी चाहतों के हिसाब से सजाएगी।

  घर तो मिला पर अपना नहीं किराए का ,जो समय समय पर उसे बदलना पड़ता था ।नए घर को सजाती फिर उधेड़ कर दूसरे ठिकाने चल देती ।आंखों के आंसू छिपा पति को ढांढस बधाती 




सामान बांधती पर पति का प्यार उसके शब्दों के पीछे छिपे दर्द को पहचान लेता।

      अबकी बार मकान खाली करते समय ऋचा का हाथ अपने हाथ में लेकर मोहित (पति) ने कहा अब की बार पूरी कोशिश होगी तुम्हें अपना एक आशियाना देने की ।ऋचा बोली “तुम्हारे प्यार के साथ जहां भी रहूंगी वही मेरा आशियाना होगा “।दोनों सामान लेकर दूसरे मकान की तरफ उसे सजाने उसमें रहने चले चल दिए।

    समय ने फिर पलटी खाई दिवाली के दिन नजदीक थे ।मोहित ने काम में रात दिन एक कर रखा था । ऋचा भी रात तक ट्यूशन पढ़ाती। पति का हाथ बटाती ।किस्मत ने हाथ पकड़ा तो धनतेरस के दिन मोहित ने प्लॉट के कागज ऋचा के हाथ में पकड़ा दिए।

   खुशी से आंखों में आंसू के साथ झूम उठी ऋचा एक-एक काम घर में अपनी देखरेख व चाहत के हिसाब से करवाया।

   मोहित के चेहरे पर एक सुकून की मुस्कुराहट फैल जाती ऋचा को देखकर।

  घर बनकर पूरा हुआ गृह प्रवेश वाले दिन मोहित और ऋचा का चाहतों का आशियाना उनके दिल की खुशी और उनकी की गई मेहनत की तरह चमक रहा था।

तृप्ति शर्मा ~

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