भेदभाव : निशा जैन : Moral Stories in Hindi

आज जब सफाई करते हुए सुमन को अपनी डॉक्यूमेंट फाइल हाथ लग गई तो उसे खोले बिना वो रह न सकी क्योंकि उसमें उसके सारे पुरस्कार, प्रमाण पत्र और अंकतालिका जो रखी हुई थी।

अपनी दसवीं की अंकतालिका जैसे ही उसने देखी यकायक पच्चीस साल पीछे अपने बचपन के दौर में पहुंच गई क्योंकि उसके साथ उसकी बहुत सारी खट्टी मीठी यादें जो जुड़ी हुई थी।

आज सुमन सुबह से ही उत्साहित और कुछ डरी हुई थी क्योंकि उसका दसवीं का परिणाम जो आने वाला था। उसे खुद पर पूरा विश्वास था कि वो अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होगी और साथ में उसे उपहार में कलाई घड़ी भी मिलेगी जिसके लिए उसने अपने दोस्तों से शर्त भी लगा रखी थी कि उसके नानाजी उसे जरूर उपहार में कलाई घड़ी दिलाएंगे क्योंकि पिछले साल जब उसके मामा की बेटी के 72 प्रतिशत अंक आए थे तो नानाजी ने उसे घड़ी उपहार में दी थी।

सुमन का ननिहाल उसी के शहर में था और उसके मामा की बेटी और वो एक ही स्कूल में पढ़ते थे और अच्छे दोस्त भी थे वो बात अलग थी कि दोनों की उम्र में एक साल का अंतर था 

शाम के चार बजे सुमन का इंतजार खत्म हुआ और उसका परीक्षा परिणाम उसके हाथ में था। अखबार में उसका नंबर प्रथम श्रेणी में आया था और जब उसके चाचा ने नेट से उसके अंक प्रतिशत निकलवाए तो उसके खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि उसके पूरे 77 प्रतिशत अंक आए थे और उसका नाम गार्गी पुरस्कार के लिए भी चयनित हुआ था। जिसके अंतर्गत उसको 2000 रुपए नकद मिलने वाले थे।

पूरे परिवार में वो पहली लड़की थी जिसके इतने अच्छे अंक आए थे। उस जमाने में 70 प्रतिशत से ऊपर आने वाला ब्रिलिएंट बच्चा होता था (और आजकल तो 90 प्रतिशत भी आएं तो मतलब सामान्य सी बात है)

अब तो सुमन को पक्का यकीन था कि नानाजी उसे भी घड़ी उपहार में देंगे जिसको वो कितने दिनों से खरीदना चाहती थी।

अगले दिन जब वो अपने ननिहाल गई नानाजी को खुश खबरी देने और मिठाई खिलाने तो नानाजी भी बहुत खुश हुए और उसे 100 रुपए इनाम में दिए ।

सुमन बोली “आपने सीमा को तो कलाई घड़ी दिलवाई थी और मुझे बस 100 रुपए दिए तभी पास खड़ी हुई सीमा की मां बोली “अरे तो सीमा तो उनकी अपनी पोती है , उसके दादाजी ने उसे वादा किया था । तुम अपने दादाजी से जाकर मांगो।

वैसे भी बेटे के बच्चे और बेटी के बच्चों में फ़र्क होता है सुमन ।

तुम अभी छोटी हो , बड़ी हो जाओगी तो समझ जाओगी “

मामी के ऐसे बोलते ही सुमन की आंखों से आंसू गिरने लगे

क्योंकि उसकी मां तो कभी उसके बुआ के बच्चों और उसमें फर्क नहीं करती थी। उसकी दादा दादी के लिए तो पोते पोती हो या नवासा नवासी एक बराबर थे

उदास होकर वो अपने घर चली गई। नाना नानी पीछे से आवाज़ देते रह गए और अपनी बहु को समझाया कि बच्चों के सामने ऐसी बात नहीं करनी चाहिए ।

घर जाकर सुमन बहुत रोई और उसे लगा कि अब उसके दोस्त उसका मजाक बनाएंगे । उसने मम्मी से पूछा मम्मी शादी के बाद मैं आपकी बेटी नहीं रहूंगी क्या? आप भैया को ज्यादा प्यार करोगी?

