बिट्टो की ससुराल – पुष्पा जोशी  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नन्हीं बिट्टो के लिए ससुराल एक खेल का नाम था, उसका मनपसंद खेल था ससुराल-ससुराल। वह और उसकी नन्हीं बाल सेना जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही शामिल थे, अक्सर इस खेल को खेलते थे।वैसे तो बिट्टो का नाम बिंदिया था, मगर प्यार से सब उसे बिट्टो कहते थे। बिट्टो की मम्मी सरिता उसकी गुड़िया को बहुत सुन्दर कपड़े पहनाती थी, और सजाती थी।

बिट्टो को भी मजा आता था उसे सजाने में, इसलिए शादी में दुल्हन उसकी ही गुड़िया बनती थी। बाकायदा बाजे-गाजे के साथ बारात आती, शादी होती फिर गुड़िया की बिदाई होती, मगर बिट्टो भी उसके साथ उसके ससुराल जाती। अक्सर  दूल्हा बनता था सौरभ का गुड्डा। कुछ देर बाद बिट्टो अपनी गुड़िया को लेकर घर आ जाती, अपनी गुड़िया वह किसी को नहीं देती थी।

बच्चों को खेलने में मजा आता था, और माता पिता भी उनकी खुशी में शामिल रहते थे। कुल तेरह बच्चों की टोली थी। बच्चे मिलकर कभी        सितोलिया, कभी नदी पहाड़, कभी गुल्ली-डंडा तो कभी छुप्पमछाई खेलते। बारिश में घर के अन्दर अन्ताक्षरी खेलते तो कभी बारिश रूकने के बाद रूके हुए पानी में नाव तैराते थे। पूरी कॉलोनी के लोग बिट्टो को बहुत प्यार करते थे, वह थी ही इतनी प्यारी, गोल मटोल,  गौर वर्ण, कंजी  ऑंखो वाली, जिसके भूरे रेशमी बाल हमेशा सलीके से क्लिप  से बंधे होते।

भोली भाली मासूम सबके साथ मिलजुल कर रहती थी, उसकी बोली इतनी मीठी थी, कि सबको अपना बना लेती थी। माता-पिता और अपने बड़े भैया की आज्ञाकारी थी, पढ़ाई के समय मन लगाकर पढाई करती और हमेशा प्रथम आती थी।वह चौथी कक्षा में पढ़ती थी तब उसके भाई उज्जवल की सगाई निश्चित हो गई।

बिट्टो उसके भाई से १२ साल छोटी थी, बढ़ी मान मंगत के बाद हुई थी, इसलिए सबकी बहुत लाड़ली थी। सरिता जी ने कहा- ‘बिट्टो बेटा कल जल्दी उठकर तैयार हो जाना, हमें तुम्हारें भैया के ससुराल जाना है, कल तुम्हारें भैया की सगाई है।’ सुबह बिट्टो जल्दी तैयार हो गई, भैया के ससुराल में सबने उनका बहुत स्वागत किया, भोजन बहुत स्वादिष्ट था,भाभी तरूणा से मिलकर बिट्टो बहुत खुश हुई, उसको उपहार में एक प्यारी सी फ्राक भी मिली।

घर आने के बाद वह पूरी कॉलोनी में जाकर कह आई- ‘कि भैया की ससुराल बहुत अच्छी है और भाभी तो बहुत ही सुन्दर है, बिल्कुल मेरी गुड़िया जैसी। अब दो महिने बाद भैया की शादी है, आप सब बारात में जरूर चलना।’दो महिने कैसे निकल  गए पता ही नहीं चला, फिर  बहुत धूमधाम के साथ उज्जवल की शादी हो गई, बच्चों की गर्मी की छुट्टियां थी इसलिए पढ़ाई की चिंता भी नहीं थी, सभी बच्चे बहुत खुश थे।

फिर वह घड़ी भी आई जब उसकी भाभी सरिता की बिदाई थी, सब बहुत रो रहैं थे, उसकी माँ का रोना रूक ही नहीं रहा था, तब बिट्टो ने उनके ऑंसू पौछे और बोली, आप रोओ मत हमारे साथ चलो, थोड़ी देर बाद भाभी को लेकर आ जाना, हम जब खेलते हैं, तो ऐसा ही करते हैं, मैं अपनी गुड़िया किसी के यहाँ नहीं छोड़ती। बिट्टो की मासूम बातें सुन ऑंसुओं के साथ यामिनी जी के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई थी, वे क्या कहती बिट्टो से।

कैसे समझाती कि बेटा यह खेल नहीं हकीकत है, आज मेरी बेटी पराई हो गई है। उन्होंने बस इतना ही कहा-‘बिट्टो बेटा, अपनी भाभी का ध्यान रखोगी ना, उसे रोने मत देना। ‘ ‘मैं अपनी भाभी का ध्यान रखूँगी, और उनके साथ खेलूँगी भी, कभी रोने नहीं दूंगा, आप मत रो।’ उसकी मासूम बातों पर सभी को प्यार आ जाता था, बहुत भोली थी वह।अब बिट्टो अपनी भाभी का पूरा ध्यान रखती। तरूणा अपने ससुराल में खुश थी। 

एक दिन  सब बैठे हुए बात कर रहै थे,एक दिन पहले ही  बच्चों की टोली ने ससुराल-ससुराल खेल खेला था, इस बार बिट्टो की गुड़िया को तरूणा ने सजाया था। बिट्टो ने पूछा-‘ भाभी आपको कल खेल में कितना मजा आया?तरूणा ने  कहा मजा तो आया  मगर थोड़ा कम,जब आप दुल्हन बनोगी ना,तो मैं आपको बहुत सुन्दर सजाऊँगी।

