बहू और भाभी आज बनी है – आकाश गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

(एक पारिवारिक और भावनात्मक कहानी)

गाँव के उस बड़े से पुश्तैनी घर में चहल-पहल थी। आँगन में रंगोली बन रही थी, दरवाज़े पर केले के पत्तों और गेंदे के फूलों की बंधनवार लटक रही थी। रसोई से पकवानों की खुशबू हवा में घुली थी। आज रोहित और साक्षी की शादी की सातवीं सालगिरह थी। परिवार ने सोचा था कि इस बार उत्सव खास हो, इसलिए सब रिश्तेदार बुलाए गए थे — बहन नेहा मायके आई थी, ताऊजी भी शहर से आए थे, और सबसे ज़्यादा व्यस्त थीं — घर की बुज़ुर्ग और सम्मानित सदस्य, श्रीमती शारदा देवी।

शारदा देवी उम्रदराज़ थीं, पर उनका तेज़ अब भी वैसा ही था जैसा वर्षों पहले था जब उन्होंने इस घर को चलाना शुरू किया था। रोहित उनका इकलौता बेटा था, और साक्षी उसकी पत्नी — पढ़ी-लिखी, सुलझी हुई, सभ्य लड़की, जो शहर से आई थी लेकिन गाँव के संस्कारों को अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

साक्षी हर काम समय पर करती थी, शालीनता से बात करती थी, लेकिन शारदा देवी के दिल में एक बात रह-रहकर चुभती थी —
“वो मेरी बहू तो है, लेकिन मेरी बहू जैसी नहीं लगती… जैसे एक रस्म अदायगी हो रही हो।”

उधर साक्षी के मन में भी कुछ सवाल थे।
“माँजी मुझे पसंद तो करती हैं, फिर क्यों हर बार एक दूरी बना लेती हैं? क्यों मैं कभी इस घर की बेटी जैसा महसूस नहीं कर पाती?”

इन सात वर्षों में दोनों ने कई मौकों पर मुस्कानें बाँटी थीं, पर कभी वो अपनापन नहीं पनप सका था जो एक सास और बहू के बीच होना चाहिए। शायद अहंकार नहीं, बल्कि संकोच था — दोनों तरफ से।

इस कहानी को भी पढ़ें:

नाराज़ – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

अब नेहा की बात करें — रोहित की छोटी बहन — तो वो इस खामोशी को साफ़ महसूस करती थी। वह जानती थी कि इस घर में अब कुछ बदलना चाहिए, नहीं तो ये रिश्ते सिर्फ नाम के रह जाएंगे।

सालगिरह की शाम, सब लोग आँगन में जमा थे। रोहित और साक्षी ने पूजा की, प्रसाद बांटा गया, मिठाइयाँ खिलाई गईं। फिर अचानक नेहा माइक लेकर खड़ी हुई।
“सबको नमस्ते! आज भैया-भाभी की शादी को सात साल हो गए हैं — साथ फेरे, साथ वचन, और साथ की ज़िंदगी। पर आज मैं एक छोटा सा खेल खेलना चाहती हूँ।”

सब हँसने लगे — “नेहा फिर से अपनी नाटकबाज़ी पर उतर आई।”

नेहा ने मुस्कराकर कहा,
“नाटक नहीं, सच्चाई की एक झलक है ये खेल। मैं चाहती हूँ कि आज के दिन हर कोई एक ऐसा रिश्ता निभाए जो शायद वो अब तक पूरी तरह से नहीं निभा पाया।”

उसने सबको पर्चियाँ दीं, जिनमें कुछ रिश्तों के नाम लिखे थे — माँ, बहू, भाभी, बेटी, सास, बहन…

साक्षी को जो पर्ची मिली, उस पर लिखा था — “भाभी”
शारदा देवी को जो पर्ची मिली, उस पर लिखा था — “माँ”, न कि “सास”।

नेहा ने कहा,
“भाभी, आप तो कब से भैया की पत्नी हैं, लेकिन क्या आपने कभी मुझे बहन जैसा अपनाया है? और माँ, आप तो सबकी माँ हैं, लेकिन क्या आपने साक्षी को कभी बेटी की तरह गले लगाया है?”

सन्नाटा छा गया। साक्षी की आँखें नम हो गईं। उसने धीरे से नेहा का हाथ पकड़ा और कहा,
“नेहा, शायद मैं डरती थी… तुम्हारी जगह लेने से। शायद यही सोचती रही कि कहीं मैं तुम्हारे और माँ के बीच दीवार न बन जाऊँ। पर आज समझ आया कि रिश्ता लेने से नहीं, देने से बनता है। आज से तुम मेरी छोटी बहन नहीं, मेरी प्यारी दीदी हो। और माँ…”—उसकी आवाज़ रुक गई— “मैं आपको माँ कहती रही, पर शायद दिल से कभी कहा ही नहीं।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

त्याग से बढ़कर कोई खुशी नहीं – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

शारदा देवी का चेहरा भावनाओं से भीग गया। उन्होंने साक्षी के पास जाकर उसका चेहरा दोनों हाथों में लिया,
“बेटी, बहू तो तू बनी थी उस दिन जब पहली बार मेरे बेटे के लिए व्रत रखा था। पर बेटी… तू आज बनी है, जब तूने मेरी बहू से ज़्यादा मेरी अपनी बनना चाहा।”

नेहा रो रही थी, रोहित भावुक खड़ा था, और पूरा आँगन ताली बजा रहा था।

उसके बाद साक्षी ने नेहा को रसोई में बुलाया, साथ में हलवा बनाया — पहली बार। नेहा ने उसे चुटकी काटकर कहा,
“अब तो तू सच में भाभी लग रही है — माँ की लाडली और मेरी सहेली।”

रात में सब लोग जब चले गए, शारदा देवी ने पहली बार साक्षी के लिए वो लाल साड़ी निकाली जो उन्होंने अपनी बहू के लिए वर्षों से सँभाल कर रखी थी।
“ये साड़ी मेरी सास ने मुझे दी थी, और मैं इसे अपनी बहू को देना चाहती थी — लेकिन तब जब वो बहू नहीं, मेरी बेटी बन जाए। आज वो दिन आ गया।”

साक्षी ने कांपते हाथों से साड़ी ली और गले लग गई। उस रात इस घर में न कोई दीवार रही, न कोई फासला — सिर्फ अपनापन।

समाप्त

संक्षेप में:
इस कहानी के माध्यम से यह दिखाया गया है कि रिश्ते केवल नाम से नहीं, भावनाओं, संवाद और आपसी समझ से बनते हैं। कभी-कभी एक छोटी सी पहल — चाहे वो एक पर्ची हो, एक शब्द हो या एक साड़ी — किसी रिश्ते की गहराई को छू सकती है।

Akash Gupta

आकाश गुप्ता 

#पत्नी तो कब की बन गई थी पर बहू और भाभी तो आज बनी है

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!