चाहत – मणि शर्मा

“लाजो! मुझे कल देर से उठाना बहुत थक गई हूँ। अंदर आते हुए मेघना ने नौकरानी से कहा, और हाँ दरवाजा बंद कर लो साहब सुबह आएंगे “।

“बीवी जी! खाना?लाजो ने पूछा।

“मैं खाकर आई हूँ ,तुम सो जाओ ” कहकर मेघना कमरे में निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई उसकी इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि कपड़े बदल ले।

  मेघना ने सोचा कि बिस्तर पर जाते ही उसे नींद आ जाएगी पर नींद की जगह उसको अपने  बच्चों की याद सताने  लगी। शायद माँ और पिता मे यही अंतर होता है। पिता तो काम में अपने आप पूरी तरह डूब सकता है पर माँ नहीं । माँ की आँखों के आगे तो काम करते हुए भी बच्चे घूमते रहते हैं  ।

     कालेज ने व्यस्त होने की बजह से मेघना बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाती थी,इसका उसे हमेशा अपराध बोध रहता।  उसके कालेज की तीसरी शाखा का परसों मेरठ में शुभारंभ होना था और इंतजाम देखने उसे अमित के साथ  कल मेरठ जाना था इसलिए वह अमित के पास आगरा आई थी।  आज कालेज की मीटिंग में देर हो गई थी, फिर किसी नेता के बेटे की शादी में न चाहते हुए भी जाना पड़ा  था।  वह बहुत थक गई थी  इसलिए जिद करके घर आ गई  पर अमित को उन लोगों ने ज़बरदस्ती रोक लिया था।

   मेघना नोएडा के कालेज को देखती थीऔर अमित आगरा के कालेज को सम्हाल रहे थे। सप्ताह के अंत मे ही सब लोग मिल पाते थे।  दोनों बच्चे अनन्या और अरनव मेघना के साथ नोएडा में रह कर पढ़  रहे थे । अनन्या चौथी क्लास में आई थी  और अरनव अभी पहली  में था।  बच्चों की देखभाल में कोई कमी न हो इसलिए उसने सपना को पूरे समय के लिए रखा था।  सपना बहुत अच्छी लड़की थी और बच्चों का बहुत ध्यान रखती थी।

पर बच्चे मेघना की कमी बहुत महसूस करते। अनन्या कई बार कहती,”मम्मा आप भी मुझे लेने के लिए स्कूल आया करो न ,पीहू की मम्मा रोज आती हैं। “मेघना अपने आप को बहुत निरीह सा महसूस करती। वह बच्चों को तरह तरह से समझाती पर अनन्या खुश नहीं होती।  जब भी उसने इस बारे में अमित से बात की तो वह कहते,”कुछ पाने के लिए कुछ  तो खोना ही पड़ता है ,और यह सब हम अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए ही तो कर रहे हैं। “मेघना को निरुत्तर होना  पड़ता। यही सब सोचते सोचते मेघना की आँख कब लग गई उसे पता ही नहीं चला।



    ट्रंन !ट्रंन!टेलीफोन की घंटी बज रही थी। मेघना को लगा जैसे कोई सिर पर हथौडा़ मार रहा हो वह हडबडा़ कर उठी। सामने  दीवार पर नजर पड़ी तो देखा कि घड़ी मे 1बज रहा था। इस समय कौन होगा मन ही डरते हुए उसने रिसीवर कान से लगाया।

“हैलो !सारी मैडम मैं सपना बोल रही हूँ। “सपना की आवाज सुनकर मेघना घबराकर कर बोली “क्या हुआ सपना इतनी रात को कैसे फोन किया? बच्चे ठीक हैं न “

“कोई परेशानी की बात नहीं मैडम जी !आज एक एेसी बात हुई है जो मुझे लगता है कि आपको जरूर बतानी चाहिए।  आपने अपने कार्यक्रम के बारे मे बताया था इसलिए मैंने इस समय फोन किया। “

“हाँ! हाँ! बोलो सपना “मेघना से रहा नहीं जा रहा था।

“मैडम! आज बेबी का दाँत टूट गया था। वह रो रही थी तो मैंने बहलाने के लिए कहा कि इसे मुट्ठी में बंद करके जो कुछ भी माँगते हैं वह जरूर मिलता है। जानतीं है मैडम उसने क्या माँगा ?”

“क्या माँगा “?मेघना के स्वर बेचैनी थी।

“मैडम !उसने आँख बंद करके कहा,” कि जब मैं सुबह अपनी आँखें खोलूँ तो मम्मा मेरे सामने आ जाए” कहते कहतेे सपना का स्वर गीला हो गया।

मेघना के कान जैसे सुन्न पड़ गए थे। उसकी आँखों से झरझर आँसू बहने लगे।

अपने आपको किसी तरह सम्हाल कर मेघना ने सपना को धन्यवाद दिया और सिर थाम कर बैठ गई।

उसके सामने अनन्या का मासूम चेहरा घूमने लगा।  वह  सोच रही थी   कि कैसी माँ है वह,जो बेटी के अंतर्मन की पीड़ा को नहीं समझकर भी  अनदेखा करती रही । उसकी व अमित की व्यस्तता कहीं उसके परिवार को ही तोड़ कर न  रख दे और कुछ पाने की कश्मकश में वह सब कुछ ही न खो  बैठे। थोड़ी ही देर में मेघना ने निर्णय ले लिया था। फोन करके मेघना ने ड्राइवर को सुबह 4 बजे बुलाया।

  सुबह 4बजे ही मेघना अनन्या की चाहत पूरी करने नोएडा के लिए निकल पड़ी थी।अनन्या के चेहरे पर खुशी देखने के लिए मेघना उतावली हो रही थी।

सालों की थकान के बाद इस समय उसके मन को जो सकून मिल रहा था  उसे  सिर्फ और सिर्फ मेघना ही महसूस कर सकती थी।

मणि शर्मा

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