फिर मजाक की मुद्रा में बोली मम्मी जी अब बिट्टो की शादी कर देते हैं। ‘ सब हंस दिए बिट्टो ने कहा- ‘ना बाबा ना, मुझे नहीं जाना ससुराल।’ माँ ने कहा-‘मगर बेटा ससुराल तो सभी को जाना पड़ता है,कल तुम्हारी गुड़िया भी ससुराल गई थी ना। ‘ तो ठीक है मेरी सौरभ से शादी कर देना मेरे साथ चलना और फिर मुझे वापस लेकर आ जाना।’ बात बिल्कुल बाल सुलभ रूप से बिट्टो के मुंह से निकली थी। बिट्टो के पापा रजनीश जी ने कहा ‘तुम दोनों मेरी बेटी को परेशान कर रही हो। अभी तो मेरी बिटिया को बहुत पढ़ाई करनी हैं, है ना बिट्टो।’ बिट्टो अपने पापा की गोदी में चढकर बैठ गई

समय तेजी से भागता है, बिट्टो ने एम, एस सी कर लिया था, और विद्यालय में उसकी नौकरी लग  गई थी। अब सबको उसकी शादी की चिंता थी। सब जानते थे कि बिट्टो बहुत भोली और भावुक है उसके लिए ऐसा घर-वर ढूँढना पढ़ेगा जो उसकी भावनाओं को समझे, उसे खुश रखे। 

कई लड़के देखे कही परिवार नहीं जमा, कहीं लड़का पसंद नहीं आया तो कहीं पत्रिका नहीं मिली। रजनीश जी के एक मित्र ने एक रिश्ता बताया था, परिवार बहुत अच्छा था और लड़के विनायक की विदेश में बहुत अच्छी कंपनी में नौकरी थी। विनायक ने किसी विवाह समारोह में बिट्टो को देखा था उसे बिट्टो बहुत पसंद आई।

दो दिन बाद वे प्रस्ताव लेकर आ रहै थे। सरिता जी को चिंता हो रही थी, कि वे अपनी बेटी को इतनी दूर कैसे भेजे। वे चिंता में थी तभी सौरभ की मम्मी और पापा उनके घर आए। पूरे दस साल के बाद उन्हें देख कर सरिता जी को हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ। वे बोली आइये – ‘इतने दिनों बाद आपसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है। ‘सौरभ के पापा का तबादला दूसरे शहर में हो गया था, इसलिए वे लोग वहाँ चले गए थे। 

राजीव जी ने कहा ‘एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में आए थे। आप सबकी याद आ रही थी सोचा आप सबसे मिल ले।’ 

‘बहुत अच्छा किया भाई साहब, ये बाजार गए हैं, मैं उन्हें फोन कर देती हूँ वे और बिट्टो भी आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे।’ तरूणा चाय नाश्ता लेकर आई, दोनों को प्रणाम किया। दोनों ने आशीर्वाद दिया। 

सरिता जी बोली ‘भाभीजी अब तो सौरभ की भी शादी हो गई होगी, क्या कर रहा है वह? बहू कैसी है?’  ‘अरे भाई, एक साथ इतने प्रश्न पूछ रही हो उन्हें आराम से बैठने तो दो’ कहते हुए रजनीश जी अन्दर आए। नलिनी जी बोली ‘सौरभ बैंक में नौकरी कर रहा है, उसकी शादी नहीं हुई है, कहीं पत्रिका नहीं मिलती, तो कहीं लड़की पसंद नहीं आती।

खैर, बिट्टो कहाँ है? क्या वह ससुराल चली गई।’ ‘नहीं यहाँ भी यही हाल है, आप तो जानती है बिट्टो कितनी भोलीभाली है, उसके लायक कोई रिश्ता ही नहीं मिल रहा। दो दिन बाद उसे देखने के लिए मेहमान आने वाले है, मगर लड़का विदेश में है, बिट्टो को तो अभी बताया भी नहीं है। मेरा दिल बैठा जा रहा है, इतनी दूर अपनी बेटी को कैसे भेजू। ‘

सरिता जी कहते हुए रूॅंआसी हो गई। रजनीश जी बोले ‘सरिता मन को कड़ा करना पड़ेगा लड़की को घर तो नहीं बिठा सकते।’

‘तो क्या इतनी दूर भेज दे? भाई साहब, भाभीजी क्या आप मेरी बिट्टो को नहीं अपना सकते, सौरभ और बिट्टो एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं।’बात अनायास भावावेश में निकली मगर सभी के चेहरे खिल गए थे। नलिनी जी ने कहा -‘ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं, मगर आपने बहुत अच्छी बात कही। मुझे तो बिट्टो  बहुत प्यारी लगती है।’ राजीव जी और रजनीश जी ने भी अपनी सहमति दी। बिट्टो स्कूल से आई तो दोनों से मिलकर बहुत खुश हुई। रिश्ते की बात आगे बढ़ी सौरभ और बिट्टो को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं थी, दोनों बहुत खुश थे। बिट्टो की गुड़िया जिस घर में दुल्हन बन कर जाती और वापस आ जाती थी। वह घर अब बिट्टो का ससुराल बनने जा रहा था। बिदाई के समय बिट्टो अपनी गुड़िया को भी साथ ले गई और उसे सौरभ के गुड्डे के साथ सजाकर रख दिया हमेशा के लिए।वैसे ही जैसे वो और सौरभ एक हो गए थे हमेशा के लिए।और इस तरह प्यारी बिट्टो भी खुशी-खुशी अपने ससुराल चली गई। 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

1 thought on “बिट्टो की ससुराल – पुष्पा जोशी  : Moral stories in hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!