बारिश और छाता – सुधा जैन

हम दोनों पति पत्नी शाम को 7:30 बजे के करीब प्रतिदिन घूमने जाते हैं ।प्रकाश नगर की ओर करीब 2 किलोमीटर की दूरी होती है। दिनभर की व्यस्तता, मेरा स्कूल, इनका आफिस ,फिर शाम का खाना, संध्या प्रार्थना, फिर घूमने जाना, वहां पर दो तीन मित्रों का परिवार भी मिलता है ।आपस में हंसी, आनंददायक वातावरण, बातचीत , कभी गन्ने का रस कभी कुल्फी ,कभी  पानी पतासे, बस आनंद आ जाता है ।उन पलों में ऐसा लगता है जैसे हमने पूरा जीवन ही जी लिया हो, बहुत आनंद आता है।  ऐसा लगता है, जैसे हमने  हवाई यात्रा कर ली हो, कभी लगता है रेल यात्रा कर ली हो, कभी लगता है ,पहाड़ों पर चले गए हो ,बहुत सुखद समय होता है ।

अभी हम दोनों सांध्य प्रकार के विद्यार्थी बनने की तैयारी में है। सेवानिवृत्ति में मेरे 4 साल और इनके 2 साल बचे हैं। बेटा शुभम अपनी धर्मपत्नी श्रेया के साथ बेंगलुरु में रहता है। दोनों मल्टीनेशनल कंपनी में अपनी सेवाएं देते हैं। बेटी सृष्टि दामाद यशस्वी के साथ मुंबई में रहती है। दोनों बच्चे अपने आप में खुश हैं। हम दोनों पति पत्नी भी अपने आप में खुश हैं ।जीवन को पूरी उर्जा से जीने की कोशिश कर रहे हैं ।अपनी  शासकीय सेवा, पारिवारिक दायित्व, सामाजिकता, परोपकार सभी दायित्वों का वहन आनंद पूर्वक कर रहे हैं ।


आज की ही बात है। आज मौसम में बहुत उमस थी ।हम शाम को घूमने निकले। मैंने   इन्हें कहा “छाता ले लेते हैं” उन्होंने कहा” पानी नहीं आएगा, रहने दो”

हम दोनों निकल पड़े ।वहां पर मित्रों से मिले। बातचीत की। कुल्फी खाई। इतने में बूंदाबांदी शुरू हो गई। हम सब ने सोचा जल्दी निकलना चाहिए। हम वहां से निकले । जब तक बारिश की बड़ी-बड़ी बूंदे आना शुरू हो गई ,और रास्ते में बहुत तेज बारिश हो गई। हम दोनों भीगने लगे। इन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ में ले लिया। बहुत मजा आने लगा। बारिश की बूंदे हमारे शरीर के साथ-साथ हमारी आत्मा को भी  तृप्त  कर रही थी।  बहुत ही अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था  बारिश होती रहे और हम भीगते रहे। एक दूसरे का हाथ थामे  हुए हम घर आ गए, और घर पर टंगा हुआ छाता हमको देख कर हंस रहा था, और हम दोनों छाते को चिढा रहे थे।

रचना मौलिक

सुधा जैन

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