 नहीं सुमन, किसने बोला?मां के लिए उसके सारे बच्चे बराबर होते हैं ।शादी होने के बाद भी तुम मेरी उतनी ही लाडली रहोगी और तुम्हारे बच्चे तो और भी ज्यादा प्यारे होंगे मुझे।

फिर मामी क्यों बोली कि बेटे और बेटी के बच्चों में फ़र्क होता है। 

और नानाजी ने मुझे घड़ी भी नहीं दिलाई 

कोई बात नहीं बेटा , उन्होंने मजाक में बोला होगा वैसे वो अपनी भाभी का स्वभाव अच्छे से जानती थी

अब तू हंस दे आज तेरा इतना अच्छा परिणाम आया है । शाम को मै तेरे लिए खीर पूरी बनाऊंगी।

सुमन मां के गले लग गई पर मन ननिहाल को लेकर उसके मन में एक गांठ बन गई थी और वो अब अपने ननिहाल कम ही जाती थी।

उसके पापा ने उसे उपहार में एक सुंदर सी कलाई घड़ी लाकर दी थी , सीमा की घड़ी से भी सुंदर ।

बात आई गई हो गई पर सुमन के मन की गांठ बढ़ती गई क्योंकि उसके साथ उसकी मामी बार बार अपने पराए की बातें करती थी और उसके प्रति मामी का व्यवहार भी अजीब था।

वो अपने बच्चों और अपनी ननद के बच्चों में भेद करती थी।खाने पीने की चीजों को लेकर पक्षपात करती थी।अपने बच्चों को भीगे हुए बादाम देती पर सुमन को नहीं और अपने बच्चों से भी ये बात छिपाने को बोलती थी।

गलती से सुमन कभी देख लेती तो बहाने बनाकर बात को बदल देती

पर सुमन धीरे धीरे बड़ी हो रही थी और समझदार भी। बच्चे प्यार के भूखे होते हैं ये बात शायद उसकी मामी को पता न थी।

सुमन अब अपने ननिहाल से कटने लगी थी । उसकी मां ने तो कभी उसमें और उसके बुआ के बच्चों में भेद नहीं किया बल्कि वो तो पहले बुआ के बच्चों को देती बाद में अपने बच्चों को और कहती ये तो मेहमान हैं इसलिए इनका ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है और बिल्कुल पक्षपात नहीं करती इसलिए सारे बच्चे दौड़े दौड़े हर छुट्टियों में ननिहाल चले आते थे। 

मामी…मामी पीछे से आती हुई आवाज से सुमन चौंक गई। उसकी भांजी (ननद की बेटी) जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी वो 6 महीनों के लिए अपने ननिहाल आई हुई थी क्योंकि उसका घर छोटे शहर में था और वहां कोचिंग की सुविधा नहीं थी। सबसे बड़ी बात सुमन पूरे मन से बच्चों का ख्याल रखती थी ,कोई पक्षपात नहीं करती।

“हां जिया क्या हुआ बेटा? “

“मामी कुछ मीठा रखा है घर पर? बड़ा मन हो रहा है खाने का”

“हां है तो बेटा मैने इनु के लिए रखा था पर कोई नहीं तुम खा लो( इनु सुमन का इकलौता बेटा था)

मै उसके लिए कुछ और बना दूंगी”

“नहीं मामी फिर इनु को खेलकर आने दो दोनों भाई बहन साथ खायेंगे “

“मै अपने लिए चाय बनाती हूं और आपके लिए भी

पियोगी आप मेरे हाथ की चाय?”

“हां क्यों नहीं बेटा , साथ में मै भजिया तलती हूं “

( और दोनों मामी भांजी साथ में काम में लग गई)

सुमन के मन में जो अपने ननिहाल के प्रति पराए पन की गांठ लग चुकी थी वो तो अब खुलने वाली नहीं थी पर उसके लिए किसी के मन में नफरत की गांठ नहीं बने इसके लिए वो पूरा ध्यान रखती थी। उसने कभी जिया को एहसास नहीं होने दिया कि वो अपने घर में नहीं है । इसी का नतीजा था कि जिया जिस उद्देश्य के लिए वहां आई थी उसमें सफल हो गई और उसकी बैंक में पी ओ के पद पर नौकरी लग गई और वो इसका पूरा श्रेय अपनी मामी को देती थी कि मामी ने उसका पूरा साथ दिया। उसे कभी परायेपन का एहसास नहीं हुआ इसलिए वो पूरे मन से पढ़ाई कर सकी।

दोस्तों ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि शादी से पहले जो बेटी घर की रौनक होती है , शादी होते ही अचानक पराई कैसे लगने लगती है। दादा दादी भी अपने बेटे के बच्चों को ज्यादा अपनापन देते हैं बजाय बेटी के बच्चों के

और ये भेदभाव ही बच्चों के मन में गांठ का रूप ले लेता है जिसका असर रिश्तों पर भी पड़ता है।

मुझे ये सरासर गलत लगता है । बेटे और बेटी दोनों ही अपने हैं तो फिर उनके बच्चों के बीच भेदभाव कैसा?

 आपको क्या लगता है? अपने विचा

रों से अवगत कराना न भूलें 

धन्यवाद

निशा जैन

# मन की गांठ

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