बड़ी दीदी – नेकराम : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : गांव में रहने वाली 40 वर्ष की रोशनी आज बहुत खुश थी

अपने दो बेटे और अपनी दो बहुओं को दिल्ली में अपनी बड़ी दीदी सुलेखा देवी की बेटी सुकन्या की शादी में ले जा रही थी

रोशनी की बड़ी बहू गीता ने पूछा मां ,, जी

आप तो दो सगी बहनें थी फिर यह तीसरी बड़ी दीदी सुलेखा देवी कहां से आ गई

रोशनी ने अपने बच्चों को बताया जब मैं —

19 वर्ष की एक कुंवारी कन्या थी हमारा मकान गांव में काफी जर्जर हो चुका था मैं अक्सर मां से कहती मुझे शहर जाने दो ,, दो पैसे कमाकर लाऊंगी तो इस पुराने घर को नया बनवा दूंगी

घर में बड़ी बहन कुंवारी बैठी है हाथ पीले करने को पैसे नहीं बाबा बीमारी से ग्रस्त है खेत भी इतने बड़े नहीं की फसल ही उग जाए

गांव के लोग शहर जाकर ढेरों पैसा कमाकर लाते हैं मां तुम मुझे भी शहर जाने की इजाजत दे दो

मां ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा

तुम लड़की हो लड़का होती तो मैं तुम्हें शहर भेज देती रोजी रोटी कमाने के लिए

मैंने मां को समझाते हुए कहा वहां शहर में पढ़ी-लिखी लड़कियों को जल्दी जॉब मिल जाती है मैंने दसवीं क्लास पास की है

मुझे एक बार मौका दो शहर जाने का

मकान को फिर से नया बनवा दूंगी बड़ी बहन की शादी भी धूमधाम से होगी पिताजी का अच्छे से अस्पताल में इलाज करवाऊंगी

मैंने अपनी बातों से मां का दिल जीत लिया

किंतु मां फिर अचानक बोली शहर तो तुम्हारे लिए अजनबी होगा

मैंने तुम्हारी दादी मां को फिर समझाते हुए कहा मैं पढ़ी-लिखी लड़की हूं तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है

तुम बस एक हजार रूपए का इंतजाम कर दो

मैं सुबह सूरज निकलते ही रेलवे स्टेशन पहुंची

दिल्ली का एक टिकट प्लेटफार्म से खरीदने के बाद दिल्ली जाने वाली एक ट्रेन के डिब्बे में बैठ गई

वह ट्रेन मुंबई से आ रही थी और दिल्ली जाकर समाप्त उसे होना था

पढ़ी-लिखी होने के कारण मैं डिब्बे तक तो पहुंच चुकी थी रेल पटरी पर दौड़ रही थी

मेरे सामने एक बुजुर्ग बैठे थे लंबा चौड़ा शरीर भरी हुई छाती 3 घंटे का सफर बीतने के बाद उन बुजुर्ग ने अपने सूटकेस से पानी की बोतल निकाली



मैं पानी की बोतल को देखने लगी मुझे प्यास लगी थी

उन बुजुर्ग ने पानी की बोतल मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा – डरो नहीं बेटी रेल में हर अजनबी व्यक्ति गलत नहीं होते

मैं देश का सैनिक हूं रिटायर हो चुका हूं अब अपने घर दिल्ली लौट रहा हूं यह मेरा कार्ड है और यह रही मेरी फोटो जिसमें मैंने आर्मी की वर्दी पहनी हुई है

मैंने उन बुजुर्ग से पानी की बोतल ले ली

दो घूंट पानी पीने के बाद मुझे चक्कर आने लगे और मैं वही कुर्सी पर लुढ़क गई

मुझे जब होश आया तो मैंने स्वयं को एक अजनबी कमरे में पाया खिड़की से झांकने पर पता चला शायद कोई बहुत ऊंची बिल्डिंग है मैंने अनुमान लगाया शायद मैं बीस या इक्कीस वे माले पर हूं नीचे झांकने पर रोड पर चलने वाली बसें चींटी के समान दिख रही थी

दो दिन हो चुके थे मैं उस कमरे में अकेली बंद थी वह बुजुर्ग कौन था उसने किसलिए मुझे यहां बंद किया था मेरे मन में तरह-तरह के सवाल उभरने लगे

मैंने उस कमरे को पूरी तरह छान मारा वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था

तब मुझे याद आने लगी मां की बातें जब मां कहा करती थी बेटी शहर तो तेरे लिए अजनबी है तू वहां कहां रहेगी कैसे नौकरी करेगी

लेकिन मैंने मां की एक न सुनी अपनी जिद के कारण आज यहां इस कमरे में कैद हूं

मैं यही सब बातें सोचते सोचते बिस्तर पर लेट गई मुझे सामने दीवार पर एक फोटो दिखाई दी मेरे दिमाग में एक प्लान पलने लगा

मैंने उस फोटो को फ्रेम से बाहर निकाल लिया

अपनी उंगली को दांतों से काट कर जो रक्त गिरने लगा उसी रक्त से उस कागज पर लिख दिया

,,,,,,मैं मुसीबत में हूं ,,,,,,

बैड की चादर को फाड़ कर एक लंबी रस्सी की तरह इस्तेमाल करने के बाद उस पत्र को

उसमें बांध दिया और खिड़की खोलकर नीचे लटका दिया

यह सोच कर कि शायद मेरे नीचे वाले माले में कोई अगर होगा तो खिड़की खोलने के बाद मेरा लटका हुआ पत्र अवश्य पढ़ेंगे

