“ हैलो, क्या कर रही है मेरी लाडो”, संध्या ने बेटी मीतू का फोन मिलाकर बड़े प्यार से पूछा।
“ मोम, सुबह सुबह किचन में हज़ारो काम होते हैं, दोनों बच्चों के, सुधांशु का टिफन पैक करना और साथ में पिताजी को दुकान पर भेजना, देवर को कालिज जाना होता है, और कल से तो ननद नीलू भी आई हुई है”।
“ और मां, मैनें पहले भी आपसे कहा है कि जब तक जरूरी काम न हो प्लीज मुझे सुबह सुबह फोन न किया करो” यह कह कर मीतू ने फोन रखा और फटाफट गैस बंद की, नहीं तो दूध उफन जाता।
“ और लगाओ फोन बेटी को, सुबह सुबह “, सिन्हा जी ने पत्नी को डांटते हुए कहा।
“ अरे तो क्या हो गया, दो मिंट बेटी से बात भी नहीं कर सकती । शादी करके बेटी इतनी भी परायी नहीं हो जाती कि कुछ देर मां से बात न कर सके”।
“ और जब देखो काम लगी रहती है, सारे घर की जिम्मेवारी सर पर ओढ़ कर बैठी है”।सास तो कुछ करती नहीं।
“ तुम्हें पता तो है, मीतू की सास का घुटनों का आप्रेशन हुआ है, वैसे भी उसे शूगर है। “ सिन्हा जी ने अखबार से नजरे हटाते हुए कहा।
“ मेरी बेटी ने क्या ठेका ले रखा है” सध्यां अब भी भुनभुना रही थी।
दिन में मीतू का फोन आया तो संध्या खिल उठी।” मिल गई फुर्सत महारानी को बात करने की”, जब देखो काम लगी रहती है, मायके में तो एक कप चाय भी नहीं बनाती थी, वहां भी थोड़ा आराम कर लिया कर । कुछ दिनों के लिए यहां आ जा।
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मां की रोज रोज की ऐसी शिक्षाओं से तंग आ चुकी थी मीतू। उसे कई बार तो हैरानी होती मां की बातों से। बेटी का बसा बसाया घर उजाड़ने पर तुली है, वो तो मीतू समझदार निकली कि अपने ससुराल में रच बस गई। और अपने घर का काम करने में क्या बुराई है। और फिर सब घर में कितना प्यार करते है, किसी चीज की कोई कमी नहीं। शादी से पहले की बात और थी, नौकरी भी करती थी।
शादी के बाद उसने अपनी मर्जी से इस्तीफा दे दिया।वो कैसे भूल सकती है जब उसके टवीन्स हुए तो सास ननद ने कैसे उसे सम्हाला। ससुर बेटी नीलू से कम प्यार नहीं करता और देवर भी उसकी कितनी इज्जत करता है। मां को पता नहीं क्यूं ऐसा लगता है कि मैं नौकरानी की तरह काम करती हूं। घर में हैल्पर है, सब खुशहाली है और सुधाशुं भी उसकी हर इच्छा बिना कहे पूरी करते है।
दो तीन दिन के बाद जब सध्यां का फोन आया तो आदत के अनुसार फिर वो उसे एक तरह से ताने से मारने लगी। दरअसल वो चाहती थी कि मीतू अपने पति बच्चों के साथ अलग घर बसा ले।मीतू ने न चाहते हुए भी मां से सिरफ इतना ही कहा कि सुधाशुं तो अलग होने के लिए मानेगें नहीं, अगर तुम कहो तो मैं दोनों बच्चों को लेकर तुम्हारे पास आ जाती हूं, फिर सारा खर्च और काम तुम ही करना । “ अरे नहीं नहीं, मेरा ये मतलब नहीं, मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूं” अच्छा, मुझे कहीं जाना है, फिर बात करते है। मिस्टर सिन्हा पास बैठे सुन रहे थे, उन्से भी रहा नहीं गया, मुस्कराते हुए बोले” और पढ़ाओ पट्टी, तुम पर ही उल्टी पड़ जाती।” अरी भागवान , बिटिया का घर बसने दो, तुम अपना घर संभालों, जल्दी ही तुम्हारी बहू भी आने वाली है।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
#पट्टी पढ़ाना