बिन फेरे हम तेरे – प्रेम बजाज

दोस्तों ज़रूरी नहीं कि हर प्यार करने वाला शादी ही करें।

ये भी ज़रूरी नहीं कि जिन दो लोगों ने शादी की है उनमें प्यार हो,  और बस वो ही हमसफ़र हों।‌ 

हमसफ़र अर्थात सुख-दुख में साथ रहे, दिल के पास रहे।

हमसफ़र कोई भी हो सकता है…. पति-पत्नी,  दोस्त, या कोई रिश्तेदार, कोई भी।

तो लिए कहानी सुने एक अलग हमसफ़र की।

यह कहानी पूर्णतया एक सत्य घटना पर आधारित है, 

 नीतू  और सोहन पूरी ईमानदारी से इस रिश्ते को निभा रहे हैं।

तो पढ़िए उनकी कहानी 

कहने में और सुनने में कुछ अजीब लगता है, लेकिन ये भी एक सच्चा रिश्ता है, दिल का रिश्ता है।

 जब दिल से दिल जुड़ जाता है ,तो चाहे हम साथ -साथ ना रहे ,लेकिन हमें एक दूसरे की फिक्र होती है, एक दूसरे के प्रति लगाव होता है, इसी को प्यार कहा जाता है । 

नीतू और सोहन का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है, उन्होंने शादी नहीं की, और ना ही साथ-साथ रहते हैं, लेकिन एक दूसरे की फिक्र रहती है उन्हें, एक दूसरे का ख़्याल रखते हैं। 

नीतू और सोहन को आज  20 साल हो गये है इस रिश्ते को निभाते हुए , कभी उन्होने मर्यादा का उलंघन नहीं किया। दुःख-सुख में हमेशा एक दूसरे के साथ रहे। आज समाज भी उनको इज़्ज़त की नज़र से देखता है , क्योंकि सब आज जान गये है कि इनका रिश्ता तन का नहीं मन का है, इनका रिश्ता दिखावा नहीं ,सच्चा है। 

नीतू एक साधारण परिवार से थी ,ज्यादा पढी़ -लिखी भी नहीं थी , बडी़ दो बहनों की शादी हो गई , एक भाई था।

 भाई चाहता था कि पहले नीतू की शादी हो जाए तब वो शादी करेगा, हालाँकि वो नीतू से बडा़ था । अच्छा घर-बार देखकर नीतू की शादी कर दी गई । 

नीतू के भाई सूरज का एक बचपन का दोस्त था सोहन। सूरज के घर अक्सर उसका आना-जाना होता था।



 वो नीतू को पसन्द करता था, और नीतू भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी।

  लेकिन किसी में कहने की हिम्मत नहीं की,  क्योंकि सोहन उनकी जातबिरादरी का नहीं था, और वो जानते थे कि उनकी शादी नहीं हो सकती, इस बात को ना ही घर वाले और ना ही गाँव वाले स्वीकार करेंगे।

 

नीतू की शादी के बाद  उन्हें नीतू के ससुराल वालों का असली चेहरा  तब नज़र आया, जब नीतू शादी के बाद पग फेरे के लिए नहीं आ पाई।

 लेकिन जब वो कुछ दिनों के बाद आई तो उसके चेहरे पर चोटों के  निशान देख कर उसके परिवार वाले दँग रह गये, और नीतू ने बताया कि उसके ससुराल वालों ने पैसों की माँग की है।  

इस तरह अक्सर 10-15 दिनों के अन्तराल में नीतू मार खाकर आती और पैसे ले जाती।   सोहन का अक्सर नीतू के गाँव किसी ना किसी काम से चक्कर लग जाता था । 

सोहन को सूरज से नीतू की मार और पैसों के बारे में भी सब पता लग गया था।

उसने सूरज से बहुत बार कहा,” सूरज नीतू को घर वापिस ले आ, वो लोग किसी दिन नीतू को मार डालेंगे, ऐसे लालची लोगो से क्या रिश्ता रखना”

