बहुरानी – आरती झा”आद्या”

क्या है माँ.. शादी शादी। नहीं करनी मुझे शादी। सुबह सुबह ही शुरू हो जाती हैं आप। इसके अलावा आपके पास करने के लिए कोई और बात नहीं है क्या…मुझे ऑफिस भी जाना है.. बाद में बात करता हूँ.. सुभाष फोन पर अपनी माँ से कहता है।

रुक पहले मेरी बात सुन। इस सप्ताह हम तेरे पास मुंबई आ रहे हैं। एक सप्ताह का समय दे रही हूँ… अगर कोई है तो बता। अन्यथा हम जिससे कहेंगे.. चुपचाप शादी करेगा.. सुभाष की माँ शीला कहती हैं।

हद्द है माँ.. सुभाष की आवाज नाराजगी भरी हो जाती है।

ऑफिस जा अभी.. बोलकर शीला जी बात खत्म कर देती हैं।

आज ही मूड खराब होना था। नई जॉइनिंग के लिए इंटरव्यू भी लेना है। मेरे कारण कुछ गड़बड़ ना हो.. नहीं तो एचआर टीम की फजीहत हो जाएगी.. यही सब सोचता सुभाष ऑफिस पहुँचता है।

इंटरव्यू के लिए लगभग बीस उम्मीदवार आए थे। एक एक कर बोर्ड इंटरव्यू ले रहा था। तभी एक तेईस चौबीस साल की गुलाबी सलवार कमीज डाले एक लड़की अंदर आने के लिए परमिशन माँगती है। बड़ी बड़ी आँखें, गोरा रंग, लंबा छरहरा कद, कपड़ों से मिलता हुआ इयररिंग और लिपस्टिक कुल मिला कर नाम के अनुसार सौम्य छवि की धनी थी सौम्या। इंटरव्यू बोर्ड के छः सदस्यों में से पाँच ही सवाल पूछ रहे थे और सुभाष सौम्या की हाॅबिज वाले काॅलम में अटका था.. जहाँ लिखा था अभिनय। सवाल खत्म होने पर सौम्या को बाहर अन्य प्रतिभागियों के साथ बैठने कहा जाता है।

चुकी पाँच लोगों का ही चयन होना था तो इंटरव्यू के बाद परिणाम भी उसी समय बता दिया जाता है.. जिसमें सौम्या का चयन नहीं होता है। जैसे ही सौम्या ऑफिस से बाहर आती है। सुभाष के मन में काफी देर से जो खिचड़ी पक रही थी.. उसके क्रियान्वयन के लिए दौड़ता हुआ सौम्या के पास आता है।

मिस सौम्या आपको अभिनय का भी शौक है ना.. मुस्कुरा कर सुभाष पुछता है।

जी सर.. सौम्या असमंजस के भाव के साथ जवाब देती है।

आपसे इस बारे में मुझे कुछ बात करनी है। बस आपको पत्नी होने का अभिनय करनी होगी.. सुभाष कहता है।

किसकी और क्यूँ.. सौम्या पूछती है।

सुभाष उसे अपने मन में चल रहे विचारों से अवगत करा कर सोच कर जवाब देने कहता है।

सौम्या पहले तो एक सिरे से सुभाष के प्रस्ताव को नकार देती है।


सोच लीजिए.. आज आप मेरी मदद कर दीजिए। बदले में मैं अपनी कंपनी में आपको नौकरी दिलवाने में सहायता कर दूँगा.. सुभाष कहता है।

क्या करना होगा मुझे.. सौम्या पूछती है।

ज्यादा कुछ नहीं.. एक अच्छी बहू होने की ऐक्टिंग.. सुभाष कहता है।

मुझे क्या पता अच्छी बहू के लिए क्या क्या गुण होने चाहिए.. सौम्या खींझ कर कहती है।

सिर्फ बहू होने की ऐक्टिंग कर लेना बस… सुभाष डर रहा होता है कि उसकी किसी बात से गुस्सा होकर सौम्या मना ना कर दे।

ठीक है.. पर मैं अपने घर वालों से क्या कहूँगी.. सौम्या का सवाल था।

दिन में नौकरी पर जाती हूँ और रात में अपने घर चली जाना.. मैं अपने मम्मी पापा से कह दूँगा की तुम्हारी नाइट शिफ्ट है अभी..एक महीने की बात होगी… सुभाष कहता है।

