बेटा-बेटी होत न एक समाना – डा. पारुल अग्रवाल

पापा के जाने के बाद, जायदाद को लेकर दोनों भाई में झगड़े होने शुरू हो गए। सब अपनी दुनिया में खुश था,कोई अकेला रह गया था तो वो थी मां। दोनों भाई में से मां को कोई रखने को तैयार नहीं था जबकि रचना हमेशा से चाहती थी कि मां उसके साथ रहें। पापा के चले जाने के बाद मां बड़े भैया के साथ रह रही थी पर अब उन्होंने भी मां को रखने से मना कर दिया था। वो मां को छोड़ने आ रहे थे, रचना ने मां के स्वागत की सारी तैयारी कर ली थी,उसे पूरी उम्मीद थी कि मां अब उसके साथ रहेंगी।वो मां को अपने पति के साथ जाकर खुशी खुशी घर लाती है, मां चलने फिरने में लाचार थी पर फिर भी अपना काम कर लेती थी। रचना मां से बात करती पर मां की सारी बातों में सिर्फ अपने बेटा बहु और पोते का हो जिक्र होता, दो तीन दिन आराम से निकले, तीन दिन बाद छोटे भाई को मां को लेने आना था, मां बार बार रचना से कह रही थी कि तेरे पापा के बिना में अकेले कैसे रहूंगी।

रचना बार बार मां को एक बच्चे की तरह समझा रही थी कि ये भी आपका घर है अगर आपका मन नहीं है तो मत जाना, सब आपके मन के हिसाब से होगा। जैसे ही भाई आया थोड़ी देर बात करने के बाद मां ने तुरंत बोला रहूंगी तो मैं बेटों के साथ ही,रचना ने तुरंत मां की तरफ देखा, उसे ऐसा लगा कि जैसे कितने ही खंजर उसके सीने में घुसा दिए गए हों,जो मां अब तक अकेले रहने के नाम से घबरा रही थी वो तुरंत बेटे को देखकर पिघल गई। उसे ये भी लगा कि चाहे वो अपनी मां के लिए कुछ भी कर ले तो भी कभी अपने भाइयों जैसा प्यार उसके हिस्से में नहीं आयेगा। उसने तो कभी अपने मां पापा से एक पैसे की भी चाह नहीं रखी तब भी आज मां ने उसे एक पल में पराया कर दिया। रचना को आज बेटे और बेटी का फर्क साफ समझ आ गया।

बचपन में जब उसके पापा कहते थे तू मेरी बेटी नहीं बेटा है, तब वो सोचती थी जब बेटी है तो बेटा कैसे? ऐसे ही जब गणपति जी की आरती की एक लाइन बांझन को पुत्र देत आती थी,तब सोचती थी पुत्र ही क्यों?आज उसे अपने सारे बचपन के सवालों का जवाब मिल गया।आज उसे पता चल गया कि हमारा भारतीय समाज अभी भी बेटा और बेटी में फर्क करता है। कितने ही कानून बेटी और बेटे की समानता के बन जाए पर अगर लड़की किसी कारणवश अपना भी जायदाद में जरा सा हक मांग ले तो पूरी दुनिया उसे लालची और स्वार्थी मान लेती है। 



दिल तो रचना का बहुत टूटा था आज पर कहते हैं कि हार मान कर बैठने से ही जिंदगी नहीं चलती, आज उसे अपने संतान के रूप में सिर्फ बेटी होने पर कहीं न कहीं तस्सली थी कि वो अपनी बेटी से कोई भेदभाव नहीं करेगी। तभी उसका ध्यान टीवी पर चल रही एक न्यूज पर गया। जिसमें भारतीय सेना के किसी जवान के शहीद होने के बाद उसकी बेटी उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दे रही थी। उसे लगा धीरे धीरे ही सही हमारा समाज भी बदल रहा है।

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