बिटिया, शर्म या गर्व – नीलिमा सिंघल 

अंकिता का आज सुबह से फिर चीखना चिल्लाना शुरू हो गया था ,,रोज रोज के नाटक से नंदा परेशान रहने लगी थी बचपन से देखती आ रही थी, आज उसने ठान लिया था कि बात करके रहेगी,,घर काटने को दौड़ता था सब के मुहँ फूले रहते कोई किसी से ढंग से बात नहीं करता था,,

उसकी पड़ोस वाली महिला से बहुत प्यार मिलता था इसीलिए नन्दा उसको चाची कहती थी,,

आज नन्दा सुशीला के घर पहुंची जिनको वो चाची बोलती थी,,

घर के बाहर खड़ी नन्दा अपनी सांसो को व्यवस्थित कर रही थी तभी बाहर मनुज निकला उसको खड़े देखकर उसके सिर पर चपत लगाते हुए बोला “और सुना मेलोंड्रामा आज कैसे,,बहुत दिनों बाद नजर आयी,,

मनुज सुशीला चाची का बेटा था जो कदम कदम पर एक बड़े भाई की तरह उसके साथ रहता,,

“चाची से मिलना है “अपनी आँखों की नमी छुपाते हुए नन्दा बोली ।

लेकिन मनुज समझ गया और अंदर की तरफ इशारा करते हुए बाहर चला गया क्यूंकि उसको पता था कि उसके होते नन्दा खुलकर बात नहीं कर पाएगी और उसकी नम आँखों ने उसको विचलित कर दिया था, 

नन्दा अंदर आयी और सीधे सुशीला चाची के कमरे मे पहुंच गयी ,,नन्दा को देखकर सुशीला चाची उठ गयी और अपने बेड पर बिठाते हुए बोली “लाडो बहुत दिनों बाद आयी सब सही चल रहा है ना “

“चाची आप तो बहुत समय से आई बाबा को जानती हो,,आई हमेशा चिड़ चिड़ क्यूँ करती है,,बाबा कुछ कहते नहीं दादी बड़बड़ाती  रहती है “व्याकुल होते हुए नन्दा ने पूछा 

नन्दा को बचपन से खिलाती देखती आ रही सुशीला उसके प्रश्न पर कसमसाकर रह गयी वो सब जानती थी ,,अंकिता और महेश का बेमेल रिश्ता कौशल्या का दखलंदाजी करना सब तो सारे पड़ोस को मालूम था पर कोई कुछ नहीं कहता था,,सुशीला भी कहां कुछ कह पाती थी पर 3 साल की नन्दा को भरी दुपहरी में घर से बाहर देखा तो ह्रदय चीर सा गया था

उसको उठा कर घर ले आयी थी बर्फ लगाकर दूध पिलाया तो सो गयी थी,,,रात के 8 बज गए थे पर किसी को कोई फिक्र ही नहीं थी नन्ही जान की,,,,,सुशीला  नन्दा के रोने पर उसके घर छोड़ आयी तो देखा सब आराम से खा रहे हैं नन्दा को देखकर किसी के भी चेहरे पर कैसे भी भाव नहीं थे,,जैसे कि अगर वो घर नहीं आती तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता,,

सुशीला ने अपने मन के भावों को शांत करते हुए पूछा “नन्दा सब कैसा चल रहा है,,रिजल्ट आ गया क्या,,और सर्विस काक्यारहा………..”


“रिजल्ट भी और मेरी पहली सर्विस भी कल ही लग गयी थी चाची ,पर कल रात सब सो गए थे मैंने बताने की कोशिश की पर हमेशा कुछ तरह कुछ बोलने ही नहीं दिया,,आज सुबह से आई चिल्लाए जा रही हैं तो कुछ बताने का मन नहीं किया,,चाची कैसे है मेरे घर के लोग , बताएँ ना चाची अगर आज भी आपने नही बताया तो मैं यहां आना भी बंद कर दूंगी “

सुशीला ये सुनते ही सहम गयी और सिसक उठी 

मनुज बाहर से जल्दी आ रहा क्यूंकि उसको जानना था चुप रहने वाली उसकी बहन आज नम आंखे लिए क्यूँ आयी है दरवाजे के बाहर ही नन्दा की दादी को देखकर चौंक गया क्यूंकि अपनी याद में ऐसा कभी होते हुए नहीं देखा था मनुज ने पहले