उसके बाद मैं घर वालों को कहूँगी कि मुझे नौकरी से निकाल दिया गया है.. है ना.. सौम्या का पलटवार आया।

नहीं.. इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी.. तब तक मैं तुम्हारे लिए कंपनी में बात कर लूँगा.. सुभाष कहता है।

ओके देन.. कब से ऐक्टिंग करनी है।

आने वाले सोमवार से… सुभाष कहता है।

ठीक है.. नंबर दे दीजिए अपना.. बात कर लूँगी मैं.. सौम्या कहती है।

सुभाष ऑफिस से छुट्टी लेकर स्टेशन अपने मम्मी पापा को लेने स्टेशन चला जाता है।

शादी को लेकर माँ बेटे के बीच गाड़ी में ही बहस छिड़ जाती है। 

आखिर क्यूँ नहीं करना चाहता तू शादी.. शीला जी सुभाष से पूछती हैं।

क्यूँकि मैंने शादी कर ली है.. अब दूसरी करूँ क्या.. सुभाष झल्लाते हुए कहता है।

कब.. कहाँ.. कैसे.. सुभाष के माता पिता अवाक होकर पूछते हैं।

मेरे साथ ही काम करती है.. सुभाष ने कहा।

हमें बताया क्यूँ नहीं.. सुभाष के पापा शरद जी ने पूछा।

उस समय हमें लगा था कि आप लोग नहीं मानेंगे.. सुभाष ने कहा।

उसके घर वालों को पता है.. क्या नाम है उसका.. शीला जी पूछती हैं।

सौम्या नाम है… उसके घर वाले विदेश में रहते हैं। उन्हें भी नहीं पता है… सुभाष एक और झूठ बोलता है।

इन्हीं सब बातों के बीच तीनों घर पहुँच गए। सौम्या ने घर बहुत सुन्दर सजा रखा है। कहाँ है वो.. अंदर आती हुई शीला जी ने कहा।

तभी सिर पर पल्लू डाले नारंगी साड़ी में लिपटी एक काया आकर शीला जी और शरद जी के पैर छूती है।

कलेजे को ठंडक मिली आज.. कहकर शीला जी सौम्या को गले लगा लेती हैं।

इसी तरह हँसी खुशी दिन गुजर रहे थे। रविवार को चारों ने मुंबई दर्शन का प्लान बनाया। ढ़ेर सारी मस्ती शॉपिंग करके चारों घर आए।


इसीलिए कहती थी शादी कर ले.. देख तेरे चेहरे पर कितनी रौनक आ गई है.. शीला जी सोफ़े पर बैठते हुए कहती हैं।

सौम्या पानी लेने रसोई में चली जाती है।

ये रौनक तो आप दोनों के यहाँ आ जाने से आई है माँ.. सुभाष अपनी माँ के गोद में सिर रख कर लेटता हुआ कहता है।

अच्छा सुन.. कल तुम दोनों छुट्टी ले लो। मेरी एक सहेली रहती है यहाँ। कल डिनर पर बुलाया है उसने… शीला जी कहती हैं।

कौन सी मौसी.. सुभाष अमूमन अपनी माँ की सारी सहेलियों से वाकिफ था।

सोशल मीडिया की फ्रेंड है। एक से विचार होने के कारण अच्छी दोस्ती हो गई है.. शीला जी उत्साहित होकर कहती हैं।

उनका एड्रेस.. सुभाष पूछता है।

कल ले लूँगी.. शीला जी कहती हैं।

पर माँ कल मेरी आवश्यक मीटिंग है। मुझे शाम में पाँच बजे ही निकलना होगा। मैं नहीं आ सकूँगी.. सौम्या कहती है।

देखना बेटा अगर डिनर तक थोड़ी देर के लिए आ सको.. शीला जी कहती हैं।

कोशिश करुँगी माँ.. सौम्या कहती है।

ये रहा एड्रेस बेटा… सौम्या को भी एड्रेस भेज दे। अगर समय मिला तो आ जाएगी.. शीला जी कहती हैं।

