बुधनी…. – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

हां यहीं नाम था उसका… 

क्यों कि वो बुधवार को पैदा हुई थी इसलिए माता-पिता ने उसको यहीं नाम दे दिया… 

और यही नाम उसकी पहचान बन गई।

माता-पिता की सबसे बड़ी संतान होने के कारण बुधनी को विरासत में हीं ढेर सारी जिम्मेदारियां मिल गईं…

बचपन में जब सारे बच्चे खेलकूद और मौज-मस्ती में लगे रहते तो बुधनी माता-पिता के साथ खेतों में खुरपा लेकर निराई गुड़ाई करती हुई मिलती…

हर दिन पिता के लिए खेत पर खाना पहुंचाना,गाय और बैलों के लिए चारा लाना और बकरियों को चराना ये सारे काम बुधनी को बड़े हीं प्रिय लगते थे… 

और लगे भी क्यों नहीं बचपन से यहीं तो करती आ रही थी वो…. 

परंतु जब वो अपने बाल सखाओं को क्रीड़ा करते हुए देखती तो मन में कहीं ना कहीं एक टीस सी उठती थी कि काश वो भी इस प्रकार बेफिक्र होकर कभी खेल पाती….. 

बुधनी के नन्हें से कंधे पर जिम्मेदारियों का बोझ कुछ कम नहीं था…. 

फिर भी अपनी सीमित दुनिया में वो हमेशा खुश रहा करती थी…. 

क्यों कि माता-पिता के घर में जो भी संसाधन थे सब पर उसका अपना अधिकार था… 

स्वभाव से हीं स्वाभिमानी बुधनी को मैके में सम्मान की सूखी रोटी भी छप्पन भोग से कम नहीं लगता…

समय की गति के साथ-साथ बुधनी भी अब उम्र के चौदहवें पड़ाव पर पहुंच चुकी है….

शारीरिक परिवर्तन के साथ-साथ उसके व्यवहार में भी परिवर्तन साफ-साफ नजर आने लगा है…. 

खेत पर देर रात या अकेले जाने पर अब पाबंदी लग चुकी है… 

नयी उमंगें बुधनी के मन में हिलोरे लेने लगे हैं…. 

मां को अब बुधनी के हाथ पीले करने की चिंता सताने लगी है…. 

एक दिन बुधनी के मां ने भोजन के दौरान उसके बापू से बुधनी के विवाह की चर्चा छेड़ दी… 

देखो जी!! बेटी अब चौदहवें बरस में प्रवेश कर चुकी है हमें अब इसका विवाह कर देना चाहिए…. 

वर ढूंढते हुए कुछ समय तो लगेगा हीं….

अभी विवाह कर देंगे और तीन-चार साल बाद गौना…. 

ठीक कह रही हो बुधनी की अम्मा…. 

बड़ी बेटी का विवाह समय पर होगा तभी तो बाकि बच्चों के बारे में भी सोचेंगे…. बुधनी के बापू ने कहा।

अपने विवाह की चर्चा सुनकर नारी सुलभ लज्जा से बुधनी के गाल लाल हो गए… 

और वो विवाह के सतरंगी सपनों में खो गई…

बुधनी से छोटी दो बहनें और एक भाई थे जिन्हें बुधनी के विवाह को लेकर एक अलग हीं उत्साह था….

बुधनी के बापू को एक अलग हीं चिंता खाए जा रही थी कि, बुधनी के विवाहोपरांत खेती-बाड़ी का काम कैसे चलेगा??? 

बाकि बच्चे अभी छोटे हैं… 

परंतु अपने स्वार्थ के लिए बिटिया को कुंवारी भी तो नहीं रखा जा सकता…. 

हर दिन खेत-खलिहान का काम निपटा कर बुधनी के लिए वर ढूंढने निकल पड़ते उसके बापू…. 

कहीं घर अच्छा तो वर नहीं…

कहीं वर तो घर नहीं….

एक लंबे भाग-दौड़ के बाद बुधनी का विवाह सुदूर के एक गांव में ठीक हो गया….. 

लड़के वालों की कुछ शर्तें मानने के बाद बुधनी का ब्याह रमेश के साथ हो गया…. 

विवाह के ढ़ाई साल बाद बुधनी मन में हजारों सुनहरे सपने सजाए अपने ससुराल आ गयी…. 

सत्रह साल की लोच उमर, सांवली रंगत, दिखने में हट्टी कट्टी सी बुधनी ने जब ससुराल में प्रवेश किया तो सास ननद तो जैसे फूले ना समाईं…. 

मिट्टी और कंडे से बना एक छोटा परंतु बड़ा हीं सुंदर था बुधनी का ससुराल…. 

ननदें भाभी का हाथ थाम कर उसके कमरे में ले गयी…. 

और उसका घूंघट उठा कर विनोद करते हुए बोली – क्या बात है भौजी आपको पाकर तो मेरे भैया गदगद हो गये… 

कितनी सुन्दर और कितनी प्यारी भाभी मिली हैं हमें… 

आप अभी अपना घूंघट ना हटाना… 

क्यों कि मुहल्ले की स्त्रियां मुंह दिखाई की रस्म के लिए आने वाली हैं…. 

इतना कहकर वो सब बाहर चली गईं…. 

बुधनी ने अपने पल्लू को थोड़ा ऊपर सरका कर उस कच्चे मकान के कमरे को बड़ी हीं प्रेम भरी नजरों से देखने लगी…. 

