” रचना बेटी..तू पहले ही दिन अपने पति को मुट्ठी में कर लेना…किचन में तू बिल्कल नहीं जाना…हमने तो…।” कावेरी जी अपनी भतीजी को ज्ञान की#पट्टी पढ़ाने लगीं।
रचना कावेरी के बड़े भाई की बेटी थी।उसकी शादी एक सम्पन्न घराने में तय हो गई थी।विवाह की तिथि के एक सप्ताह पहले ही उसकी बुआ उसके घर आ गईं थीं।रस्म-रिवाज़ पूरी हो जाने के बाद जब समय मिलता तो बुआ उसे अपने पास बिठा लेती और कहतीं कि अब तो तू कुछ दिनों की मेहमान है..
ससुराल जाकर हमें भूल न जाना..अपनी सास को अपनी काबू में रखना..ननद को अपने से दूर ही रहना,इत्यादि -इत्यादि।आज भी फ़ुरसत पाकर कावेरी जी उसे यही पाठ पढ़ा रही थीं कि तभी उनकी बेटी अनिता आ गई और कड़कते हुए अपनी माँ को बोली,” बस करो माँ…।
बरसों पहले नानी ने आपको यही#पट्टी पढ़ाकर विदा किया था जिसकी वजह से आपने पिताजी को दादा- दादी से अलग कर दिया..बुआ को अपने भाई से..।फिर आपने मेरा दिमाग खराब कर दिया..आपके कारण मैं अपने ससुराल वालों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाई और संबंध खराब करके मायके आकर बैठ गई।इतना बिगाड़ करके भी आपका जी नहीं भरा तो अब रचना का…।”
” अरे..हम.. तो..बस…।” कावेरी जी की आवाज़ लड़खड़ा गई।
” क्या बस…।” अनिता चिल्लाई और रचना का हाथ पकड़कर बोली,” बहना..उठ यहाँ से..।अपनी बुआ की बात पर तनिक भी कान न देना।मेरी बात सुन बहन.. लड़की का सुख ससुराल में ही होता है।तू सबसे मिलकर रहना..पति के साथ-साथ अपने सास-ससुर का भी ख्याल रखना..उन्हें पूरा आदर-सम्मान देना और ननद-देवर को भी खूब स्नेह…।” कहते हुए उसका गला भर्रा गया।
” जी दीदी..।” कहते हुए रचना अपनी बहन के गले लग गई।कावेरी जी अपना-सा मुँह लेकर रह गईं।दोनों बहनों का प्यार देखकर रचना की माँ की आँखें खुशी-से छलछला उठी।अनिता के सिर पर प्यार-से हाथ फेरते हुए वो बोलीं,” भगवान तेरी झोली भी जल्दी ही खुशियों से भर देगा…।”
विभा गुप्ता
# पट्टी पढ़ाना स्वरचित, बैंगलुरु