4 घंटे से अधिक हो चुके थे

मैंने चादर के कपड़े से बनाई हुई रस्सी को ऊपर वापस खींच लिया उसमें वही पत्र लिपटा हुआ था जो अभी कुछ देर पहले मैंने बांधा था

मैं निराश हो चुकी थी मुझे लगा मैं जिस बिल्डिंग के माले पर हूं उसके नीचे वाले माले पर शायद कोई नहीं है



तभी दरवाजे पर दस्तक हुई जैसे कोई दरवाजा

पीट रहा हो मैं बुरी तरह घबरा गई शायद यह वही बुजुर्ग अंकल होंगे मुझे लगता है इस बूढ़े अंकल ने मेरा अपहरण कर लिया है

इतने में दरवाजा टूट गया एक 25 वर्षीय दुल्हन के जोड़े में खड़ी महिला उनके साथ उनका पति  साथ में होटल के मैनेजर और एक पुलिस वाला था

वह चारों तुरंत कमरे के भीतर घुसे मुझे देखते हुए  उनमें से एक शख्स बोला घबराइए नहीं हम आपकी मदद के लिए आए हैं

होटल के मैनेजर ने बताया हमने रेखा देवी को इस बिल्डिंग की नौवीं मंजिल पर एक रात के लिए रूम किराए पर दिया था यह अपने पति सुरेश के साथ यहां हनीमून मनाने आई है

आधे घंटे पहले रेखा देवी हमारे काउंटर पर पहुंची

और बताया कि जब मैंने खिड़की खोली तो मुझे वहां एक कपड़े की रस्सी मैं बंधा हुआ पत्र मिला मैंने झट पत्र खोला तो उसमें  खून की स्याही से लिखा हुआ था      

            ,,मैं मुसीबत में हूं ,,,,,,

रेखा देवी इस बात को बताने के लिए अपने पति के पास पहुंची तो उनके पति ने विश्वास नहीं किया

खिड़की पर वापस लौटकर गए तो वहां पर न रस्सी थी ना कोई पत्र लटक रहा था

रेखा देवी ने अपने पति से कहा आप  मुझ पर विश्वास कीजिए अपने रुम के ऊपर वाली छत पर बने कमरे में कोई मुसीबत में है

तब रेखा देवी के पति ने कहा हमें जल्दबाजी से कोई फैसला नहीं लेना चाहिए हम यहां एक रात के लिए अपना हनीमून मनाने आए हैं मैं तुम्हारी एक हेल्प कर सकता हूं होटल के मैनेजर के पास चलते हैं कुछ देर के बाद ही  ,,फिर यह दोनों, मेरे पास पहुंच गए



मैंने भी जल्दी कोई कदम उठाना उचित नहीं समझा मैंने रजिस्टर में चेक किया 3 दिन पहले किसी धर्मेंद्र नाम के व्यक्ति ने यह रूम बुक किया था

वह बुजुर्ग एक लड़की को अपनी बेटी बता रहा था

पुलिस के आते ही हमने दरवाजा तोड़ना शुरू किया

मैंने विस्तार से  पुलिस को अपने गांव से शहर आने की सारी बात बता दी,,,  पुलिस ने कहा

गांव से अकेली लड़की को शहर में ऐसे नहीं आना चाहिए यहां शहरों में लड़कियों को बेच दिया जाता है

पुलिस ने होटल के मैनेजर से कहा होटल के सीसी कैमरे की मदद से हम उस शख्स को आसानी से पकड़ लेंगे

फिलहाल हम इस लड़की को इसके गांव अभी और इसी वक्त छोड़कर आएंगे क्योंकि हम इन्हें थाने में नहीं ले जा सकते हैं न अपने घर

मैंने उस नई नवेली दुल्हन को देखकर कहा दीदी अगर तुम ना होती तो न जाने मेरा क्या होता इतना कहकर मैं ,, फफक फफक कर रो पड़ी

पुलिस की मदद से मैं अपने गांव वापस पहुंच चुकी थी

पुलिस की मदद से मैंने रेखा देवी के घर का पता और उनका मोबाइल नंबर ले लिया था

एक महीना बीत चुका था ,,,,,

किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी दरवाजा खोलने पर सामने देखा ,, रेखा देवी  ,, खड़ी हुई थी

मुझसे गले लगते हुए बोली मैं जानती हूं तुम्हें नौकरी की जरूरत है

मैंने शहर में

एक ब्यूटी पार्लर खोल लिया और स्वंय तुझे लेने के लिए इस गांव तक आई हूं

दो चार महीनों में मुझे शहर में ब्यूटी पार्लर का काम सिखा दिया और इस गांव में मेरे लिए एक ब्यूटी पार्लर की दुकान खुलवा दी

इसी ब्यूटी पार्लर की दुकान के दम पर मैंने अपने पुराने मकान को नया बनवा लिया बड़ी बहन की शादी हुई और मेरी भी शादी हो गई

आज मेरे दो बेटे दो बहुएं हैं

जिंदगी में कभी कभी  ,,पराए रिश्ते भी अपने से लगने लगते हैं,

रोशनी इतना कहकर घर का ताला लगाकर परिवार सहित सज धज कर स्टेशन की तरफ चल दी

#पराये _रिश्ते _अपना _सा _लगे 

नेकराम

स्वरचित रचना दिल्ली से

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!