भागवान!तुमने अपनी गृहस्थी संभाल ली-अब बहू को अपना घर संभालने दो! – कुमुद मोहन!

 

सना और रमन की शादी चार महीने पहले ही हुई थी! रमन मुंबई की एक कम्पनी में इंजीनियर था!कंपनी की तरफ से उसे तीन बी एच के का फ्लैट मिला था!सना भी बैंक में जाॅब करती थी!

शादी के बाद सना की सास सुमन महीने भर यह कहकर उनके पास रूकी रहीं कि नयी बहू को गृहस्थी के तौर तरीके समझा दें!

 

एक हफ्ते में उन्होंने सना की नाक में दम कर दिया!नयी नयी ब्याह कर आई थी वैसे ही डरी हुई थी!ऊपर से सासू मां के कड़क स्वभाव के बहुत से किस्से सुन कर पहले ही परेशान थी!

सना के मन में अपने घर को सजाने के जाने कितने सपने संजो रखे थे!

सना और रमन घर के लिए नये परदे लेने गए तो सुमन जी भी साथ थीं!

जिस डिजाइन और कलर को सना पसंद करती  सुमन जी उसमें मीन-मेख निकाल रिजेक्ट करा देती!

फर्नीचर को लेकर भी सुमन दखलअंदाजी किये बिना नहीं मानी!

रमन ने एकाध बार इशारे से उनको समझाना चाहा तो वे बोली”तेरे पापा के दो कमरे के गुचकुल्ली से घर में तो अपने मन का कुछ कर ना पाई थी!अम्मा जी का राज चलता था ना? सोच रखा था तेरी नौकरी के बाद तेरी गृहस्थी अपने मन मुताबिक सजाऊंगी!बरसों बाद तो भगवान ने ये दिन दिखाया!अब मैं किसी की एक ना सुनूंगी कहे देती हूं!

सना और रमन ने दबे शब्दों में कहना भी चाहा कि घर के परदे रोज-रोज तो बदले नहीं जाऐंगे,एक बार ढंग के ले लेते हैं,पर सुमन जी ने दोनों को घुड़क कर चुप करा दिया यह कहते हुए कि तुम लोगों को अभी क्या पता गृहस्थी कैसे चलाते हैं!और अपनी पसंद के सस्ते से परदे खरीदवा कर ही मानी!

सुमन जी ने सना के मां-बाप से घर का सामान देने को मना कर दिया था यह कहकर कि जरुरत के हिसाब से अपने आप ले लेगी!



जरूरत के बर्तन खरीदने की बात हुई तो सुमन जी फिर दखल देती बोली”बहुत ज्यादा बर्तनों का क्या करोगी ?ज्यादा होंगे तो काम वाली चोरी चकोरी कर उठा ले जाऐंगी और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा!मेरे पास बहुत सारे भगौने कड़ाही पड़े हैं अगली बार लेती आऊंगी!बस गिनकर कटोरी, गिलास, चम्मच खरीदो!

सना दो लीटर का कुकर लेना चाह रही थी क्योंकि छोटे कुकर में थोड़ा सामान पकाने में ज्यादा आसानी रहती पर सुमन जी बोली अभी से “मैं और मेरा पति”सोचना शुरू कर दिया हम या तुम्हारे ननद ननदोई ना आऐंगे क्या?चलो पांच लीटर वाला लो!”

सना ने कोरेल का बोन चाइना का डिनर सेट पसंद किया पर सुमन जी दुकानदार से बोली”भइया!मैलमोवियर का दिखाओ !फिर सना और रमन से बोली “तुम लोगों को काम वालियों को नहीं पता !इतना हबड़ तबड़ में काम करती हैं ,रोज कुछ न कुछ तोड़कर रख देंगी !सना तो बर्तन धोने से रही!कुछ ही दिनों में किसी का कप बचेगा ,किसी की प्लेट!”