दादी ने उसको आवाज लगाई ” ओ छोरे सुन,,

,छोरी आई है क्या,,”

“जी दादी, ” हकलाते हुए मनुज बोला 

दोनों अंदर आए और कमरे में आते हुए नन्दा की बात सुनकर दादी बोली ” रे छोरी,,,क्या जानना चाहती है पराये लोगों से घरवालों के बारे मे “

दादी की आवाज़ सुनते ही नन्दा और सुशीला दोनों स्तब्ध रह गयी क्यूंकि दादी पड़ोस मे किसी के घर नहीं जाती थी, 

दादी ने आगे कहा ” चल सुन मैं बताती हूं पर पहले घर चल “

“घर कैसा घर दादी किसका घर,,,,मेरा तो कभी नहीं था,,भूल गयी कितनी ही बार तो आपने बोला है मुझसे ” रोती हुई नन्दा बोली। 

“हाँ हाँ ठीक है ,वो पहले की बात थी ना,,सरकारी जीप लेकर कोई ड्राइवर आया है और तेरे बारे मे पूछ रहा है ” तू काहे की मैडम बन गयी नन्दा” दादी आंखे मिचमिचाते बोली। 


“ओहो दादी तो सरकारी जीप खिंच के लायी है आपको यहां,” नन्दा चिढ़ते हुए बोली। 

सुशीला और मनुज को कुछ समझ नहीं आ रहा था दोनों खामोश खड़े नन्दा को देख रहे थे। 

नन्दा ने सुशीला से कहा “चाची,,बताओगी या मैं जाऊँ यहां से भी “

सुशीला ने नन्दा को हाथ पकड़कर बिस्तर पर बैठाया और कहा “नन्दा जब तू पैदा हुई तब तेरे साथ तेरा एक जुड़वां भाई भी पैदा हुआ था पर बच्च सिर्फ एक बच सकता था,,तब सभी घरवालों ने यहां तक कि अंकिता ने भी कहा कि बेटे को बचाए आप,,,, डॉक्टर ने बहुत मेहनत की यहां तक कि ऑपरेशन तक किया पे वो सिर्फ तुझे बचा पाए,,और ऑपरेशन की वज़ह से कुछ ऐसा हुआ कि अंकिता फिर कभी माँ नहीं बन सकती थी,,बस बेटा तू पैदा हुई और भाई को मारने का इल्ज़ाम सबने तेरे सिर पर डाल दिया बस तभी सच्ची सभी की झल्लाहट चिड़चिड़ाहट तुझ पर निकलने लगी,

दुबारा माँ ना बन पाने की कसक के साथ तुझे प्यार से पालें मैं जब भी घर जाती तो समझाती थी,,पर मुझे उनका दर्द समझ नहीं आएगा क्यूंकि मैं बेटे की माँ हूं ये कहकर चुप करा देती थी,,धीरे-धीरे मेरा आना तुझे गोद में लेकर लाड़ करना सब चुभने लगा तो मेरे लिए तेरी दादी ने अपने घर के दरवाजे बंद कर दिए,,,पर जब भी तुझे भरी दुपहरी में या रात के अंधेरे मे बाहर देखती तो मेरा कलेजा मुहँ को आ जाता और ममता के वशीभूत होकर तुझे ले आती,,मनुज को एक छोटी बहन मिल जाती और तुझे ममता की छाया “

दंग सी बैठी नन्दा बीच मे बोल उठी “और बाबा,,,बेटियों पर तो बाबा को बहुत प्यार आता है मेरे बाबा ने कभी मुझे,,,,,,क्यूँ चाची?”

