बेटा – गरिमा  जैन 

मां यह एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर कानो को ही नहीं आत्मा को भी सुकून मिलता है पर आरती के लिए यह शब्द दिल को सुकून देने वाला कभी रहा ही नहीं ।आज सुबह जब पापा का फोन आया तब उन्होंने रोती हुई भराई आवाज में कहा

“आरती तेरी मां बहुत बीमार है, डॉक्टर कहते हैं शायद  बचेगी नहीं ।हो सके तो मिलने आ जाओ।”

पर आरती के चेहरे पर कोई भी भाव नही बदले ।उसने जी पापा कहकर फोन रख दिया औरजोर से पुकारा दादी, मां की तबीयत बहुत खराब है ,पापा आपको बुला रहे हैं ।

दादी ने कहा “अरे पगली मुझे क्या तुझे भी तो बुला रहे होंगे, चल इतना भी क्या मां से बुरा मानना कल सुबह की बस पकड़ के निकल चलेंगे नहीं तो दिन में लूप बहुत तेज चलती है, धूप भी तेज हो जाती है और फिर तुझे तो तेज धूप बर्दाश्त नहीं होती, सुबह-सुबह ठंडे ठंडे पहुंच जाएंगे ।ऐसा कर रात को ही चार पूरी बनाकर रख लें जिससे सफर में कोई खाने पीने की दिक्कत ना हो ।”

आरती कुछ ना बोली और चुपचाप जाकर गैस पर चाय चढ़ा दी चाय में उबाल के साथ ही उसके मन में भी बहुत सी भावनाएं उबल रही थी, घुट रही थी, कढ़ रही थी।

उसे आज भी याद है वह दिन जब दादी के साथ हमेशा के लिए इस घर में आ गई थी। बड़ी मुश्किल से उस दिन पापा और दादी ने उसे उसकी मां की पिटाई से बचाया था। आरती से बड़ी दो बहने भी है, जब आरती का जन्म हुआ तब माँ ने कितने साधु, फकीरों ,महात्माओं के दर्शन किए हर मंदिर में मत्था टेका कि इस बार पुत्र की प्राप्ति हो उन्हें पूरा यकीन था कि तीसरी संतान उन्हें पुत्र के रूप में ही प्राप्त होगी परंतु जब आरती हुई तो उन्होंने पलटकर उसका चेहरा भी नहीं देखा, उसे कलेजे से नहीं लगाया ,आरती जैसे तैसे कभी बुआ कभी दादी तो कभी कामवाली के हाथ से पलके बड़ी होने लगी।


आरती अच्छे स्कूल में पढ़ने नहीं गई थी मां कहती 3 तीन बच्चों का बोझ कब तक पापा उठाते रहेंगे। आरती पास के स्कूल में जाती जल्दी ही घर आ जाती, छह-सात साल की उम्र से ही घर के काम ऐसे कर दिया करती जैसे कितनी परिपक्व हो गई हो ।पर तब भी थी तो बच्ची ही, जरा सी भी गलती हो जाने पर मां उसे बहुत बुरा सुलूक करती, जानवरों की तरह उसे पीट देती ,उसके बचाव हो सिर्फ दादी ही आती   क्योंकि पापा तो घर पर होते ही नही थे।

एक बार आरती ऐसे ही चाय बना रही थी और चाय उबल कर पूरे गैस पर फैल गयी। आरती जल्दी जल्दी साफ करने लगी ।तभी मम्मी किचन में आ गई और आरती के बालों से पकड़कर उसकी जोरदार  पिटाई हुई कि उसकी आवाज नहीं निकल रही थी। दादी यह देखकर अवाक रह गई। उन्होंने आरती को अपने साथ ले जाना ही ठीक समझा। बहू को समझा समझा कर वह थक गई थी पर आरती के लिए प्रेम पनपता ही नहीं था। तबसे आरती दादी के पास ही रहती है। दादी ने अच्छे स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया। 15-20 दिन में पापा मिलने आते हैं कभी कभी दोनों बहने भी आ जाती है । आरती पढ़ने लिखने में बहुत होशियार है ।घर के काम भी इतनी कुशलता से करती है कि जिसमें कोई नुख्स न निकाल सके।

आरती 18 साल की हो चुकी है बड़ी दोनों बहनों का विवाह हो चुका है। मां घर पर बिल्कुल अकेली है। बुढ़ापे में उन्हें सहारा चाहिए और वह चाहती है सयानी आरती कुछ  उनकी सेवा कर दे लेकिन आरती के मन में अपनी मां को लेकर  जो डर है वह शायद ही  वह कभी निकाल पाएगी।


चाय बन चुकी थी उसने चाय दादी को दी और  कहा कि वह उन से अनुरोध करती है कि  उसे मां के पास जाने की ज़िद्द ना करें वह उनके पास बिल्कुल भी जाना नहीं चाहती है ।वह दादी के साथ रहेगी और खुश रहेगी। दादी प्यार से आरती का सर सहलाने लगी और बोली

” बेटा मां तो मां होती है गलती किससे नहीं होती, एक बार आखिरी समय में उनके पास चल नही तो तेरे पिता को बहुत दुख होगा ।वह समझेंगे कि मैंने आज तुम्हारा लालन पोषण अच्छे से नहीं किया ।तुम्हारे मन में तुम्हारी मां के लिए ज़हर भर दिया है ।आरती फिर कुछ ना बोली बस एक शब्द भी उसके मुंह से निकला

“लेकिन दादी मैं आपके साथ ही वापस आऊंगी और यह आखिरी बार है! सिर्फ आपके लिए मैं माँ से मिलने जा रही हूं।”

दादी प्यार से आरती का सर सहलाती हैं उसे गोदी में लेटा लेटी हैं ।उनकी आंखें नम हो जाती है और आसु का कतरा  आंखो से सरक के आरती के बालो में गिरता ,आरती चौक जाती है !वह देखती है दादी  रो रही है।वह दादी की आंखों का आंसू पूछती है कहती है “दादी आपने मेरे पालने में कोई कमी नहीं छोड़ी ,आपकी वजह से ही मैं आज जो भी हूं वह हूँ,नहीं तो मै जिंदा भी नहीं बचती ।दोनों दादी पोती एक दूसरे को गले से लगा रोने लगती हैं।

समाप्त

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