मेलमोवेयर ले लो ,टूटने फूटने का झंझट ना रहेगा!”

सुमन जी की हर चीज में दख़ल देने के कारण से सना का मूड खराब हो गया!रमन को बुरा लगा पर सुमन के क्लेश के कारण चुप रह गया!

खैर एक महीने अपनी दख़ल अंदाजी से सना के नाक में दम करके सुमन जी बड़ी मुश्किल से वापस अपने घर गई वर्ना उनका तो कहना था  “इतने इंतज़ार के बाद बड़ी मुश्किल से भगवान ने ये दिन दिखाया कि बहू से सेवा करा सकूं इस मौके को मैं कैसे छोड़ दूं”!

ब्याह के बाद सना और रमन ने दो चार दिन के लिए हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्राम बनाया !रमन को बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिली थी!सुमन जी को पता चला तो उन्होंने फौरन फरमान जारी किया ” कोई जरूरत ना है हिल फिल सटेशन जाने की छुट्टी मिली है तो घर आओ!अभी पूरी जिन्दगी पड़ी है अकेले घूमने को,कुछ दिन बहू आकर हमारी सेवा करेगी तो कमज़ोर ना हो जावेगी”?

मरते क्या ना करते!बेचारे रमन और सना मम्मी जी की खिदमत करने को पहुंच गए!

होली पर रमन के मां-बाप का फिर मुंबई जाने का प्रोग्राम बन गया!

रास्ते भर सुमन जी सोचती रही नौकरी करने वाली बहू क्या ढंग से घर रखती होगी मुझे ही जाकर सब संभालना होगा!

मुंबई पहुंच कर सना का साफ सुथरा और करीने से रखा घर देखकर रमन के पिता सुरेश जी तो बहुत खुश हुए पर सुमन जी बिना नुक्स निकाले अपनी आदत से बाज नहीं आई!

कभी चाय ठंडी है ,कभी सब्ज़ी मे नमक कम तो कभी दाल पतली या रोटी मोटी है कह कहकर

सना को टोकती रहती!

सना को दस बजे ऑफ़िस जाना रहता! उसने एक कामवाली बाई रखी थी !जो सुबह छः बजे आकर घर की सफाई,बर्तन और खाना बना देती!नाश्ता करके रमन और टीना टिफ़िन भी ले जाते!

सना उसे सुबह चाय और नाश्ता दे देती ,वह आराम से काम करती सना को भी उसके रहने से बहुत सुविधा थी!



सना का रोज मेड को नाश्ता कराना सुमन जी को एक आँख नहीं भाता था!

वे रोज सना को टोकती “अरे! अपने घर से ही तो आती है!घर से चाय पीके चला करे,दूध और पत्ती मुफत की ना आती मेरे बेटे की मेहनत की कमाई काम वालों पर लुटा रही हो,क्या जरूरत है खाना बनवाने के लिऐ पैसे खरचने की!दो आदमियों का खाना ही कितना होता जो तुम खुद ना बना सको!हमारे जमाने में तो दस दस लोगों को खाना यूं ही मिन्टों में चुटकी बजाते ही बन जाया करे था! आजकल की लडकियां तो हाध हिलाना ही ना चाहैं”!

सुमन जी को धोबी, महरी सब अखरने लगे!

होली पर सना की कामवाली ने खूब अच्छी तरह त्यौहार का खाना,गुझिया वगैरह सना के साथ मिलकर बनवाया!

सना मेड के लिए नयी साड़ी लाई थी!सुमन जी को दिखाई तो सुमन जी ने फौरन साड़ी अपने कब्जे में लेकर कहा”100रूपये और अपना कोई पुराना कपड़ा दे दो;कोई  जरूरत नहीं नए कपड़े देने की”!

सना को बहुत बुरा लगा मेड के रहने से उसे कितना आराम था त्यौहार कितनी अच्छी तरह निपट गया!पर सुमन जी के आगे उसकी एक न चली!