 लेकिन सूरज और उसका परिवार नहीं मानते थे, कहते, “गाँव वाले क्या कहेंगे, कि शादीशुदा लड़की को घर में बैठा लिया , तुम्हें तो पता है यहाँ गावँ में ऐसा थोडे़ ही होता है”

  एक दिन सोहन जब नीतू के गाँव किसी काम से गया तो ना जाने उसके मन में क्यों बेचैनी हो रही थी।  वो नीतू के घर चला गया , पहले भी वो सूरज के साथ कभी-कभी चला जाता था नीतू के घर। जब वो वहाँ पहुँचा तो वहाँ का मँजर देख कर उसके पैरों तले से ज़मीन निकल गई।

 नीतू के तन के कपडे़ चीथड़े बन चुके थे,और उसके माथे से खून बह रहा था चोट लगने की वजह से। लेकिन अभी भी उसे मारा जा रहा था, और वो गिड़गिडा़ कर बार-बार एक बात कह रही थी , “मेरा भाई इतने पैसे कहाँ से लाएगा”

 “हमें नही पता जहाँ से मर्ज़ी लाओ हमें तो पैसे चाहिए, वरना अपने घर वापिस चली जाओ, हमने कोई धर्मशाला नहीं खोली जो तुम्हें खिलाते रहे” नीतु की सास उसे मारते हुए बोल रही थी।

सोहन देख कर बौखला गया, ” नीतू ये सब क्या है, चल तू अपने घर, नहीं रहना ऐसे नर्क में “



और सोहन नीतू को साथ लिवा लाया, जब नीतू घर पहुँची और सोहन ने सारा किस्सा सूरज को बताया।

 सूरज फिर से वही बात दोहराने लगा कि हम नीतू को घर नहीं रख सकते , इस की अब शादी हो गई है। इसका जीना-मरना अब वहीं पर है, वहीं अब इसका नसीब है, जैसे लाए हो वैसे ही उसे वापिस छोड़ आओ” और ऐसा कह कर सूरज ने घर का दरवाज़ा बंद कर दिया।

सोहन नहीं माना ,और नीतू भी वापिस उस नरक मे नहीं जाना चाहती थी।  

सोहन ने कहा, ” मेरी अब शादी हो गई है , इसलिए अब हम शादी तो नही कर सकते ,लेकिन मैं तुम्हें उस नरक मे भी वापिस नहीं जाने दूँगा। 

 शहर में मेरा एक दोस्त है,  मैं तुम्हें उसके घर कुछ समय के लिए छोड़ दूँगा और पुलिस स्टेशन जा कर हम तेरे ससुराल वालों के खिलाफ केस भी करेंगे। 

 तुझे उससे तलाक दिलवा कर तेरी शादी करवा दूँगा”

 लेकिन नीतू अब दूबारा शादी नहीं करना चाहती थी । उसके मन तो अभी भी सोहन बसा हुआ था, वो उसी की यादों के सहारे जीवन बिताना चाहती थी ।

 

 सोहन नीतू को शहर ले आया ,अपने दोस्त के घर ठहरा दिया। सोहन का दोस्त सब इँसपेक्टर था थाने में ,उसके परिवार ने नीतू का बहुत ख्याल रखा और उसकी हर सँभव मदद भी की । 

 

नीतू को तलाक दिलवाया और उसे सिलाई का कोर्स भी करवाया , सोहन ने उसे सिलाई मशीन ले दी ताकि वह अपना खर्चा खुद उठा सके , और किसी पर बोझ ना बने।

 समय -समय पर सोहन शहर आता रहता है नीतू की खै़रियत जानने के लिए, दुःख-सुख में भी हमेशा उसकी मदद करता है । 

नीतू अपने इस बेनाम रिश्ते से बँधी , बिन फेरों की बिन ब्याही दूल्हन की तरह अपनी ज़िन्दगी काट रही है। 

लेकिन वो खुश है अपने इस रिश्ते से, उनका रिश्ता पावन-पवित्र रिश्ता है, जिसमें कोई कसमें नहीं ,कोई वादे नहीं, फिर भी वो इक- दूजे के हैं।

इसे कहते हैं बिन फेरे हम तेरे। 

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर )

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