चितकबरी….. सीमा बत्रा

मंजूला अपनी माँ बाप की नौ संतानो में से 7वें नंबर पर थी। 6बहने 3 भाई, दादा और दादी से भरा पूरा घर था। मारवाड़ी परिवार में किसी भी चीज की कमी नही थी। पिता घन्श्याम अग्रवाल 1950-60 में भी कीफी प्रोगेसिव विचारों के थे। उन्होंने अपने बच्चों में कोई भेदभाव नही किया। तब लड़कियों और लड़को के स्कूल अलग अलग हुआ करते थे। उनकी सबसे बड़ी बेटी 5वीं क्क्षा तक ही पढ पायी क्योंकि लड़कियों के लिए स्कूल ही पांचवी तक था।

उससे छोटी 2 बहनों ने आठवीं तक पढाई की। बेटे भी पढने में ठीक ठाक थे। उनका काम अच्छा था। बेटियों की शादी भी यथासंभव अच्छे परिवारों में करते चले गए।

पहले के वक्त में ज्यादा बच्चे होते थे तो माँ बाप हर बच्चे पर उतना ध्यान नही दे पाते थे, जितना आज दिया जाना संभव है। मंजूला और उससे छोटी बहन सुनिता को तो बड़ी बहनो ने ही पाला। नहलाना धुलाना स्कूल के लिए तैयार करना सब वही लोग करते थे।

मंजूला के शरीर पर सफेद दाग थे जो बड़ो से अनदेखे हो गए। बड़ी होती मंजूला के दाग भी तेजी से बड़े होते गए। स्कूल जाती तो बच्चे तो चिढाते ही कई रिश्तेदार भी मजाक उड़ाने से बाज न आए। डॉक्टर को दिखाया गया तो बिमारी अनुवांशिक थी। घनश्याम जी के पैरो पर भी यही दाग थे पर उनके आगे नही बड़े। उस जमाने में लड़की जात उस पर सफेद दाग होना किसी अभिशाप से कम नही था।

उसके शरीर पर तीन रंग दिखते एक भूरा जो स्वाभाविक रंग , एक काला और बहुत सारा सफेद जिसकी वजह से सब उसे चितकबरी कहने लगे। पढने में अच्छी मंजूला का दिल दुख जाता और उसने पढाई बीच में छोड़ दी और घर के काम करवाने लगी। उसके पिताजी ने समझाया पर वो नही मानी।

वो किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी ब्याह या किसी और अवसर पर भी नही जाती। घर ही रहना उसे अच्छा लगता। जैसे जैसे वो बड़ी होती गयी, उसका चेहरा और हाथ तकरीबन सफेद हो गए। बड़े भाई और पिता जी को उसकी शादी के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ी। कई दहेज इतना माँगते की वो खुद ही मना कर देते।


घनश्याम जी काफी चिंता में रहने लगे। किसी दूर के रिश्तेदार ने दिल्ली में रहने वाले ब्रिजेश कुमार जी का रिश्ता बताया। पतला, दुबला, नजर का बहुत मोटा चश्मा लगा हुआ लड़का देख कर घनश्याम जी का दिल रो पड़ा। मंजूला की कमी के आगे किसी को उसके तीखे नैन नक्श और सुघड़ता नजर नही आ रही थी।

ब्रिजेश कुमार जी के परिवार का बिजनेस ठीक ठाक था। लड़के के परिवार वालों ने मंजूला को उसकी कमी के साथ खुशी खुशी अपनाने का कह हाँ कर दी तो मंजूला ने भी अपने पिता से हाँ कहलवा दिया। मंजूला की बदनसीबी ने यहाँ भी पीछा नही छोड़ा। गाँव से शहर आ गयी अब भी उसे राह चलते चितकबरी, भूरी और भी न जाने क्या क्या सुनने को मिलता तो वो आहत हो जाती।

ब्रिजेश कुमार जी जैसे भी थे मंजूला ने उसे अपना लिया था। ससुराल में उसने अपने गुणो से जल्दी ही जगह बना ली पर एक धोखा तो उसे ससुराल वाले दे ही चुके थे। वो था ब्रिजेश का पूरी सर्दियों में बीमार रहना। वे दमे की मरीज थी। इसलिए ज्यादा चलने फिरने का काम नही करते थे। ये सच सर्दी का मौसम आया तो पता चला।

मंजूला क्या करती तब तक वो गर्भवती हो गयी थी। जब उसके मायके में ये सच्चाई पता चली तो सब बहुत दुखी हो गए। मंजूला ने हिम्मत नही हारी। वो पति का और ज्यादा ध्यान रखने लगी। 4 साल में 2 बच्चे उसकी गोद में आ गए। पहले बेटी नैना और उसके बाद बेटा शुभम। इसी बीच मंजूला की सास ने सारी प्रॉपर्टी के हिस्से कर दिए। सबको बराबर हिस्सा मिला।