पूरा कमरा सिक्की की बनी वस्तुओं से सजाया गया था… 

दरवाजे पर रंग-बिरंगे ऊन के बने झालर टंगे थे… 

कमरे में एक तरफ श्याम श्वेत तस्वीरें टंगी हुई थी… 

बुधनी को ये सारी वस्तुएं बड़ा हीं आकर्षित कर रही थीं… 

वो मन ही मन सोचने लगी कि काश वो भी बना पाती ये सब… 

मगर उसने तो अपनी सारी उम्र खेती के कामों में हीं लगा दी….

इस तरह से बुधनी के ससुराल में एक एक दिन बीतने लगा… 

धीरे-धीरे बुधनी को ससुराल वालों की असलियत मालूम हुई कि ये जो घर और खेत-खलिहान है ये सब इन्हें इनके मालिक ने दिया है वो भी इस शर्त पर कि इनका परिवार जब तक जीएगा 

मालिक की गुलामी करता रहेगा और मालिक के रहमो-करम पर पलेगा…

मैके में कमी में हीं सही परन्तु यह स्वाभिमान की जिंदगी जीने वाली बुधनी को तो जैसे ये सब सुन कर सांप सुंघ गया….

जब रमेश ने कहा कि बुधनी!!!कल से तुम भी बड़े घराने में जाओगी काम पर… 

वहां मालकिन तुम्हें जो कार्य सौंपेगी वो तुम्हें भगवान का हुक्म समझ कर करना होगा…. ।

परन्तु… 

बुधनी ने कहा।

कोई सवाल नही… रमेश बोला।

बुधनी को रात भर नींद नहीं आई… 

अब तक सम्मान की सूखी रोटी खाती आई थी वो ससुराल में आकर ये सब करना पड़ेगा सोचा ना था… 

पूरी रात आंखों आंखों में बीत गयी… 

बुधनी अनचाहे मन से अपनी ननद के साथ बड़े घराने चल पड़ी… 

चेहरा घूंघट में ढंका था… 

घूंघट में हीं आंसू पोंछती जा रही थी… 

बड़े घराने पहुंच कर मालकिन के पांव छुए… 

मालकिन ने जमीन पर बैठने का इशारा किया… 

बुधनी क्रोध पर काबू पाते हुए बैठ गई… 

काफी हट्टी कट्टी है तेरी भाभी सुनहली.. 

इसे तो मैं अपने निजी कार्य के लिए रखूंगी… 

कहो पांव दबाओगी ना मेरा??? 

बुधनी गुस्से में बिफर पड़ने वाली थी मगर सुनहली ने उसका हाथ दबाते हुए मालकिन से कहा- जी हां … 

बुधनी सुनहली के इशारे पर मालकिन के पांव दबाने लगी… 

बुधनी भी अब बड़े घराने वालों की गुलाम थी… 

नयी नवेली दुल्हन बन कर कितने ख्वाब सजा कर आई थी वो मगर मिला भी तो गुलामों वाला जीवन… 

बुधनी हर दिन इस गुलामी से निकलने के उपाय ढूंढने लगी…. 

एक दिन उसने अपने पूरे परिवार के सामने अपनी बात रखी और कहने लगी – आखिर कब तक हम ये गुलामों की जिंदगी जिएंगे और वो भी कुछ खेत और एक घर के लिए… 

हां माना कि हमारे बुरे वक्त में बड़े घराने वालों ने हमारी सहायता की… 

मगर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम उनकी गुलामी करते रहें… इस प्रजा प्रथा को हमें समाप्त करना हीं होगा…. 

 सम्मान की सूखी रोटी अपमान के छप्पन भोग से कहीं अधिक अच्छा होता है…. 

हमें अपना व्यवसाय शुरू करना चाहिए…. 

मांजी और सुनहली ने जो ये सिक्की से बने इतनी सुंदर-सुंदर वस्तुएं बना कर रखी हैं… 

हम इनसे हीं अपने व्यवसाय का आरंभ कर सकते हैं… 

हम दूसरों से कुछ जमीनें अधिया बटैया लेकर खेती-बाड़ी कर सकते हैं धीरे-धीरे रुपए आने लगेंगे तो हम अपने लिए मकान बना लेंगे…. 

कुछ पैसे सरकार से लोन पर ले लेंगे… 

बुधनी के इस सुझाव पर पूरे परिवार ने सहमति की मुहर लगा दी और बरसों पहले अपने पुरखों द्वारा गुलाम बनने और प्रजा प्रथा को स्वीकृति देने की इस अभिशाप से मुक्त करने के लिए एकजुट होकर प्रयत्न करने लगे… 

शुरुआत में परेशानियां तो आईं परंतु सबके हौसले इतने बुलंद थे कि लौट कर चली गई… 

दो-चार सालों के अथक परिश्रम के उपरांत आखिरकार उन्होंने वो गुलामी वाली जमीन और घर छोड़ हीं दिया… 

एक छोटी सी जमीन का टुकड़ा खरीद कर उस पर फूंस की झोपड़ी डाल ली…. 

आज उस फूंस की झोपड़ी में उनका पहला दिन है… 

उनकी स्वाधीनता का पहला दिन… 

उनके स्वाभिमान से जीने के आरंभ का पहला दिन…. 

आज पूरे परिवार ने खाई है जी भर के सम्मान की सूखी रोटी 

अपमान के एक लंबे जीवन को पीछे छोड़ कर….

डोली पाठक 

#सम्मान की सूखी रोटी

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