नानक की सीख

श्री गुरुनानकजी महाराज प्रभु-नाम का प्रचार करते हुए पहुंचे बगदाद में। वहां राज करता था खलीफा। लोगों ने बताया कि खलीफा कंजूस बहुत है, किसी को एक कौड़ी भी नहीं देता। | गुरुजी मुस्कुरा, कंकरों की एक पोटली बांध ली और अपने | पास रख ली। सत्संग होने लगा कुछ दिनों के बाद खलीफा भी | सत्संग में आया। सत्संग की समाप्ति पर गुरुजी ने खलीफा को | आशीर्वाद दिया, बोले, खलीफा मैं हूं फकीर, स्थान-स्थान पर | घूमता फिरता हूं। मेरे ये कंकर संभालकर अपने पास रख लें।

मैं कभी मिलंगा तो तम से ले लंगा। खलीफा ने कहा परन्त ये | तो कंकर हैं। गुरुजी बोले-मेरे लिए ये कंकर ही बहुमूल्य हैं।

आप इन्हें संभालकर रख लें। खलीफा ने पूछा-परन्तु आप इन्हें वापस कब लेंगे? गुरुजी बोले ये तो मुझे भी मालूम नहीं। हो | सकता है इस जीवन में फिर कभी आपसे भेंट ही नहीं हो सके।

इस अवस्था में ये कंकर मैं आप से उस दिन ले लूंगा जबकि | सब लोग खुदा के सामने अपना-अपना हिसाब देने के लिए | इक्कठे होंगे।खलीफा ने कहा, परन्तु वहां मृत्यु के बाद, कयामत | के दिन ये कंकर मैं साथ लेकर कैसे जाऊंगा? गुरुजी ने मुस्कुराते | हुए कहा-अपने इतने माल-खजाने ले जाओगे सोना, चांदी, ” | हीरे, जवाहरात, तो क्या थोड़े से कंकर नहीं ले जा सकते क्या? | खलीफा की आंखें खुल गई। उसने कहा ये सब कुछ तो साथ में | नहीं जाएगा। कभी किसी के साथ नहीं गया। गुरुजी बोले-तो | फिर ये सब एकत्र क्यों करते हो? बांट दो उन लोगों को जिन्हें । आवश्यकता हो।

भीतरी बात-गहरी बात-इस दुनिया में खूब कमाया क्या हीरे क्या मोती पर क्या करे यारों कफन में अब नहीं होती।

-ललित ‘अकिंचन’

 

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