भरोसा सास का – कुमुद मोहन

“जाओ बेटा आज से तुम्हारे जीवन की नई शुरुआत है!खूब खुश रहो”कहते कहते शीला ने अपनी दुल्हन बन विदा होती बेटी चारू का माथा चूम उसे गले से लगा लिया!चारू ने मां को घबराकर ऐसे कसकर पकड़ा मानो कभी छोड़ेगी नहीं!

शीला और रतन की इकलौती बेटी चारू विदा होकर श्यामल के घर जा रही थी।

अपना घर ,अपना बिजनेस गाड़ी घोड़ा,नौकर चाकर क्या नहीं था श्यामल के पिता के पास?

श्यामल के दो छोटे भाई थे!बस बहन नहीं थी।

श्यामल के पिता मुकेश जी शहर के नामी गिरामी व्यक्ति थे।

रतन मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखते थे!उसके पास पैसा बहुत इफरात का नहीं था!बस सबकुछ सामान्य सा था!

श्यामल की मां ने चारू को किसी ब्याह में देखकर पसंद किया था!

दोनों परिवारों के रहन सहन में बहुत फर्क था!

मुकेश जी का परिवार एकदम माडर्न! वहीं रतन ठहरे सीधे सादे !

चारू दोनों परिवारों के रहन-सहन के स्टैंडर्ड को लेकर बहुत परेशान थी!उसका भोला मन हर वक्त यही सोचता क्या वह इतने अमीर और माडर्न ससुराल के परिवेश में  एडजस्ट कर पाएगी?




बड़ी सी कार में विदा होकर चारू ससुराल पहुँची  हजारों लड़ियों से जगमगाती भव्य हवेली ,चारों तरफ महकते फूलों की खुश्बू,बड़े बड़े झाड़ फानूस,एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैले ईरानी कार्पेट!ऐसा लग रहा था जैसे दुनिया की हर ख़ूबसूरती सिमट कर उस हवेली में आ गई हो।

चारू ने कभी सपने में भी नही सोचा था कि यह सब शानो-शौकत उसके स्वागत में होगी।

सासू मां सुधा ने उसे कार से उतार कर ब्याह की सारी रस्में कराई!उनकी आँखों में प्यार और दुलार देखकर चारू का डर कुछ कम हुआ।

चारू बहुत डरी हुई थी ऐसे ताम-झाम में रहने की उसे आदत जो नहीं थी!

दुपट्टों की सरसराहट ,भारी भारी बनारसी और जामदानी साड़ियों की नुमाईश,हीरे पन्ने ,कुंदन के जेवरों की जगमगाहट ,मेहमानों की आवा-जाही कुछ मिलाकर एक भव्य समारोह सा लग रहा था।

चारू को रह रहकर डर लग रहा था कहीं  मेहमानों या रिश्तेदारों में से उसे छोटे घर की समझ कर कोई ताना ना दे दे,या उसके साथ आए सामान को लेकर उसके मां-बाप के लिए कुछ ना कह दे।

पहला दिन था उसे लग रहा था कहीं उससे कोई गलती न हो जाए! डर के मारे उसकी भूख-प्यास भी खत्म ही गई !रह रहकर गला सूख रहा था!




पास बैठे श्यामल ने उसका हाथ पकड़कर उसकी परेशानी की वजह जाननी चाही तो महसूस किया चारू के हाथ बर्फ की तरह ठंडे थे उसके माथे पर पसीना था!

श्यामल ने सुधा जी को बुलाया!वो समझ गई कि चारू घबरा रही है उन्होंने चारू को अलग ले जाकर बड़े प्यार से पूछा कि वह क्यों परेशान है?चारू समझ नहीं पा रही थी कि अपने दिल की बात सास से कैसे कहे!कहीं उन्हे बुरा लग गया तो क्या होगा!फिर भी सुधा जी ने उसे पूछा यह कहकर कि वह अपने दिल की बात उनसे बेहिचक शेयर कर सकती है उसने सुधा जी पर भरोसा करके बताया कि वह बहुत डरी हुई है कहां आप लोग कहां मामूली से घर से आई वो?

लोग जाने कितनी बातें बनाऐंगे ,रिश्तेदार दहेज के सामान को लेकर टिप्पणीयां करेंगे वह सबका सामना कैसे करेगी?

तब सुधा जी ने  चारू के सर पर हाथ रखकर उसे समझाया कि वे सब उसके साथ हैं,कोई कुछ नहीं कहेगा सबको वे खुद देख लेंगी ,चारू को ये सब सोचने की जरूरत नहीं है वह घबराऐगी तो यह सब जो इंतजाम हमने इतने शौक से चारू के स्वागत के लिए करवाऐ हैं उनका मजा कैसे उठा पाऐगी।

चारू के ससुर और दोनों देवर भी चिंतित हो गए!सबने चारू को संभालने की कोशिश की।

चारू को भरोसा हो गया उसे समझ आने लगा कि उसके ससुराल वाले और श्यामल कितने अच्छे हैं वह बेकार में ही उन्हें अमीर और बड़ा आदमी समझकर डर रही थी!ये लोग तो ज़मीन से जुड़े हुए लोग हैं!उसे अपने पर गर्व महसूस हुआ कि उसे इतना प्यार करने वाला ससुराल और पति मिला!

दोस्तों

पहला दिन काॅलेज का हो या ससुराल का हर  एक के मन में उस दिन को लेकर एक अजीब सी उत्सुकता और डर बैठा रहता है!मन में विचारों की उथल-पुथल मची रहती है!एक पल में कुछ बहुत अच्छा लगता है तो दूसरे पल सबकुछ धराशाई सा महसूस होता है!कुछ समझ नहीं आता क्या सही और क्या गलत!पहली पहली बार के कुछ अनुभव बहुत अच्छे होते हैं और कुछ की टीस बहुत तीखी।चारू खुशकिस्मत थी कि  उसे सुधा जी जैसी सुलझी हुई और समझदार सास मिली जिससे ससुराल में पहला दिन उसके जीवन में एक नया सवेरा लेकर आया!

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#भरोसा 

आपकी सखी

कुमुद मोहन

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