बेटी : माँ की ढाल – गुरविंदर टूटेजा

   मेहर बेटा तुम बताओ कौनसे होटल चलना है…पापा ने पूछा..!!

   मेहर ने आवाज लगाई…मम्मी जल्दी इधर आओ और आप बताओ कि कहाँ चलना है…??

    दादी बोली कि मेहर तुम बताओ ना बेटा….नीलिमा क्या बतायेगी..?

   दादी !मम्मी क्यूँ नहीं बता सकती..?

  इतने में पापा ने कहा…मेहर तुम दादी से बहस क्यूँ कर रही हो तुम्हें नहीं बताना तो ठीक है मुझे जहाँ जाना होगा वही चलेगेंं…!!

   ठीक है पापा मेरी भी जिद्द है…जायेगें तो वही जहाँ मम्मी बोलेंगी…!!

 नीलिमा ने गुस्से से बोला…मेहर तुम ये सब क्या बोल रही हो…!!

 पापा बोले…पहले तुमने सीखा दिया और अब अच्छी बन रही हो..!!!!

 मेहर बीच में ही बोल पड़ी…पापा मुझे मम्मी ने कुछ नहीं बोला है…मैं अब बड़ी हो गई हूंँ सब देखती समझती हूंँ… मम्मा सारा दिन सबकी ज़रुरतों का ध्यान रखती हैं सबको हर चीज हाथ में देती है तो क्या उनका इतना हक भी नहीं है कि वो अपने मन की कर सके अपने हिसाब से जी सकें…!!

 मेहर तुम्हें पता है तुम हम सबकी लाडली हो और मैं तुम्हें हर बात में पहले रखता हूंँ… फिर भी तुम मुझसे और दादी से इस तरह से बात कर रही हो..मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी…!!

  पापा मैं भी आपकी और दादी की बहुत इज्जत करती हूंँ और प्यार भी बहुत करती हूंँ पर आप दोनों जब मम्मा के साथ गलत व्यवहार करतें है और वो भी खामोशी से सब सहती रहती हैं…वो सीधी है इसलिये ना…आप सोचों जैसे मैं आपकी लाडली हूंँ वो भी अपने घर पर सबकी होगीं…मैं जब अगले घर जाऊँगी तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार हुआ तो क्या आप सब सहन कर पायेंगे… नहीं ना…तो प्लीज़ मेरी बात को समझें…क्यूँकि अब मैं समझदार हो गई हूंँ और मम्मा के साथ उनकी ढाल बनकर खड़ी कहूँगी…!!!!



    नीलिमा की आँखों  से आँसू बह रहें थे उसने अपनी लाडों को गले से लगा लिया…!!!! 

  इतने में पापा का प्रश्न आया…नीलिमा अब तो बता ही दो कहाँ चलना है..?? और सब एक साथ ठहाका मारकर हँस दियों…पूरा माहौल बदल गया….!!!!

“बहुत सीधी-साधी है मेरी माँ…

सबका ध्यान रखती है…

घर के हर सदस्य में….

अपनी जान रखती है…!!

पर ऐसा क्यूँकि…..

माँ अपनी होकर भी पराई थी…

इस घर को अपना मान….

अपने घर से विदा हो आई थी…!!

पर…..हँसी-मज़ाक…चँचलता

जाने कहाँ समां गये…..!!

दुख-दर्द…….खामोशी

कैसे दरवाज़े से अंदर आ गये….!!

आज लगता है कि….

मुझे माँ की ढाल बनना है…!!

क्योंकि……

आज बेटी हूँ तो क्या….

कल मुझे भी माँ बनना है…!!”

गुरविंदर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

#बेटी हमारा स्वाभिमान_

अप्रकाशित

1 thought on “ बेटी : माँ की ढाल – गुरविंदर टूटेजा”

  1. Story mein dum hai aur nice.isle age bhi likhna chaiye ki nilimaji ne hotel ka naam bataya ki nahi sir sare log hotel gay ki nahi.climex pura nahi adhura hai.

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