भगवान हमारे भीतर हैं

एक  बार अकबर के दरबार में एक कवि आया. उसने अकबर की शान ए में एक कविता लिखी, ‘अकबर बहुत महान हैं, वह बहुत दयालु हैं’ तो सबने कहा, ‘यह तो बिल्कुल सच बात है!’ उसकी कविता सुन कर लोग उसकी तारीफ करने लगे. तो जब कवि को लगा कि उसकी कविता सबलोगों को पसंद आ रही है तो उसने फिर एक और कविता बनायी और उसमें राजा की और प्रशंसा की.लोग उसकी और तारीफ करने लगे और जब उसने देखा कि लोग ताली बजा रहे हैं, 

सब प्रसन्न हो रहे हैं, राजा भी खुश हो रहा है, तोउसने एक और कविता बनायी. ऐसे उसने कई कविताएं बनायी. अंत में उसने एक ऐसी कविता बनायी, जिसमें उसने कहा कि आप तो भगवान से भी बड़े हैं! जैसे ही कवि ने यह कहा, दरबार में एकदम सन्नाटा छा गया. अब कोई कवि की तरफ देखे, तो कोई अकबर की तरफ. लोग सोच में पड़ गये कि । उन्हें इस बात पर ताली बजानी चाहिए अथवा विरोध करना चाहिए. राजा ने देखा कि कोई ताली नहीं बजा रहा है और सारे दरबार में एकदम से सन्नाटा सा फैल गया है. तब अकबर ने बीरबल की तरफ देखा और कहा ‘बीरबल! क्या सचमुच मैं भगवान से बड़ा हूं?’ तो बीरबल ने कहा ‘बादशाह ! आप मुझे एक दिन का समय दीजिए, मैं सोच कर आपको बताऊंगा.’ लेकिन अब बीरबल दुविधा में पड़ गया, वह जानता था कि राजा भगवान से बड़े नहीं हैं, मगर यह बात बीरबल राजा से नहीं कह सकता था. अगले दिन बहुत सोच-समझ कर बीरबल राजा से बोले, ‘महाराज! बड़े-छोटे की बात ही नहीं है, पर आप एक चीज कर सकते हैं, जो भगवान नहीं कर सकते.’ सारे दरबार में एकदम सन्नाटा फैल गया. अकबर ने कहा, ‘बीरबल बताओ, ऐसा क्या है, जो मैं कर सकता हूं, परंतु भगवान नहीं कर सकते.’ तब बीरबल ने कहा, ‘आप किसी को भी अपने राज्य से बाहर निकाल सकते हैं, परंतु वह जो इस संसार के पालनहार हैं, वह किसी को अपने राज्य से बाहर नहीं निकाल सकते.’ वह हमारे अंदर ही मौजूद हैं, तो हमें डरने की क्या जरूरत है. |  

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