सुशीला के लिए अपने आंसू रोकना भारी पड़ रहा था “तेरे बाबा ने तुझे,,,,,, “

तभी दादी बीच मे चिल्लाई “चुप हो जा सुशीला ,,अब आगे एक शब्द नहीं वर्ना,,,,  “

“क्या वर्ना दादी,,,मैं इतनी भारी थी इतना बोझ थी आप सभी के उपर,,,,,,मुझे सच जानना है “

दादी ने मिश्री घोलते हुए कहा “नन्दा मेरी गुड़िया पराये लोग तेरे मन मे जहर भर रहे हैं और तू खामोश है,,बेटा,,,,,,,”

“दादी अब एक भी शब्द नहीं ” नन्दा प्रतिकार कर उठी, “चाची प्लीज ” इस बार नन्दा की आवाज मे मनुहार थी। 

सुशीला ने कहा “जब तू पैदा हुई और तेरा भाई मर गया तब महेश भाई का ध्यान अपने कारोबार से हट गया था दिन रात नशे मे रहते तो नौकरों ने सारा कारोबार समेट कर बेच दिया व्यापार के नुकसान का इल्ज़ाम भी तेरे सिर पर डाल दिया,,, तू 4 बरस की रही होगी जब मैं मन्दिर से लौट रही थी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,”कहकर लंबी खामोशी छा गयी,,दादी कराह उठी “बस कर सुशीला अब और कुछ नहीं “

सुशीला ने नन्दा को देखा जो प्रश्नवाचक नजरों से उसको देख रही थी तभी उसकी निगाहें सामने की ओर जाकर ठहर गयीं जहाँ अंकिता और महेश बाबु खड़े थे,,,,सुशीला की आँखों का पीछा करते हुए नन्दा ने मुड़कर देखा तो आई बाबा खड़े थे,,अनजान नजरों से उन्हें देखकर नन्दा न सुशीला का हाथ हिलाया। 


“जब आप मन्दिर से वापस आ रही थी तब,,,तब क्या चाची “

सुशीला ने कहा “महेश भाई,,,टोकरी मे तुम्हें रख रहे थे,,,मैं कुछ पूछती इससे पहले ही तुम्हें,,,,इससे पहले ही,,तुम्हें,,,,पोखर मे फेंक दिया “

नन्दा ये सुनते ही भरभराकर गिर गयी पर जमीन छुने से पहले मनुज ने उसको थाम लिया “नहीं नन्दू ,,संभालो खुद को,,,,,,,”

नन्दा के बाबा ने आकर मनुज का काॅलर पकड़ा और थप्पड़ लगाने को हुए तो नन्दा ने उन्हें रोक लिया। 

आंसू पूछती हुई सुशीला के सामने आ खड़ी हुई और बोली ” आपने मुझे पोखर से बाहर निकाला ” 

“नहीं मनुज ने,,,, उस समय 12 साल का था तुम्हें देखकर रस्सी लेकर खुद पोखर मे कूद गया और फिर मुझे रस्सी खिंचने को बोला और तुम दोनों बच गए “बात काटते हुए सुशीला बोली। ।

अब सुशीला नन्दा के घरवालों के सामने खड़ी होकर बोली ” बेटियां शर्म नहीं गर्व करने लायक होती हैं,,,हर क्लास मे 1st आती थी नन्दा,,,खेलकूद मे हिस्सा लेती थी नन्दा,,मनुज ने इसकी काबलियत देखकर Ips का फार्म भरा और अपनी रोज की पढ़ाई के साथ-साथ नन्दा ने IPS की तैयारी भी अच्छे से की,,,इसकी किसी काबलियत से कभी तुम सबको कुछ भी लेना-देना नहीं रहा,,,इसका रिजल्ट आ गया और आज ये हमारे ही शहर की DM बनकर आयी है,,,,बहुत गर्व की बात है कि नन्दा के सपने पूरे हुए “

सुशीला की बात सुनते हुए ही अंकिता ने अपनी बाहें फैलाई पर नन्दा भागकर सुशीला के गले लगीं,,,,,

नन्दा ने कहा “आज से मैं तुम्हें चाची नहीं माँ कह सकती हूं क्या और मुझे अब यहीं अपने असली घर रहनाहै। ” सुशीला ने विस्फारित आँखों से नन्दा को देखते हुए अपनी बाहें फैला दी। 

आज अंकिता और महेश के साथ-साथ दादी को भी अपनी नफरत का सिला मिल गया। ।

बेटियां शर्म नहीं गर्व होती हैं,,,,,,ये तमाचा खाकर तीनों चलेगा गए वंहा से। ।

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