ब्रिजेश जी की हालत धीरे धीरे हमेशा ही खराब रहने लगी। मंजूला ने पति को हौंसला दिया और एक किराने की दुकान खोल ली। आधा दिन वो खुद बैठते और शाम का खाना बना कर मंजूला दुकान चली जाती। इसी तरह काम चल रहा था। मंजूला के भाई बहुत अच्छे थे। उन्होंने वक्त वक्त पर मंजूला की खूब मदद की। बच्चे बड़े हो रहे थे। बच्चों को स्कूल भेज वो एक नौकर के सहारे दुकान खोलती और ब्रिजेश जी बच्चों के आने से पहले दुकान आ जाते।

मंजूला बच्चों को खाना खिला कर उन्हें ट्यूशन पढने भेज देती और उनके आने के बाद बच्चों को दूध चाय दे कर घर पर ही रहने की हिदायत देते हुए पति की चाय ले जाती। बच्चों के ट्यूशन से आने से पहले ही डिनर तैयार  कर लेती।

ब्रिजेश जी अपनी हालत से चिड़चिड़े होते जा रहे थे। कभी अपनी बीमारी पर गुस्सा आता तो वो भी मंजूला को चितकबरी का ताना यदा कदा मार देते। मंजूला तानों में उनकी छुपी बेबसी समझ कर चुप रहती। उनको दवाइयां टाइम पर देना। सर्दी में सारा टाइम उन्हें घर पर ही रखती फिर भी उसके पति ज्यादा दिन साथ नही दे पाए । नैना 8वी में थी और शुभम 6वी में जब ब्रिजेश जी दुनिया छोड़ कर चले गए।

बच्चे पढने में अच्छे थे पर जब मंजूला स्कूल जाती तो बच्चे शुभम और नैना को चिढाते की देखो इसकी मम्मी तो बिल्कुल भूतनी सी डरावनी और सफेद लगती है, चितकबरी, भूरी शब्दों ने अभी भी मंजूला का पीछा नहीं छोड़ा। बच्चों का मनोबल गिर रहा था। उन्हें माँ का पी.टी एम में आना शर्मिंदा कर जाता पर अपनी माँ से कुछ नही कहते। हर बच्चे को अपनी माँ से प्यार होता है। उन्हें भी था।


धीरे धीरे बच्चे बड़े होते गए और उन्होंने लोगो पर ध्यान देना छोड़ दिया। बच्चे अपने पैरो पर खड़े हो गए। जब नैना की शादी का वक्त आया तो हर माँ बाप फिर एक सवाल करते,”आपकी बेटी को भी तो यही बीमारी नही है? कोई बदतमीज ये भी कह देते,”आपकी बेटी भी चितकबरी हो गयी तो”? कह रिश्ते से मना कर देते।

मंजूला डिप्रेशन में जाने लगी। वो जानती थी कि शरीर में किसी चीज की कमी से होता है ऐसा। नैना और शुभम के सारे टेस्ट वो पहले ही करा चुकी थी ये सोच कर कि जो उसने सहा है वो उसके बच्चे न सहे।

खैर नैना एक बैंक में अच्छी पोस्ट पर थी। उसने अपना जीवनसाथी खुद ही ढूँढ लिया जो हर तरीके से उसके लायक था। उसके परिवार को नैना पसंद थी। वो मंजूला के बारे में सबकुछ जानते थे उन्होंने खुशी खुशी रिश्ते पर मोहर लगा दी। जल्दी ही नैना की शादी हो गयी।

शुभम भी अपनी पढाई खत्म करके अपने मामा के साथ काम कर रहा था। शुभम की शादी को सोचा तो कई लड़कियों के रिश्ते आए। शुभम ने एक लड़की के लिए हाँ कह दी। लड़की टीचर थी, जब मंजूला और शुभम ने हाँ कहा तो लड़की ने सीधा सीधा अपने पैर  पर एक सुई की नोक जितना सफेद दाग दिखा दिया। मंजूला ने शुभम की तरफ देखा तो शुभम ने बिना देर किए कहा…. आप मुझे फिर भी पसंद हो……. शुभम की हाँ से मंजूला की आँखे खुशी के आँसुओं से भर आयीं। भविष्य में उसकी बहु के दाग फैलेंगे या नही इसकी चिंता न शुभम को थी न मंजूला को…बस दोनों के सुखद भविष्य की कामना कर रही थी….

सीमा बी. 

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