ठीक है माँ.. सुभाष कहता है।

सौम्या परेशान मत होना।तुम अपने घर पर आने वाले अतिथियों को देखो। मैं मम्मी पापा के साथ जा रहा हूँ। सब सम्भाल लूँगा.. ऐसे निर्देश के साथ साथ सुभाष एड्रेस भी भेज देता है।

सौम्या अपनी माँ की सहायता करती हुई बीप की आवाज से मोबाइल लेकर सुभाष का मैसेज देखती है। 

माँ.. मुझे ऑफिस जाना होगा। कुछ अर्जेंट काम आ गया है.. मैसेज देख हड़बड़ाती हुई सौम्या कहती है। 

चुप कर.. जिस दिन मेहमान आने वाले होते हैं। तेरे सारे अर्जेंट काम उसी दिन होते हैं। कहीं नहीं जाना है..मोबाइल दे इधर। आज जब तक मेहमान घर पर रहेंगे..मोबाइल नहीं लेगी तू.. सौम्या की माँ माया आदेशात्मक स्वर में कह कर मोबाइल कबर्ड में रख काम में लग जाती हैं। 


आइए आइए.. दोनों सखियाँ बहुत आत्मीयता से गले मिलती हैं और सबका परिचय कराती है। 

शीला तुम्हारी बहू नहीं आई क्या.. माया पूछती है। 

उसकी कोई जरूरी मीटिंग थी। समय मिलेगा तो आ जाएगी.. शीला जी कहती हैं। 

तुम्हारी बेटी कहाँ है.. शीला जी पूछती हैं। 

रसोई में है.. बुलाती हूँ.. सौम्या बाहर आ.. माया जी आवाज देती हैं। 

क्या संयोग है.. मेरी बहू का नाम भी सौम्या है.. दोनों सहेलियाँ इस बात पर हँसती हैं। 

सौम्या की तो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति थी। मोबाइल भी उसके पास नहीं था जो सुभाष को सारी समस्या से अवगत कराती। क्या करूँ.. सौम्या सोच ही रही होती है कि माया जी शीला जी के साथ साथ रसोई में प्रवेश करती हैं। 

सौम्या तुम यहाँ.. शीला जी सौम्या को देख आश्चर्य से उसकी बांह पकड़ती हुई बोलती हैं। 

तुम दोनों जानते हो एक दूसरे को.. माया जी पूछती हैं। 

जानते हो.. माया ये मेरी बहु है सौम्या। इसके तो मम्मी पापा विदेश में रहते हैं। फिर ये सब क्या है.. बोलती हुई शीला जी सौम्या की बाँह पकड़े बैठक कक्ष में आती हैं। 

सुभाष जो इन सारे वाक्ये से अनभिज्ञ होता है।तीनों को एक साथ देख खड़ा हो जाता है। 

सौम्या यहाँ कैसे.. शरद जी आश्चर्य से पूछते हैं। 

हमारी बेटी है सौम्या.. सौम्या के पापा कहते हैं।

ये क्या चक्कर है सुभाष.. सौम्या को छोड़ शीला जी बेटे के समक्ष खड़े होकर पूछती हैं।

वो माँ.. आपके बार बार शादी की जिद्द के कारण मुझे ये सब करना पड़ा… कहकर सुभाष सौम्या के ऑफिस आने से लेकर अभी तक का सारा ब्यौरा नजर झुका कर देता है।

इतना खौफ शादी से… चल तेरी सजा अब ये है कि सौम्या ही तेरी दुल्हन बनेगी और तू ही सौम्या का दूल्हा.. अगर सौम्या के मम्मी पापा कोई कोई ऐतराज ना हो तो.. वही रखी कुर्सी पर बैठती हुई शीला जी कहती है।

बिल्कुल सही सजा मुकर्रर की है आपने बहनजी। अब सौम्या आपकी बहुरानी हुई.. सौम्या के पिता कहते हैं।

सौम्या और सुभाष जो एक दूसरे को अब मन ही मन चाहने लगे थे और संकोचवश एक दूसरे से कह नहीं रहे थे। बड़ों की रजामंदी सुनकर उन दोनों का मन मयूर नाच उठता है।

 

आरती झा”आद्या” (स्वरचित व मौलिक) 

दिल्ली

 

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