नीमा की शादी अपने ही शहर में विराट से हुई तो उसे मां बाप से दूरी का ज्यादा अहसास नहीं हुआ। दोनों घरों में ज्यादा दूरी भी नहीं थी। नौकरी भी वहीं पर थी, विराट का आफिस तो पूना में था लेकिन ज्यादातर काम आन लाईन हो जाता या फिर वो मार्कटिंग में रहता। ससुराल में नीमा की सास उषा जी थी जो कि गठिया की मरीज थी।
एक शादीशुदा ननद अपने घर परिवार में व्यस्त थी। ससुर जी का कुछ साल पहले ही देहांत हो गया था। उसके ससुर दो भाई थे। विराट के चाचा जी बहुत पहले ही परिवार सहित कनैडा चले गए थे। बहुत कम आना होता था, मां बाप यानि कि विराट के दादा दादी के जाने के बाद तो वो शायद आए भी नहीं।मां की बीमारी के कारण विराट पूना शिफ्ट नहीं होना चाहता था। इस शहर में वो बरसों से रह रहे थे।
दूर पास के कितने ही रिशतेदार वहीं पर थे, सबसे बड़ी बात कि उसकी तीन बुआ भी उसी शहर में थी। कोई न कोई मां से मिलने आता ही रहता क्योंकि गठिया के कारण वो ज्यादा चल फिर नहीं सकती थी। तीनों बुआओं का विराट पर विशेष स्नेह था, उन्का मायका तो वही था। कहते है कि लड़की जितनी भी बूढ़ी हो जाए मायके की यादें नहीं भूलती।
दादा, बाप, भाई भतीजे सबमें उसे अपना घर ही दिखता। सब विराट को ही राखी बांधती थी। नीमा का विराट से रिशता भी उसकी एक बुआ ने ही करवाया था। नीमा की मां और एक बुआ बहुत पुरानी किटी मैंबर थी तो बस बात चल पड़ी और रिशता हो गया।
नीमा की सास उषा जी का भी तीनों ननदों के साथ बहुत अपनापन था। एक बड़ी थी तो दो छोटी, उन्की तो शादी भी उषा के आने के बाद हुई। अब सबके अपने घर परिवार थे, कुछ बच्चों की शादियां हो गई तो कुछ अभी पढ़ रहे थे या अपना कैरियर बनाने में लगे थे।
वैसे तो तीनों बुआ के आर्थिक हालात अच्छे थे लेकिन एक राजी बुआ जिसने नीमा का रिशता करवाया वो ज्यादा अमीर थी। अच्छी जमीन जायदाद , खूब बड़ी कोठी सब था। उस जमाने में जब बहुत कम लोगों के पास कार होती थी,
बुआ के घर में बहुत बड़ी कार और जीप थी। जीप तो फूफा जी के खेतों वगैरह पर जाने के लिए थी। अक्सर हफ्ते में एक बार तो सब उन्के घर आ ही जाया करती।उषा जी का मन भी बहल जाता और सब बुआ भी मायके आकर अपनी बचपन की यादें ताजा करती, पुराने समय की और यहां वहां की खूब बातें करती।
आजकल के जमाने के कई बच्चें बुजुर्गों के पास ज्यादा बैठना या उन्की बातें सुनना कम पंसद करते है लेकिन नीमा ऐसी नहीं थी। उसे उन सबके साथ बैठना बहुत अच्छा लगता। वैसे भी घर में सास बहू होती थी। नीमा जाब करती थी, बीच बीच में मायके भी जा आती लेकिन रात को घर पर ही रहती। कई बार कोई बुआ रात को भी रूक जाती।
एक दिन नीमा शाम को आफिस से जल्दी फरी हो गई , दरअसल वो मीटिंग के लिए उस तरफ आई हुई थी जिधर राजी बुआ का घर था, तो उसने सोचा कि आज राजी बुआ के घर जाकर उसे सरप्राईज दिया जाए।
वैसे तो वो विराट के साथ ही जाती थी। जब उसने घंटी बजाई तो दरवाजा सुधा ने खोला जो कि उनके घर किचन वगैरह का काम करती थी। सुधा से पहले भी कई बार वो मिल चुकी थी।नीमा को उस औरत की आंखे कुछ कहती सी लगती थी, लेकिन फिर सब अपने में मस्त हो जाते।पचास के करीब रही होगी वो।
आज क्यूंकि नीमा बिना बताए ही आ गई थी, लैंड लाईन का जमाना था तो हर समय फोन करना भी संभव नहीं था, वैसे भी नीमा का प्रोग्राम एक दम से बना था। सुधा नीमा को बिठाकर पानी ले आई और फिर बताया कि बहनजी तो दो घंटे बाद आऐगीं।
किसी के घर कीर्तन में गई हैं। थोड़ी देर में वो चाय बना कर ले आई, नीमा को चाय देकर वो पास ही नीचे पड़ी पटरी पर बैठकर चाय पीने लगी। नीमा को सुधा अच्छी लगती थी, हमेशा उसने सस्ते मगर साफ सुथरे कपड़े पहने होते, देखने में भी किसी अच्छे घर की लगती।
नीमा ने नोटिस किया कि सुधा एकटक उसकी और देखे जा रही थी जैसे कुछ कहना चाहती हो। चाय पीते पीते नीमा ने सुधा से कहा,” लगता है आप काफी समय से बुआ जी के यहां काम कर रही हो”। “ जब से होश सभांला, तभी से इन्के साथ हूं”। सुधा ने धीरे से कहा। “ क्या मतलब, आपका अपना घर”?
