Moral stories in hindi : ” क्या..दीपक का एक्सीडेंट! मैं अभी आती हूँ।” कहकर आरती ने अपना फ़ोन बैग में रखा और हाॅस्पीटल के लिए निकल गई।पीछे से घरवालों ने उसे बहुत आवाज़ें दी लेकिन उसे कुछ होश नहीं था।वह तो जल्द से जल्द अपने दीपक के पास पहुँचना चाहती थी।
हाॅस्पीटल के स्टाफ़ उसे देखकर दंग थें कि पीले कपड़ों में मेंहदी लगे हाथों वाली यह लड़की कौन है।ऑपरेशन थियेटर के बाहर दीपक की मम्मी को देखकर वह अपनी रुलाई नहीं रोक पाई।उनसे लिपटकर वह फूट-फूटकर रोने लगी।कुदरत के खेल भी अजीब होते हैं।दो दिन बाद दीपक और आरती की शादी होने वाली थी और आज ये हादसा..।दोनों एक-दूसरे को ‘सब ठीक होगा ‘ कहकर दिलासा दे रहें थें।नर्स बाहर-भीतर कर रही थी लेकिन पूछने पर स्पष्ट कुछ नहीं बता रही थी।
करीब आधे घंटे बाद ऑपरेशन थियेटर से डाॅक्टर साहब बाहर निकले। उन्होंने दीपक के पिता को एक तरफ़ ले जाकर धीरे-से कुछ कहा और उनके कंधे पर सांत्वना का हाथ रखकर दूसरे मरीज़ को देखने चले गये।दीपक के पिता का उतरा चेहरा देखकर आरती घबरा गई, पूछने लगी, ” अंकल ,क्या बात है? डाॅक्टर ने आपको क्या कहा है? ” दीपक के पिता चुप थें।वे आरती का चेहरा देखने लगे।आरती से उनकी चुप्पी बर्दाश्त नहीं हुई, चीखते हुए बोली, ” आप कुछ बोलते क्यों नहीं।”
” क्या बताऊँ बेटी, हादसे में दीपक का दाहिना पैर इतनी बुरी तरह ज़ख्मी हो गया था कि डाॅक्टर को उसका दाहिना पैर काट..।आगे वे कह नहीं पाये और फूट-फूटकर रोने लगे।दीपक की माँ पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा हो।तभी आरती के माता-पिता,भईया-भाभी भी आ गये,सभी रो रहें थें।थोड़ी देर बाद पहले जिस परिवार में शादी का उत्साह था, अभी मातम पसर गया था।
आरती एक कोने में बैठकर अपने हाथों की मेंहदी देखकर सोचने लगी, कल तो इस समय उसके हाथों में मेंहदी लगाई जा रही थी।सबकुछ उसे एक सपना-सा लग रहा था।हाँ,सपना ही तो था जब दीपक से उसकी पहली मुलाकात हुई थी।भईया की बारात में वह ही तो एकमात्र लड़की थी।शादी की भीड़-भाड़ में भाभी का चचेरा भाई दीपक उसे एकदम अलग दिखा था।
उसी की उम्र का,चेहरे पर आई नई-नई मूँछें और उसके शांत स्वभाव ने बरबस ही उसे अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था।भाभी का अपना तो कोई भाई था नहीं, वो दीपक को बहुत मानती थी।एक ही शहर में रहने के कारण वह उसके घर आता-जाता ही रहता था और यहीं से दोनों के बीच किशोर उम्र के प्रेम-अंकुर फूटने लगे थें।फ़ोन पर बातों का अनवरत सिलसिला चलने लगा।दसवीं पास करते ही दोनों ने इंटर में कॉमर्स विषय लिया और बीकॉम की डिग्री हाथ में आते ही दोनों जॉब की तलाश में निकल पड़े।
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कहते हैं ना,इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते,तो फिर इनके प्यार की खुशबू भला कैसे नहीं फैलती।क्योंकि इन दोनों के प्यार में सिनेमाई फूहड़ता ज़रा भी न थी,एक शालीनता थी,इसीलिए आरती के घरवाले और उसकी भाभी के मायके वाले इनके प्यार का मूक गवाह बने हुए थें।
आरती ग्रामीण बैंक की एक शाखा में काम करने लगी और दीपक को प्राइवेट बैंक में जाॅब मिल गया है।छह माह के बाद जब दोनों ने अपने-अपने घरवालों को हिचकते हुए बताया कि वे दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं तो घरवालों ने अनुमति देने में ज़रा भी देरी नहीं की।शादी की तिथि तय हो गई और ज़ोर-शोर से तैयारियाँ भी होने लगी।
