भाई – सुधा शर्मा

रात में कोई दरवाजा खटखटा रहा था। देखा छोटा खड़ा था। भडभडाते हुए अन्दर आकर बरस पड़ा,’ये क्या भाई  , मुझे इतना पराया कर दिया? खबर नहीं कर सकते थे? इतनी परेशानी मे हो और मुझे खबर नहीं  ?मुझे दूसरों से पता चला।” फूट फूट कर रोने लगा वह। 

मैने उसे गले लगा लिया ।’मै तुझे परेशान करना नही चाहता था रे।”  उसकी हिचकिया बंध गई थी । 

थोडा संभल कर वह उठा मेरा थोडा बहुत बचा सामान इकटठा कर बाहर रखी गाड़ी में डाला फिर मुझे लगभग खीचते हुए ले जाकर गाडी मे बिठा कर चला पडा” अब

मै तुम्हे यहाँ एक पल न  रहने दूँगा।अब तुम और भौजी मेरी जिम्मेदारी हो।मै तुम्हारे बेटे की तरह हू।तरह नही बेटा हूँ ।”वह बार बार अपनी आँखे पोंछ रहा था ।

        मै उससे कुछ न कह पाया। दो दिन पहले डकैत आ गये थे गांव में । मेरे खेत खलिहान में आग लगा दी , घर का सारा सामान लूट ले गये कुछ श छोडा।वो तो मै पत्नी सहित उसके मैके गया था तो बच गया ।सुनते ही पत्नी को वहीं छोड़ भागा चला आया ।बेटा 

   अमेरिका में पत्नी सहित बस गया था ।

         अंदर से मन टूट रहा था।कितना अधिक प्यार था हम दोनो भाइयों मे।यह देख कर पिता ने सारी जमीन जायदाद मेरे नाम कर दी , जानते थे मै उसका हक कभी नहीं मारूगा ।वह शहर मे रह रहा था।

    और मैने क्या  किया अपने बेटे को विदेश भेजने की खातिर उसके हिस्से की भी सारी जमीन जायदाद बेच दी।

आज मै बिलकुल असहाय हो गया था और मेरा सहारा बना वही। 

मेरा मन आत्मग्लानी से भर उठा था।

उसके भरोसे अब अपनी बाकी जिंदगी सौंप निश्चिन्त हो गया था मैं ।

#भरोसा

मौलिक स्वरचित 

सुधा शर्मा

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