“ बहू रानी, मैं भी एक तरह से तुम्हारी बुआ सास हूं” सुधा के मुंह से एकदम से निकला।
नीमा हैरानी से सुधा की और ताकने लगी। “ हां, बहू, मैं इन तीनों बहनों के सगे चाचा की बेटी हूं”। “बचपन में ही मेरे मां बाप की एक दुर्घटना में मौत हो गई। मैं ताया जी के घर में ही पली बढ़ी।
जायदाद में पापा का हिस्सा भी ताया जी को मिला।मुझे तो कुछ समझ ही नहीं थी। ताया ताई भी मुझे अपनी बेटी समान ही समझते थे। शादी भी अच्छे घर में हुई, बस मेरी किस्मत ही खराब निकली। पति को जुए की लत थी, सब उसी में चला गया। औलाद कोई हुई नहीं। जब तक पास में पैसा था सब पूछते थे। जब सब चला गया तो रिशते भी चले गए”।
कुछ रूक कर वो फिर कहने लगी “दस साल पहले मेरा पति पता नहीं कहां चला गया। ताया ताई चल बसे थे, ससुराल में कोई वैसे नहीं पूछता था। मुझ दसवीं पास को नौकरी भी कहां मिलती। मुझ पर तरस खाकर राजी बहन मुझे यहां ले आई, तबसे यहीं पर हूं”।
“ परतुं ये हर समय नौकरों के समान काम करना तो गल्त है, आखिर आप उनकी बहन हो”। “ परतुं क्या करती, चाचा का एक बेटा ( मेरा भाई) कनैडा बैठा है और तुम्हारे ससुर भी चल बसे, तबसे यहीं पड़ी हुं।
“ ओह”, नीमा के मुंह से ठंडी सांस निकली। “ अच्छा बुआ जी , मैं चलती हूं” नीमा ने कहा और सुधा के पैर छू लिए। “ दूधो, नहाओ, पूतों फलो “
सुधा बुआ ने आशीर्वादों की झड़ी लगा दी, और अपने पल्लू से एक मुड़ा तुड़ा पचास का नोट नीमा की और बढ़ाते हुए कहा” मना मत करना बहू, तूं मेरे भतीजे विराट की पत्नी है”।
नीमा ने नोट लेकर माथे से लगाया और कार स्टार्ट करके घर आ गई। रात को खाना खाते समय उसने अपनी सास उषा जी से पूछा” ममी जी, दुनिया में क्या पैसा ही सबकुछ है, रिशतों की कोई कीमत नहीं”। उषा जी कुछ समझ न पाई तो नीमा ने ही कहा, माना कि पैसा बहुत कुछ है, पर रिशतों के बिना सब अधूरा है”।
“ तुम क्या कहना चाह रही हो बहू”। नीमा ने सुधा बुआ से हुई सारी बातचीत बता दी। “ करना तो मैं सुधा के लिए बहुत कुछ चाहती थी, पर मेरी अपनी मजबूरियां थी” उषा जी नजरें नीचे करते हुए बोली।
“ परंतु अब भी गल्ती सुधारी जा सकती है, क्या हम सुधा बुआ को अपने घर रख सकते है, माना कि काम करनी बुरी बात नहीं, लेकिन अपने घर का काम करने और नौकरों की तरह काम करने में अंतर होता है।”
विराट के आने पर वो सुधा को अपने घर ले आए। आज सुधा बुआ अपने मायके इज्जत से रहती है। काम करती है लेकिन अपने घर का। नीमा ने सिद्ध कर दिया कि पैसा बहुत कुछ होते हुए भी सब कुछ नहीं है।कहते है कि सिकंदर महान ने मरने से पहले कहा था कि मरने के बाद मेरे दोनों हाथ कफन के बाहर रखना ताकि लोगों को पता चल सके कि आए भी खाली हाथ हैं और जाना भी खाली हाथ है, फिर भी दुनिया पैसों को ही सबकुछ मानती है।अगर कोई खरीद सकता है तो पैसों से लंबी उमर, स्वस्थ जीवन, सुख, शातिं, मन का सकून खरीद कर दिखाए।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
#इज्ज़त इंसान की नहीं पैसों की होती है-