किसी छुट्टी के दिन अगर सना और रमन कहीं बाहर घूमने का प्रोग्राम बनाते तो सुमन जी का मुँह बन जाता या कहीं बाहर से खाना आर्डर करने की कहते तो वे फिजूल खर्ची का बहाना देकर अडंगा लगा देती!

सुमन जी की आऐ दिन की टोका टोकी से तंग आकर एक दिन मेड ने सना को कह दिया कि वह किसी दूसरी मेड का इंतजाम कर ले मम्मी जी के रहते वह काम नहीं कर पाऐगी!

सुरेश जी ने सुन लिया !वो जब से आए थे देख रहे थे कि सना को मेड के रहने से कितनी सुविधा है!सुरेश जी ने देखा कि पानी अब सर से ऊपर जा रहा है ,सुमन जी की रोज-रोज की चिक-चिक का असर रमन और सना की सोने सी गृहस्थी पर पड़ रहा है तो उन्होने सुमन जी को कह दिया कि तुमने  देखा  बहू कितनी अच्छी तरह घर संभाल रही है ,नौकरी पर भी जाती है पर हमें तुम्हे  कोई दिक्कत नहीं होने देती!



तुम्हारी हर वक्त की चख चख पर भी पलट कर जवाब नहीं देती;हमारी हर छोटी से छोटी चीज़ों का ध्यान रखती है!और तुम्हें क्या चाहिए?खाना टाइम से पका पकाया मिलता है,कपड़े धुले धुलाए,प्रेस करे।हमारे मुँह से बात निकलती है बच्चे फौरन पूरी कर रहे हैं!

जैसे अम्मा की टोका टोकी तुम्हें बुरी लगती थी तुम सोचो बहू को भी वैसा ही लगता होगा!

तुमने अपनी गृस्स्थी जैसा तुम्हारा मन किया चला ली अब बहू को अपनी गृहस्थी अपने हिसाब से चलाने दो!

अगर घर की सुख शांति चाहती हो तो भागवान खुद भी चैन से रहो और बेटे बहू को भी चैन से रहने दो तभी बच्चे भी खुश रहेंगे और हम तुम भी!कहीं ऐसा न हो कि कल को बच्चे हमारे पास आने में कतराऐं और हमें अपने पास बुलाने में घबराऐं !

थोड़ी-बहुत बहस के बाद सुमन जी ने ठंडे दिमाग से सोचा कि सुरेश कह तो सच रहे हैं!अम्मा जब उन्हें टोकती थी तो उन्हें कितनी घुटन होती थी अम्मा का साथ रहना उन्हें एक पल को भी सुहाता नहीं था !हे राम बहू भी तो ऐसा ही हमारे बारे में सोचती होगी!बुढ़ापे में दो रोटी का भी सुख ना मिलेगा!कौन करेगा अगर बीमार वीमार हो गए तो!

बहू बेटा इतना ख्याल रख रहे हैं तो वे हर चीज़ में दख़ल क्यों दें!शुक्र है भगवान का कि सुमन जी को जल्दी ही सद्बुद्धि आ गई!

जब बहू ने कहा “आप दोनों वहाँ अकेले क्यों पड़े हैं,यहीं आ जाइये सब साथ रहेंगे!”सुनकर सुमन जी खुशी से फूली नहीं समाई!

दोस्तो

दो पीढ़ियों के तौर तरीके अलग अलग होते हैं बड़े-बुजूर्गों को अपना बड़प्पन और बच्चों को बड़ो का सम्मान बनाए रखना चाहिए तभी घर में सुख और शांति बनी रह सकती है!बड़ों को अपने विचार बच्चों पर थोपने नहीं चाहिए और न ही अपने समय से तुलना करनी चाहिए! मुझे उम्मीद है आप भी सहमत होंगे!

अगर हां तो प्लीज लाइक-कमेंट अवश्य दें!धन्यवाद ।

कुमुद मोहन!

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