अब दोनों का मिलना बंद हो गया था तो फ़ोन से ही बात करके, मैसेज और फ़ोटो भेजकर अपनी-अपनी तैयारियाँ शेयर कर लेते थें।दुर्घटना वाले दिन भी दीपक अपनी शेरवानी का रंग पसंद करने जा रहा था,उसने आरती को मैसेज किया था कि आधे घंटे बाद कॉल करता हूँ और फिर ये हादसा..।
” पेशेंट को होश आ गया है।” नर्स ने कहा तो आरती की तंद्रा टूटी।वह दीपक से तुरन्त मिलना चाहती थी लेकिन उसके पिता ने कहा, ” पहले दीपक की माँ को मिल लेने दो, फिर तुम जाना।” आरती को तो एक-एक मिनट पहाड़ के समान लग रहा था लेकिन जब वह दीपक के पास गई तो उसने मुँह फेर लिया।वह समझ नहीं पाई,सोचा, शायद बेहोशी है,नर्स ने भी उसे चले जाने को कहा।
घर आने पर आरती की माँ ने उसे बताया कि दीपक के यहाँ से शगुन वापस आ गया है और अब तू भी उसे भूल जा, यही अच्छा रहेगा।आरती ने कब किसी की सुनी थी,जो आज सुनती।अपने घरवालों को उसने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया कि वह शादी करेगी तो दीपक से वरना उम्र भर कुँवारी रहेगी और यहीं से उसके प्रेम का इम्तिहान शुरु होता है।
बैंक से फ़्री होकर वह सीधे हाॅस्पीटल जाती,दीपक कभी उस पर झल्लाता तो कभी उसकी इंसल्ट करता,फिर भी वह उसके हाथों को सहलाकर उसे अपने प्यार का एहसास कराती।वह जानती थी कि इस दुर्घटना ने दीपक को मानसिक रूप से भी कमज़ोर बना दिया है।इसीलिए वह उसमें जीने की इच्छा फिर से जगाने की पूरी कोशिश करती थी।
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कुछ दिनों बाद दीपक हाॅस्पीटल से अपने घर आ गया।एक पैर न होने से उसे लगने लगा था कि वह सब पर बोझ है और आरती उसपर दया दिखाती है।दीपक की माँ भी आरती को न आने के लिए कहती लेकिन आरती ने किसी की भी परवाह नहीं और एक दिन दीपक के दिल में फिर से अपने लिए प्यार जगाने में वह कामयाब हो गई।
हादसे की वजह से दीपक का जाॅब छूट चुका था,वह नई नौकरी तलाश करना चाहता था,तब बातों ही बातों में आरती ने दीपक से जयपुर फुट लगवाने की बात कही।पहले तो उसने आना-कानी किया,फिर मान गया।
जयपुर फुट लगवाना भी कोई आसान काम तो था नहीं।तकनीकी विकसित होने के बाद भी व्यक्ति को स्वयं भी काफ़ी धैर्य रखना और बार-बार प्रयास करते रहना पड़ता है।एक मित्र की मदद से दीपक को फिर से बैंक में नौकरी मिल गई थी।अपने काम के साथ-साथ जयपुर फुट लगाकर चलने का अभ्यास करना,उसके लिए आसान न था लेकिन आरती के सहयोग से वह हर पड़ाव पार करता चला गया।
आखिरकार आरती की मेहनत रंग लाई और उसका प्रेम सफ़ल हो गया।तीन वर्ष के लम्बे संघर्ष और अथक प्रयास से दीपक अब नकली पैर लगाकर दोनों पैरों से चलने में कामयाब हो गया।आरती ने साबित कर दिया कि उसका प्यार महज़ शारीरिक आकर्षण नहीं बल्कि आत्मिक था।दीपक के बिना तो वह अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।जिसने भी सुना,उसने आरती के निश्चल प्रेम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।दोनों का प्यार हर कसौटी पर खरा उतरा और अंततः सच्चे प्रेम की विजय हुई।
अब तो दोनों के घर वाले भी ज़ल्द से ज़ल्द इनका विवाह कर देना चाहते थें।एक दिन फिर से दीपक के पिता अपने बेटे के लिए आरती का हाथ माँगने उसके घर पहुँचे।सादे तरीके से दोनों का विवाह हुआ और आरती दीपक की जीवन-संगिनी बन गई।
— विभा गुप्ता
# प्रेम
जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आ जाए,सच्चा प्यार कभी हार नहीं मानता और ना ही पीठ दिखाता है बल्कि आरती और दीपक की तरह डटकर सामना करते हैं।